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आखिर टूटा जाति का कलंक, आजादी के 70 साल बाद पढ़ सकेगी ये बस्ती

zafar
Published on: 10 Aug 2016 2:12 PM IST
आखिर टूटा जाति का कलंक, आजादी के 70 साल बाद पढ़ सकेगी ये बस्ती
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आगरा: प्राथमिक शिक्षा के लिए राज्य और केंद्र सरकार के पास ढेरों नारे हैं, ढेरों किस्म के बजट हैं और ढेरों विभाग और कर्मचारी अधिकारी हैं। जाति व्यवस्था के खिलाफ ढेरों ढकोसले हैं, बड़बोले भाषण हैं और चमकती राजनीति है। लेकिन दांतों तले उंगली तब दबानी पड़ती है, जब मारवाड़ी इंद्रा नगर जैसी कोई बस्ती दिखाई देती है। वह भी देश के एक प्रसिद्ध शहर में। आगरा के महताब बाग़ के पास बसे मारवाड़ी इंद्रा नगर निवासी दलितों और उनके बच्चों ने अब तक किसी स्कूल का मुंह नहीं देखा, क्य़ोंकि इनकी जाति कंजड़ है।

caste stigma-community free -education

जाति ने छीनी शिक्षा

-ये वो मासूम हैं जो स्कूल जाना चाहते हैं। इनके मन में भी डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिस अधिकारी या टीचर बनने की चाहत है।

-लेकिन झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले इन बच्चों को स्कूल में इसलिए भर्ती नहीं किया जाता क्योंकि वे कंजड़ जाति से हैं।

-500 से अधिक लोगों की इस बस्ती में 116 झोपड़िया हैं और कोई भी व्यक्ति शिक्षित नही है, क्योंकि ये छुआछूत के शिकार हैं।

-कंजर जाति का होने के कारण लोग इनसे दूर रहते हैं, और इनके बच्चों को स्कूल के पास नहीं फटकने देते।

-इस बस्ती के लोगों को जातिसूचक शब्दों से पुकार कर अपमानित किया जाता था। थक कर इन लोगों ने भी पाखंडी समाज से दूरी बना ली है।

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अब मिली आजादी

-आजादी के 70 और आगरा में बसने के 38 साल बाद अब इन्हें आजादी मिलने की उम्मीद है। शिक्षा प्राप्त करने का सपना पूरा होने की आस है।

-दिल्ली की एक संस्था ने एक महीने की अथक कोशिशों के बाद यहां रहने वाले करीब 45 बच्चों को 2 सरकारी स्कूलों में भर्ती करा दिया है।

-इनमें से 20 बच्चों को कछपुरा प्राइमरी स्कूल में और 25 बच्चों को मोती महल प्राइमरी स्कूल में प्रवेश मिल गया है।

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सपने होंगे पूरे

-1978 में आगरा में आई बाढ़ के दौरान कुछ कंजड़ परिवार ताजमहल के पीछे के टीले पर फंस गए थे।

-तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी के निर्देश पर इन्हें बसने की सुविधाएं मुहैया कराई गई थीं, इसलिए बस्ती का नाम मारवाड़ी इंद्रानगर पड़ गया।

-इस बस्ती के लोगों का पुश्तैनी काम हन्टर बनाना है। लेकिन अब ये लोग कांच के गिलास, वाइपर, झाड़ू और दूसरे सामानों की फेरी लगा कर रोजी रोटी का इंतजाम करते हैं।

-बहरहाल, इस नई जिंदगी से बच्चों में स्कूल जाकर बेहद उत्साह है और उनके मां-बाप के चेहरों पर खुशी।



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