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BSP 2024 Plan: चार दशक पुराने नारे के साथ मैदान में उतरेगी बीएसपी, आम चुनाव से पहले संगठन को कसने का फॉर्मूला तैयार
BSP 2024 Plan: बसपा को छोड़कर बाकी पांचों राष्ट्रीय पार्टियों का एक या तो एक से अधिक राज्यों में सरकार है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री की अगुवाई वाली बसपा का साल 2012 में जो बुरा दौर शुरू हुआ, वो अब तक जारी है।
BSP 2024 Plan बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) देश के उन छह सियासी दलों में शामिल है, जिसे चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे रखा है। इन छह सियासी दलों में बीएसपी के अलावा बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, सीपीएम और एनपीपी शामिल है। दिलचस्प तथ्य ये है कि बसपा को छोड़कर बाकी पांचों राष्ट्रीय पार्टियों का एक या तो एक से अधिक राज्यों में सरकार है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री की अगुवाई वाली बसपा का साल 2012 में जो बुरा दौर शुरू हुआ, वो अब तक जारी है।
2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के हाथों करारी शिकस्त खाकर सत्ता से बेदखल हुई बीएसपी अब तक उस हार से उबर नहीं पाई है। लोकसभा से लेकर विधानसभा और यहां तक के निकाय और पंचायत स्तर पर पार्टी का जनाधार तेजी से खिसकता जा रहा है। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने के बावजूद बीएसपी के सामने अब अपना अस्तित्व बरकरार रखने की चुनौती है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने इस चुनौती से पार पाने के लिए एक रूपरेखा तैयार की है।
आगामी लोकसभा चुनाव बीएसपी के लिए अहम
मायावती ने साल 2019 का लोकसभा चुनाव अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और रालोद के साथ मिलकर लड़ा था। इन तीनों पार्टियों के गठबंधन में सबसे अधिक फायदा मायावती को ही हुआ। 2014 में शून्य पर सिमटने वाली बसपा के 10 सांसद लोकसभा पहुंच गए। चार साल बाद अब वो वाली स्थिति नहीं रह गई है। मायावती और अखिलेश की राह अलग हो चुकी है। बसपा सुप्रीमो ने आम चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में बीएसपी के सामने कम से कम 2019 के प्रदर्शन को रिपीट करने की चुनौती है। नहीं तो वो राष्ट्रीय राजनीति में अपनी प्रासंगिकता गंवा सकती है।
चार दशक पुराने नारे के साथ मैदान में उतरेगी बीएसपी
देश में दलितों की सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर पहचान कायम करने वाली बीएसपी से अब उनका आधार वोट विमुख हो रहा है। बसपा के वोटबैंक में भारतीय जनता पार्टी ने तगड़ी सेंधमारी कर ली है। मायावती के बचे खुचे वोट बैंक पर भी भाजपा और सपा की गिद्ध जैसी नजर है। दोनों पार्टियों ने इन्हें लुभाने के लिए एड़ी चोट का जोर लगा रखा है। ऐसे में बसपा प्रमुख मायावती ने अपने परंपरागत वोटरों को फिर से साथ करने के लिए एक विस्तृत योजना बनाई है।
दलित और अति पिछड़े तबके को फिर से अपने साथ करने के लिए मायावती चार दशक पुराने नारे ‘वोट हमारा’ ‘राज़ तुम्हारा नहीं चलेगा’ के साथ मैदान में उतरने का निर्णय लिया है। इस नारे ने 90 के दशक में बीएसपी को इन तबकों के बीच सशक्त रूप से स्थापित कर दिया था। मायावती के निर्देश पर बसपा के कार्यकर्ता प्रदेश के गांव-गांव में इन नारों के साथ कूच करेंगे और फिर से लोगों को अपने साथ जोड़ेंगे।
युवाओं और महिलाओं को पार्टी से जोड़ने की कवायद
बहुजन समाज पार्टी पिछले एक दशक से अधिक समय से उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर है। पार्टी को असली ताकत इसी सूबे से मिलती है। यूपी के प्रदर्शन के बदौलत ही मायावती राष्ट्रीय स्तर की दलित नेता बनीं। लेकिन अब इसी राज्य में पार्टी लगातर सिकुड़ती जा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह है पार्टी से युवाओं और महिलाओं का जुड़ाव न होना। हाल के दिनों में देखा गया है कि इन दोनों समुहों ने चुनावी राजनीति में अहम रोल अदा किया है।
ऐसे में बसपा इन दो समुहों को अपने साथ लाने की कवायद में जुट गई है। लंबे समय से सत्ता से बाहर रहने के कारण पार्टी के अधिकांश बड़े और जनाधार वाले नेता दूसरे दलों की बागडोर संभाल चुके हैं। बसपा अब उनकी जगहों पर नौजवान चेहरों को भर्ती करेगी। उन्हें नेता के रूप में तैयार करेगी। युवाओं और महिलाओं को पार्टी से जोड़ने के लिए गांव स्तर तक मुहिम चलाई जाएगी। बीजेपी की तरह बीएसपी का भी फोकस अब सबसे पहले बूझ जीतने का होगा।
अभी नहीं तो कभी नहीं !
बसपा दलितों और अति पिछड़े समाज से आने वाले युवाओं और महिलाओं को जोड़ने की योजना पर विशेष काम करेगी। बूथ स्त पर 50 फीसदी युवाओं को जोड़ा जाएगा। उन नेताओं और कार्यरकर्ताओं को बाहर कर दिया जाएगा, जो निष्क्रिय रहते हैं। पार्टी की सदस्यता लेने वाले युवाओं को विचारधारा को लेकर ट्रेनिंग दी जाएगी। उन्हें बाबा साहेब अंबेडकर और कांशीराम के विचारों से रूबरू कराया जाएगा। उन्हें यह बताया जाएगा कि बीएसपी के लिए सत्ता में आना समाज के लिए कितना जरूरी है ? उन्हें यह भी बताने की कोशिश की जाएगी कि अगर यह मौका गंवाए तो समाज को भारी कीमत अदा करनी पड़ सकती है।
तेजी से घट रहा जनाधार
राष्ट्रीय राजनीति और यूपी की राजनीति में बीजेपी के उभार से सबसे अधिक नुकसान बसपा को पहुंचा है। सीटों के साथ पार्टी को मत प्रतिशत भी सिकुड़ता जा रहा है। 2022 के विधानसभा में पार्टी महज एक सीट पर सिमट गई और वोट प्रतिशत भी 13 प्रतिशत पर आ गया। हालिया निकाय चुनाव में भा पार्टी बीजेपी और सपा के बाद तीसरे नंबर पर रही।