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UP विधान परिषद चुनाव में सब जीते भी हारे भी, यानी सबको मिला सबक

Rishi
Published on: 10 Jun 2016 6:29 PM GMT
UP विधान परिषद चुनाव में सब जीते भी हारे भी, यानी सबको मिला सबक
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yogesh-mishra Yogesh Mishra

लखनऊः विधान परिषद के नतीजों ने भले ही सभी दलों को खुश रहने के बहाने दे दिए हों, लेकिन हकीकत ये है कि बीएसपी को छोड़ हर राजनीतिक दल को इन नतीजों से यह सबक लेना चाहिए कि उसका दुर्ग सुरक्षित नहीं है। हालांकि, बीएसपी के दो विधायकों ने भी प्रत्यक्ष रूप से क्रॉस वोटिंग की, लेकिन इन दोनों विधायकों के बारे में न तो पार्टी को कोई गलतफहमी थी, न ही इन्हें लेकर प्रबंधन का कोई प्रयास किया गया था।

बीएसपी की बल्ले-बल्ले

नतीजों ने ये साबित किया कि जनप्रतिनिधियों के दिलोदिमाग पर बीएसपी की बनने वाली सरकार के दावे का खुमार नहीं उतरा है, तभी तो वह इकलौती पार्टी रही, जिसके तीनों उम्मीदवार प्रथम वरियता से ही जीत गए। यही नहीं क्रॉस वोटिंग के बावजूद 90 वोट का आंकड़ा भी छू लिया। जबकि, सदन में उसकी संख्या महज 80 है।

पहले भी बीएसपी ने दिखाया था प्रबंधन

विधान परिषद और राज्य सभा चुनाव में प्रबंधन का कौशल 2006 में भी दिखा था। तब पार्टी सत्ता से बाहर थी और मुलायम सिंह की सरकार रहते हुए उसने अपने पक्ष में 26 क्रॉस वोट कराकर राज्य सभा और विधान परिषद दोनो में अपना अंतिम उम्मीदवार भी जितवा लिया था।

सपा के सब जीते पर बहुत कुछ हारे

समाजवादी पार्टी की सदस्य संख्या 229 है। लोकदल के 8 विधायकों ने भी सपा के आगे समर्पण कर दिया था। दो निर्दल विधायक भी सपा के पाले में खड़े थे। इसके अलावा पीस पार्टी के 3, कौमी एकता दल के 2, इत्तिहाद मिल्लत काउंसिल के एक विधायक ने भी वोट देने का आश्वासन दिया था। सपा के वकार अहमद शाह वेंटिलेटर पर होने के बाद वोट देने नहीं आ सके। इसके बाद भी प्रथम वरीयता के सपा को 231 वोट ही मिल सके।

सपा को सालता रहेगा ये दंश

सपा के सारे उम्मीदवार जीत गए, बावजूद इसके अपना किला महफूज न रख पाने का दंश उसे सालता रहेगा। वह भी तब, जबकि मुलायम सिंह यादव ने अपने संकटमोचक भाई शिवपाल यादव को प्रबंधन के लिए उतारा था। शिवपाल यादव का कौशल काम तो आया, तभी अंतिम लड़ाई में उनके उम्मीदवार नहीं, बल्कि कांग्रेस के उम्मीदवार और बीजेपी के दयाशंकर सिंह रहे। यही नहीं, शिवपाल सिंह ने रणनीति के तहत कांग्रेस की भी मदद की। उनके उम्मीवार को जिताने में शिवपाल का कौशल काम आया। हालांकि, कांग्रेस भी क्रॉस वोटिंग के संक्रामक रोग से नहीं बच सकी। कांग्रेस को अगले विधानसभा चुनाव में अपना अस्तित्व बचाने के लिए किसी न किसी की बैसाखी पर सवार होना पड़ेगा।

बीजेपी ने सबको आइना दिखाया, लेकिन उसे भी लगा दंश

भारतीय जनता पार्टी के दूसरे उम्मीदवार की पराजय तकरीबन तय थी, क्योंकि इन्हीं की वजह से सूबे में चुनाव हुए। जो चुनाव कराने आया था, वही हार गया। क्रॉस वोटिंग से बीजेपी भी नहीं बच सकी, लेकिन बीएसपी के बाद वह दूसरी ऐसी पार्टी बनी जिसकी ओर माननीय उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं। तभी तो 41 विधायकों वाली इस पार्टी को 49 वोट हासिल हुए।

क्या होगा प्रीति महापात्रा का?

बीजेपी की इस पराजय ने शनिवार को होने वाले राज्यसभा चुनाव में उसके समर्थित उम्मीदवार प्रीति महापात्रा की उम्मीद पर पानी फेर दिया है। नतीजे चुगली करते हैं कि आज माननीय विधायकों के लिए सपा सबसे कम विधायक वाली पार्टी है।

Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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