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Mayawati Birthday: मायावती के लिए सियासी वजूद बचाने की लड़ाई, लोकसभा चुनाव में करना होगा कड़ी चुनौती का सामना
Mayawati Birthday: बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने जमीन से उठकर सियासी मैदान में बुलंदी का सफर तय किया है। 1956 में आज के दिन पैदा होने वाली मायावती ने चार बार उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे की मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभाली। राजनीति के मैदान में सक्रिय होने के बाद से ही मायावती प्रमुख सियासी किरदार बनी हुई है।
Mayawati Birthday: बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने जमीन से उठकर सियासी मैदान में बुलंदी का सफर तय किया है। 1956 में आज के दिन पैदा होने वाली मायावती ने चार बार उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे की मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभाली। राजनीति के मैदान में सक्रिय होने के बाद से ही मायावती प्रमुख सियासी किरदार बनी हुई है। मौजूदा समय में उन्होंने विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया से हाथ नहीं मिलाया है मगर कांग्रेस उन्हें गठबंधन में शामिल करने को बेकरार है। इसी से समझा जा सकता है कि बसपा के कमजोर होने के बावजूद मायावती सियासी मैदान में अहम फैक्टर बनी हुई हैं।
मायावती पिछले काफी समय से अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ने की बात कहती रही हैं मगर मायावती के लिए आगे की सियासी राह आसान नहीं मानी जा रही है। दरअसल 2014 और 2019 के चुनाव में झटका खाने के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा था। मायावती की अपने वोट बैंक पर भी पकड़ कमजोर होती जा रही है। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव मायावती के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं। अगर इस चुनाव में मायावती अपनी ताकत दिखाने में कामयाब नहीं हो सकीं तो उनके लिए आगे का सियासी सफर काफी मुश्किल हो जाएगा।
इस तरह सियासत में हुई बहनजी की एंट्री
बसपा मुखिया मायावती का जन्म 1956 में आज ही के दिन दिल्ली में हुआ था। मायावती के पिता का नाम प्रभुदयाल और मां का नाम रामरती था। मायावती का पैतृक गांव बादलपुर उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले में स्थित है। मायावती 6 भाई और दो बहन हैं। मायावती की मां ने अनपढ़ होने के बावजूद अपने बच्चों की पढ़ाई में खासी दिलचस्पी ली। मायावती ने 1975 में दिल्ली के कालिंदी कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद 1976 में उन्होंने गाजियाबाद के वीएमएलजी कॉलेज से बीएड की डिग्री ली। बाद में उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की।
शिक्षा पूरी करने के बाद मायावती ने शिक्षिका के रूप में भी काम किया मगर इसी दौरान मायावती की मुलाकात कांशीराम से हुई जिसके बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई। मायावती के पिता उन्हें आईएएस बनाना चाहते थे। वे अपनी बेटी पर कांशीराम के इस असर को देखकर खुश नहीं थे मगर मायावती धीरे-धीरे काशीराम के मिशन के साथ जुड़ती चली गईं। काशीराम के कहने पर ही उन्होंने सियासत की दुनिया में कदम रखा और उसके बाद लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ती गईं।
चार बार संभाली सीएम पद की कमान
सियासी मैदान में उतरने के साथ ही मायावती ने महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी थी। मायावती ने 1989 में पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता। इसके बाद वे 1998, 1999 और 2004 का लोकसभा चुनाव जीतने में भी कामयाब रहीं। 1994 में वे पहली बार राज्यसभा के लिए चुनी गई थीं। उन्होंने भाजपा के सहयोग से 3 जून 1995 को पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली। इसके बाद 18 अक्टूबर 1995 तक वे प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। 21 मार्च 1997 को वे फिर दूसरी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। मायावती को 3 मई 2002 को तीसरी बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।
2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती की अगुवाई में बसपा ने उत्तर प्रदेश में अपनी ताकत दिखाई थी। 12 मई 2007 को चौथी बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती ने मुख्यमंत्री के रूप में पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। मायावती अपने राज में सख्त कानून व्यवस्था के लिए जानी जाती थीं। कानून व्यवस्था के मामले में उनके सख्त तेवर की आज भी मिसाल दी जाती है। अपनी मजबूत सियासी पकड़ के दम पर ही मायावती उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे का चार बार मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहीं।
विधानसभा चुनाव में लगातार लगा झटका
उत्तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनाव में मायावती को करारा झटका लगा था और समाजवादी पार्टी ने प्रदेश की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 224 सीटों पर जीत हासिल करके प्रदेश में सरकार बनाई थी जबकि बसपा 80 सीटों पर सिमट गई थी। भाजपा को 47 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि कांग्रेस 28 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी।
2017 का विधानसभा चुनाव मायावती के लिए और भी खराब रहा। 2017 के चुनाव में भाजपा गठबंधन ने 324 सीटों पर जीत हासिल करके प्रचंड बहुमत हासिल किया था। भाजपा को 311 सीटों पर जीत मिली थी जबकि सहयोगी दलों अपना दल ने 9 और सुभासपा ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। सपा-कांग्रेस गठबंधन को 54 सीटों पर जीत मिली थी जबकि बसपा 19 सीटों पर सिमट गई थी।
2022 के विधानसभा चुनाव में तो मायावती को इतना करारा झटका लगा कि उनकी पार्टी सिर्फ एक सीट हासिल कर सकी। 2022 के चुनाव में भाजपा गठबंधन को 273 सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि सपा गठबंधन 125 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की। कांग्रेस को दो सीटों पर कामयाबी मिली जबकि बसपा को सिर्फ एक सीट मिली।
लोकसभा चुनाव में भी ताकत दिखाने में नाकाम
विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि मायावती का जनाधार भी खिसकता जा रहा है। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा 20 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में मोदी लहर ने ऐसा असर दिखाया कि बसपा का खाता तक नहीं खुल सका। मायावती के लिए 2014 का लोकसभा चुनाव बड़ा सियासी झटका था।
उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया। सपा से गठबंधन करने का मायावती को फायदा भी मिला और बसपा 2019 के चुनाव में 10 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। मायावती की जीत में सपा से हाथ मिलाने का भी खासा असर रहा,लेकिन चुनाव के बाद सपा से बसपा का गठबंधन टूट गया।
2024 की जंग में देनी होगी अग्निपरीक्षा
अब 2024 का लोकसभा चुनाव होने वाला है और ऐसे में बहनजी के सामने इस चुनाव में अपनी ताकत दिखाने की बड़ी चुनौती है। मायावती ने विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया में शामिल होने से इनकार कर दिया है। अब वे अपने दम पर ताकत दिखाने की कोशिश में जुटी हुई हैं। दलित,मुस्लिम और अति पिछड़ा गठजोड़ मायावती की बड़ी ताकत रहा है मगर इस वोट बैंक पर मायावती की पकड़ लगातार कमजोर हुई है। हाल के दिनों में मायावती लगातार पार्टी पदाधिकारियों की बैठक में जुटी हुई है।
इसके साथ ही उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया है। आकाश आनंद बसपा के वोट बैंक को एकजुट बनाए रखने और युवाओं को पार्टी से जोड़ने की कोशिश में झूठ हुए हैं। बसपा के इतिहास में पहली बार मिस कॉल नंबर जारी किया गया है। आकाश आनंद ने इस नंबर के जरिए खुद से जुड़ने की अपील की है।
बसपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि आकाश आनंद की देखरेख में पार्टी का नया सोशल मीडिया सेल बनाया जा रहा है। अब यह देखने वाली बात होगी कि मायावती और आकाश आनंद के इन प्रयासों का कितना असर पड़ता है। 2024 का लोकसभा चुनाव मायावती के लिए अपना सियासी वजूद बचाने की बड़ी चुनौती साबित होगा। सबकी निगाहें इस बात पर लगी हुई हैं कि मायावती इस सियासी परीक्षा में कामयाब हो पाती हैं या नहीं।