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यूपी में बढ़ी बेटों की चाह, थामने आई नवेली बुंदेली
लैंगिक भेदभाव की इस स्थिति को बदलने के लिए प्रयासों में भी बदलाव की जरूरत है। नवेली बुंदेली पहल नई राह दिखाती है।
Banda: विकास की राह चल रहे उत्तर प्रदेश के लोगों की मानसिकता जहां की तहां ठिठकी है। 90 फीसद परिवार अभी भी बेटी से ज्यादा बेटों की चाह रखते हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के शोध में आठ जिलों के 1280 में 1152 परिवारों ने पहली संतान के रूप में बेटे की चाहत दर्शाई है।
लैंगिक भेदभाव की इस स्थिति को बदलने के लिए प्रयासों में भी बदलाव की जरूरत है। नवेली बुंदेली पहल नई राह दिखाती है। अस्पतालों से घरों तक नवजात कन्या का केक काटकर जन्मोत्सव मनाने और विभिन्न योजनाओं का एकमुश्त लाभ दिलाकर परिवार और समाज की मानसिकता बदलने के प्रयासों का हश्र चाहे जो हो लेकिन आईएएस अधिकारी अनुराग पटेल की सोच पर आधारित इस प्रशासनिक पहल को घुप्प अंधेरे में उम्मीद की किरण माना जाता है। सब कुछ ठीक रहा तो बांदा का यह माडल प्रदेश में मशाल बन सकता है।
राष्ट्रीय महिला आयोग के प्रोजेक्ट पर शोध में शामिल उत्तर प्रदेश के आठ जिलों में बुंदेलखंड के झांसी और ललितपुर जिले भी शुमार हैं। लेकिन बुंदेलखंड के ही बांदा जिले में नवेली बुंदेली का अभिनव प्रयोग सामने आया है। संयोग से जिस दिन विश्वविद्यालय का शोध सार्वजनिक हुआ उसी दिन बीते 24 दिसंबर को नवेली बुंदेली सोच का भी अवतरण हुआ।
बांदा के रानी दुर्गावती मेडिकल कालेज सभागार में नवेली बुंदेली कार्यक्रम लांच हुआ। जिलाधिकारी अनुराग पटेल ने अपनी नई सोच को जमीन पर उतारा और अगले ही दिन अटल जयंती पर बखूबी विस्तार भी दिया। अब शहरों से गांवों तक नवजात कन्या का जन्मोत्सव मनाकर योजनाओं की सौगात के साथ बेटी पर भारी बेटों की चाह थामने का सिलसिला जारी है। उत्साह से लबरेज बांदा जिला प्रशासन सकारात्मक परिणाम की उम्मीदें संजोए है।
ये है नवेली बुंदेली
नवेली बुंदेली सोच को पूरी शिद्दत से लागू करने में जुटे बांदा डीएम अनुराग पटेल बताते हैं- इस अनूठी पहल का उद्देश्य जिले में लैंगिक भेदभाव कम करना है। कन्या भ्रूण हत्या नियंत्रण से अनुपात सुधरेगा। जागरूकता फैलाने और बालिकाओं के प्रति अभिभावकों का सम्मान बढ़ाने के लिए केक काटकर नवजात बच्चियों का जन्मोत्सव मनाने की शुरुआत हुई है।
इस दौरान बालिका को जन्म पर लगने वाले टीके से संतृप्त कर योजनाओं का लाभ दिलाया जाता है। श्रमिक की नवजात बेटी और मां को एफडी समेत 78000 रुपए की आर्थिक मदद मिलती है। सुमंगला योजना और मातृत्व वंदना योजना से 2000-2000 रुपए की सहायता देकर जननी सुरक्षा योजना का भी लाभ दिलाया जा रहा है।
6 माह पूरे होने पर बालिका का अन्नप्रासन उत्सव मनेगा। इससे समाज में सकारात्मक संदेश जाएगा। लोग बेटियों को अभिशाप की बजाय वरदान मानेंगे। एक नहीं दो कुल चलाने वाली बेटियों का महत्व समझेंगे। पहल के प्रति अपनी संजीदगी का इजहार उन्होंने शेर से किया-
बहुत गुरूर है तुझको ऐ सर फिरे तूफां
मुझे भी जिद है कि दरिया को पार करना है
यूं बढ़ रही पहल
डीएम के सारथी बने सीडीओ वेदप्रकाश मौर्य ने बताया- जिले के अधिकारियों और कर्मचारियों के सहयोग से मानसिकता में बदलाव की इबारत लिखी जा रही है। गांव में बच्ची के जन्म पर ग्राम प्रधान, सचिव, कोटेदार एवं सहायक अध्यापक को नवेली बुंदेली जन्मोत्सव मनाने की जिम्मेदारी दी गई है।
सरकारी अमला नवजात बच्ची के घर केक लेकर जाता है और बाकायदा बैनर लगाकर कन्या जन्मोत्सव मनाता है। बच्ची व परिवार को सरकारी योजनाओं के लाभ से नवाजा जाता है। हालांकि सरकारी अमले को कोरोना से निपटते हुए चुनाव कार्यक्रम के साथ अन्य गतिविधियां भी संचालित करनी होती हैं।
बावजूद इसके नवेली बुंदेली कार्यक्रम को पूरी शिद्दत से आगे बढ़ाया जा रहा है। ग्राम पंचायत अधिकारी, सचिव, आंगनवाड़ी कार्यकत्री और आशा जन्मी बच्चियों का डाटा संकलित कर रहे हैं। ब्लाक स्तर पर यह काम खंड विकास अधिकारियों के जिम्मे है। सीएचसी, पीएचसी और निजी नर्सिंग होम में जन्मी लड़कियों का अस्पताल में ही केक काटकर नवेली बुन्देली जन्मोत्सव मनाया जाता है। सेल्फी प्वाइंट भी बनता है। उन्होंने भी शेर कहा-
जिस्म तो बहुत संवर चुके रूह का श्रृंगार कीजिए
फूल शाख से न तोड़िए खुशबुओं से प्यार कीजिए
प्रोबेशन विभाग को कमान
नवेली बुंदेली कार्यक्रम की कमान प्रोबेशन विभाग को सौंपी गई है। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट एवं जिला प्रोबेशन सुधीर कुमार कहते हैं- नवेली बुंदेली कन्या जन्मोत्सव को लगातार गति दी रही है। जल्द ही जनपद स्तर पर वृहद कार्यक्रम आयोजित होगा।
अधिकारियों के अलावा जनप्रतिनिधियों को भी बुलाने की योजना है। जिला नोडल अधिकारी ग्राम व ब्लाक नोडल अधिकारियों से समन्वय बनाते हैं। अधीक्षक स्वास्थ्य केंद्र एवं बाल विकास परियोजना अधिकारी सहयोगी की भूमिका में हैं। आगाज बढ़िया है। बेहतर अंजाम की उम्मीद कुलांचे भर रही है।
पहल का असर
नवेली बुंदेली पहल का शुरुआती असर भी नजर आ रहा है। महिला जिला अस्पताल में सरकारी जन्मोत्सव की साक्षी बनी नवजात बेटियों की मांओं वन्दना पत्नी सानू और रश्मि पत्नी रामनारायन से लेकर सुनीता पत्नी देव कुमार और नाजमी पत्नी अब्दुल रहीम तक का चेहरा खुशी से दमकता दिखा। सभी ने कहा- यह नया अनुभव है।
लड़कियों को मोल समझाया गया है। इस मोल को वह घर पड़ोस और नाते-रिश्तेदारों में बांटेंगी। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ मुहिम को आगे बढ़ाएंगी। निजी नर्सिंग होम में बेटियां जन्मी फरहीन पत्नी इरशाद खान, शिवांगी पत्नी प्रवीण कुमार, ममता पत्नी अनूप शुक्ला, शिवानी पत्नी नितीश समाधिया और रीता पत्नी आशीष शंकर ने अनुराग पटेल से मिला जन्म प्रमाणपत्र दिखाकर न केवल खुशी का इजहार किया बल्कि लैंगिक भेदभाव मेटने में का संकल्प भी व्यक्त किया। देखना होगा कि यह संकल्प सिद्धि में कैसे बदलता है।
महिलाओं ने सराहा
भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश उपाध्यक्ष कमलावती हों या राज्य महिला आयोग की सदस्य प्रभा गुप्ता या फिर बांदा की युवा नेत्री वंदना गुप्ता, सबने नवेली बुंदेली जन्मोत्सव कार्यक्रम को सराहा है। सबका मानना है- बांदा डीएम पटेल की पहल रंग लाएगी। इससे माता-पिता बच्चियों को बोझ समझने के बजाय बच्ची के जन्म पर अपने को गौरवान्वित महसूस करेंगे। मिशन शक्ति मुहिम को नया मुकाम मिलेगा। बांदा का यह माडल यूपी की मशाल बनेगा।