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Maithili Sharan Gupt Wikipedia: राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती आज, क्यों बना ये दिन 'कवि दिवस'
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के पौत्र सौरभ गुप्त का कहना है कि उनके दद्दा जी का साहित्य जहां नारी संवेदना के लिए समर्पित रहा वहीं, राष्ट्रभक्ति का भी प्रतिनिधित्व करता है।
Maithili Sharan Gupt Wikipedia: बुन्देलखंड के चिरगांव कस्बे में जन्मे मैथिलीशरण गुप्त की जयंती आज मनाई जाएगी। इनका जन्म 3 अगस्त 1886 को हुआ था। इनके पिता का नाम रामचरण सेठ और मां का नाम काशीबाई था। मां काशीबाई काफी धार्मिक और सुशिक्षित थीं। इस कारण मैथलीशरण पर धर्म और राष्ट्रभक्ति की गहरी छाप रही। पिता बृजभाषा में कविताएं लिखते थे। जिससे बालक का रुझान साहित्य की ओर हो गया।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के पौत्र सौरभ गुप्त का कहना है कि उनके दद्दा जी का साहित्य जहां नारी संवेदना के लिए समर्पित रहा वहीं, राष्ट्रभक्ति का भी प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने बताया कि उनकी कृति यशोधरा में गौतम बुद्ध के घर छोड़कर जाने के बाद यशोधरा का जो विरह विर्णन किया गया है। वह नारी मन की व्यथा को व्यक्त करता है। उन्होंने लिखा है कि 'अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी।' गौतम बुद्ध के चुपचाप रात में घर छोड़कर चले जाने पर मैथलीशरण गुप्त ने यशोधरा की विरही मनोदशा और नारी मन को दृढ़ता का वर्णन करते हुए लिखा है, सखी वो मुझसे कहकर तो जाते, कहते तो क्या मुखजो पथ बाधा में पाते।
देश के बड़े साहित्यकारों का आना जाना
चिरगांव में स्थित मैथलीशरण गुप्त के मकान को लोग बड़ी खबरी के नाम से जानते हैं। उनकी पुत्रवधु शशि गुप्त बताती हैं कि जब दद्दा जीवित थे तब हरिवंश राय बच्चन, अज्ञेय, महादेवी वर्मा का बड़ी बखरी में आना जाना लगा रहता था। साहित्यिक गोष्ठियां भी जमा करती थी। 23 नवंबर 1929 को महात्मा गांधी भी मैथिलीशरण गुप्त के घर के सदस्य की तरह ही रहने वाले साहित्यकार मुंशी अजमेरी के आमंत्रण पर चिरगांव राष्ट्रकवि मैथली शरण गुप्त के आवास पर आए थे। महात्मा गांधी ने ही गुप्त जी के पचासवें जन्मदिन पर उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि से अंलकृत किया था। गुप्त जी को पद्दा विभूषण से भी सम्मानित किया गया।
राखी बांधने आती थीं महादेवी वर्मा
मैथिलीशरण गुप्त की पुत्रवधु शशि गुप्त कहती हैं कि देश के ख्यातिनाम कवयित्री महादेवी वर्मा हर सावन पर दद्दा का राखी बांधने चिरगांव आती थी। जब कभी वे नहीं आ सकीं तो दद्दा उनके पास राखी बंधवाने पहुंच जाते थे। यह बहन भाई का रिश्ता जीवन पर्यंत चलता रहा है।