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Jhansi News: राजभवन के आदेशों की खुलेआम उड़ाई जा रही हैं धज्जियां, कुलपति को गुमराह कर रहा है अधीनस्थ स्टॉफ
Bundelkhand University News: बुंदेलखंड विश्वविद्यालय द्वारा राजभवन से निर्गत जांच आदेशों की लगातार अनदेखी की जा रही है। राजभवन से आने वाले आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
Jhansi News: बुंदेलखंड विश्वविद्यालय (Bundelkhand University) द्वारा राजभवन से निर्गत जांच आदेशों की लगातार अनदेखी की जा रही है। प्रशासन की इतनी निर्भयता मन में संशय पैदा करती है कि राजभवन द्वारा भेजे जाने वाले पत्र महज एक औपचारिकता है या सचमुच कार्यवाही करने की मंशा।
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी में स्ववित्त पोषित योजना (self funded scheme) के अंतर्गत कार्यरत शिक्षक तथा कर्मचारी कई वर्षों से न्याय की आशा में अपने साथ हो रहे अन्याय, विश्वविद्यालय मै फैले भ्रष्टाचार एवं संबंधवाद के विरुद्ध न सिर्फ विश्वविद्यालय प्रशासन से बल्कि राजभवन तक लगातार गुहार लगाते चले आ रहे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन (university administration) द्वारा अनुशासनात्मक कार्यवाही का डर सताता है फिर भी हिम्मत जुटाकर बड़ी मुश्किलों के बाद राजभवन में मुलाकात का समय लेते है और अपनी समस्याएं विस्तार से बताने के बाद शिकायती पत्र लिखित में देकर आते हैं, जिन पर कार्यवाही का पूर्ण आश्वासन भी दिया जाता है।
फिर शुरू होता है इंतज़ार
शिकायती पत्र के आधार पर कार्यवाही स्वरूप एक समय सीमा के अंदर जांच आदेश के माध्यम से विश्वविद्यालय से आख्या मांगी जाती है जो कुलपति कार्यालय में बैठे संबंधियों द्वारा कार्यालय में ही दबा दी जाती है। फिर कुछ दिन कोई कार्यवाही न दिखने पर शिकायतकर्ता अनुस्मारक भेजता है। प्रत्युत्तर में पुनः विश्वविद्यालय से आख्या मांगी जाती है फिर वही कुलपति कार्यालय के संबंधी या तो उसे वहीं दफ़न कर देते हैं या रद्दी के टोकरी में डाल देते हैं।
कुलपति का स्टॉफ शिकायतकर्ता का करता हैं मानसिक तनाव
विश्वविद्यालय में जॉच समिति का गठन करवाकर जांच अधिकारियों से साठ गांठ कर शासनदेशों को तोड़मरोड़कर राजभवन को एक फर्जी जवाब बनाकर भेज दिया जाता है। जवाब से असंतुष्ट शिकायतकर्ता फिर पत्र लिखता है और फिर वही प्रकिया और वही परीणाम, ढाक के तीन पात। बार बार प्रक्रिया पढ़ने में ही कितनी खीज उठती है तो सोचिए जो शिकायतकर्ता उसका हिस्सा है और वर्षों से प्रयासरत है उसका क्या हाल होता होगा.. पर कुलपति कार्यालय में बैठे ये लोग पत्राचार और कार्यवाही में लगने वाले समय से भलीभांति परिचित होते हैं इसलिए इनके मन में कोई भय नहीं रहता। इन्हें अनुमान होता है कि शिकायतकर्ता कितनी दूर जाकर टूट जाएगा। विश्वविद्यालय सिर्फ यहां तक सीमित नहीं रहता, उस शिकायतकर्ता की छोटी से छोटी गलती ढूंढकर उस पर विश्वविद्यालय स्तर पर कार्यवाही कर जवाब मांग मांग कर उसे और अधिक मानसिक तनाव देता है ताकि वो राजभवन में की जाने वाली लिखापढ़ी बंद कर दे।
इन पत्रों का जवाब कुलपति के पास नहीं है?
पिछले कई वर्षो से राजभवन से ऐसे कितने ही जॉच आदेश जारी किए गए जिन पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुईं। आचार्य (प्रो सुनील कबिया) के खिलाफ उनकी अनियमित नियुक्ति के जांच के दो बार राजभवन से आदेश जारी किए गए (पत्र संख्या: ई-3514/16-जी. एस./2021(ए), जुलाई 16, 2021 एवं पत्र संख्या: ई-2967/16-जी. एस./2014-IV, अप्रैल 15,2014 आज तक उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई क्योंकि उन्हीं के अंतर्गत शोध कार्य पूर्ण करने वाला कुलपति कार्यालय मै बैठा है तो गुरुदक्षिणा तो बनती है। वहीं दूसरे का पुत्र उसी विश्वविद्यालय का छात्र है जहां उस आचार्य की शिक्षा पूर्ण हुईं तो जाहिर है उसकी वहां पकड़ अच्छी है और अपनों के नुकसान की परवाह तो हर किसी को होती है, शिकायतकर्ता जिए या मरे कौन सा उनका रिश्तेदार है।
फूड साइंस का शिक्षक देख रहा हैं विश्वविद्यालय का विधि विभाग?
राजभवन से आया एक अन्य जांच आदेश ( संख्या: ई-7040/16-जी. एस./2021-V अक्तूबर 27, 2021) अन्य शिक्षक (डॉ डी के भट्ट) के खिलाफ है। गौर करने योग्य है कि विश्वविद्यालय में कुलसचिव एवं वित्त अधिकारी जो कि शासनाधिकारी हैं इनके होते हुए विश्वविद्यालय में ये शिक्षक संपत्ति अधिकारी है। संबंधवाद और भ्रष्टाचार की सीमा तो देखिए फूड साइंस का शिक्षक विश्वविद्यालय का विधि विभाग देख रहा है जिसे विधि का कुछ भी ज्ञान नहीं। अनियमित असीमित अनियमितताएं जिनमे सुधार लाना तो दूर कोई सोचना भी नहीं चाहता। जहां शिक्षक के साथ कुलपति कार्यालय के कर्मचारी के भी जांच आदेश राजभवन से आ रहे है ( संख्या: ई-4858/16-जी. एस./(बी) सितंबर21, 2021 ) लेकिन इस पर भी अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई यहां तक कि उस कर्मचारी का स्थानांतरण भी नहीं किया गया कि जांच निष्पक्ष तरीके से की जा सके।
कुलपति कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं?
कुछ नियमित शिक्षकों ने विश्वविद्यालय को देश की नहीं अपनी विरासत समझ लिया है कुछ गिने चुने लोग ही कई ऐसे पदों पर विराजमान हैं। कुलपति कार्यालय के उन महानुभावों की पूरी मेहनत शामिल होती है। इन लोगों का मानना होता है कि कुलपति उनके कहने पर कोई आदेश जारी नहीं कर सकते हैं, जो हम कहेंगे, कुलपति वहीं करेंगे। इस तरह का माहौल वहां पर बना हुआ है। एक ईमानदारी कुलपति की छवि धूमिल करने पर उतरे हैं। कुलपति द्वारा कोई कार्यवाही न होना मतलब या तो वो अंजान है उनकी टेबल तक कोई पत्र पहुंचाया नहीं जा रहा है या वो भी इन शिक्षकों के दबाव में है। शिकायतकर्ता की हिम्मत, सुधार की चाहत वक्त के साथ दम तोड़ देती है जहां वो पहले से भी असहाय और लाचार होता है।
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