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Jhansi News: काम नहीं करने पर भूखा रखा जाता है आदिवासी बच्चों को, अभिभावकों ने मांगा न्याय
Jhansi News: जनपद झांसी में रक्सा थाना क्षेत्र के ग्राम सारमऊ में स्थित महारानी लक्ष्मीबाई वनवासी छात्रावास में सहारिया आदिवासी छात्रों को बंधक बनाकर काम करवाया जाता है और काम नहीं करने पर भूखा रखा जाता है।
Jhansi News: रक्सा थाना क्षेत्र (Raksa Police Station Area) के ग्राम सारमऊ (Village Saramau) में स्थित महारानी लक्ष्मीबाई वनवासी छात्रावास (Maharani Laxmibai Vanvasi Hostel) में सहारिया आदिवासी छात्रों को बंधक बनाकर उनसे झाड़ू-पोंछा (broom from students) करवाया जा रहा है। काम नहीं करने पर बच्चों को भूखा रखकर (kids go hungry) उनके साथ मारपीट की जाती है। घर वालों को कुछ बताने पर जान से मारने की धमकी देकर डराया जाता है। बच्चे भय के मारे चुपचाप काम करते है। प्रताड़ना बढ़ जाने से बच्चों व अभिभावक शुक्रवार को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचे। यहां पर उन्होंने न्याय की मांग की है।
गरीब और आदिवासी बच्चों के लिए प्रदेश और केंद्र सरकार कितनी भी योजनाएं लेकर आए लेकिन कुछ सरकारी मुलाजिम इनका शोषण (exploitation of children in hostel) करने से बाज नहीं आते। छात्रावास में रह रहे अधिकांश बच्चे गरीब और आदिवासी समुदाय से हैं और ग्रामीण क्षेत्रों से आकर यहां पढ़ाई कर रहे हैं। चिरगांव थाना क्षेत्र के ग्राम नरी में रहने वाले सुखलाल आदिवासी, श्रीमती रामकुमारी आदिवासी, मीना आदि ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय में शिकायती पत्र देते हुए बताया है कि रक्सा के ग्राम सारमऊ में महारानी लक्ष्मीबाई बनवासी छात्रावास है।
छात्रावास में बच्चों को भरपेट भोजन नहीं देते
इसमें आनंद, आशिक, अमर, राहुल, दीपक, अभिषेक, विशाल, जयसिंह आदि रहते हैं। यहां रहकर उक्त बच्चे पढ़ाई करते हैं। शिकायती पत्र में कहा है कि छात्रावास में बच्चों को भरपेट भोजन नहीं देते हैं। सिर्फ खाने में चावल दिए जाते हैं और कर्मचारी स्टॉफ बच्चों के हिस्से के राशन से रोटी, सब्जी, दाल, चावल आदि खाना खाते हैं और बची हुई रोटी बच्चों को देते हैं और बच्चों के रोटी मांगने पर बच्चों को बुरी तरह से मारपीट करते हैं और स्कूल से नाम काटने की धमकी देते हैं। नाबालिक बच्चों से छात्रावास में काम कराते हैं।
बच्चों को घरेलू नौकर बनाकर काम कराया जा रहा है- अभिभावक
शिकायती पत्र में कहा है कि विशाल और दीपक को वहां के कर्मचारी ने कान में थप्पड़ मारे हैं जिसके कारण दोनों बच्चों के नाक, कान से खून आ गया था। जिससे बच्चों की हालात खराब हो गई थी। इसके अतिरिक्त छात्रावास के और भी बच्चों के साथ मारपीट की गई है। अभिभावकों का कहना है कि आदिवासी आदिम जाति अनुसूचित जाति उत्कर्ष योजना के तहत आदिवासी बच्चों का चयन बेहतर शिक्षा के लिए सारमऊ भेजा गया था। उन्होंने एक तरह से घरेलू नौकर बनाकर काम कराया जा रहा है। परिजनों का कहना है कि प्रवेश के दौरान उनसे पैसों की मांग करता है। इस कड़कड़ाती ठंड में भी बच्चे देरशाम विरोध करते हुए छात्रावास से बाहर निकाले जाते हैं।
शिक्षा के मंदिर में बच्चों के साथ छुआछूत! परिजन ही दे रहे भेदभाव की सीख
आज 21 वीं सदी में भी समाज से छुआछूत की बीमारी पूरी तरह खत्म नहीं हो पाई है। कहीं ना कहीं से छूआछूत को लेकर कोई ना कोई खबर सुनने को मिल ही जाती है। ऐसा की एक मामला सारमऊ में आदिवासी बच्चों के साथ हुआ है। यहां दूसरे समाज के लोग छूआछूत करते हैं। शिक्षा का मंदिर शिक्षकों के बार-बार समझाने का भी असर बच्चों पर नहीं होता। इसमें बच्चों का दोष भी नहीं, क्योंकि अगर बच्चों की मानें तो उनके परिजनों की साफ हिदायत है कि वो आदिवासी बच्चों से दूर ही बैठा करें। आदिवासी बच्चे अगर उनके साथ बैठ भी गए तो उन्हें मारपीट कर भगा देने को कहा गया है। ऐसे में सवाल है कि जब शिक्षा के मंदिर में ही इस तरह के हालात रहेंगे, तो इन बच्चों के भविष्य को लेकर क्या उम्मीद की जा सकती है, अगर बच्चों को समझाने की जगह शिक्षक इनके परिजनों को समझा जाएं, तो शायद हालात बदल सकते हैं।
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