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UP Election 2022: राजनैतिक दल बाहरी पर लगा रहे दांव, अपने हो गए पराए, प्रत्याशी को करना पड़ रहा है विरोध का सामना

UP Election 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम दल जीत की रणनीति तैयार कर रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टियां जहां स्थानीय नेताओं को छोड़कर बाहरी उम्मीदवारों को प्रत्याशी बना रहीं है, तो जनता का विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है।

B.K Kushwaha
Report B.K KushwahaPublished By Shashi kant gautam
Published on: 7 Feb 2022 1:01 PM GMT
UP Election 2022: Political parties are betting on outsiders, they have become strangers, the candidate is facing opposition
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झाँसी: राजनैतिक दल बाहरी पर लगा रहे दांव: Photo - Social Media

Jhansi News: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम दल जीत की रणनीति तैयार कर रहे हैं। जीत किसी भी कीमत पर होनी चाहिए। आप निर्णय लेने की क्षमता तभी रखते हैं, जब आपके पास निर्णय लेने के लिए पॉवर हो। पॉवर में आने के लिए चुनाव में जीत जरुरी है। ऐसे में तमाम राजनैतिक दल विधानसभा चुनाव 2022 में जीत को ही अंतिम लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। ऐसे में उन तमाम चेहरों पर दांव लगाया जा रहा है, जो जीतने की क्षमता रखते हैं।

ऐसे में विचारधारा और संगठन के प्रति समर्पण भाव का मामला काफी पीछे छूट रहा है। वर्ष 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने दूसरे दलों से आए नेताओं पर दांव लगाया और यह फॉर्मूला हिट रहा। एक बार फिर इसी फॉर्मूला पर सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी आगे बढ़ती दिख रही है। अन्य दलों का हाल भी समान है। भाजपा 2017 में करीब तीन-चौथाई सीटों पर जीत के साथ सत्ता में आई थी। वहीं, इस मामले में सरकार और संगठन का दावा है कि उसके काम से जनता गदगद है और जीत तय है। बावजूद इसके मैदान में उतारने के लिए पार्टी में चेहरे कम पड़ रहे हैँ। अफसरशाही से लेकर दूसरे दलों के बागियों से यह कसर पूरी की जा रही है।

'कर्ज और पलानय नहीं, 'छुट्टा पशुधन और सिंचाई बना चुनावी मुद्दा

बुंदेलखंड क्षेत्र में पिछले कई दशक से किसानों का कर्ज और पलायन मुख्य समस्या बनी हुयी है, लेकिन विधानसभा चुनाव में ये मुद्दा हावी नहीं है। अलबत्ता, पूरे ग्रामीण अंचल में आवारा जानवरों की समस्या चुनाव में चर्चा का विषय जरुर है। सिंचाई के बनी नहरें पिछले पांच साल से सूखी पड़ी है और इस मुद्दे पर 2017 में चुनाव जीतकर जनप्रतिनिधि बने नेता भी पांच वर्ष तक इस मामले में मौन रहे। सभी राजनीतिक दलों ने इस समस्या पर सत्ता पक्ष को घेरने की कोशिश जरुर की है लेकिन किसी भी दल ने इस समस्या के समाधान का रास्ता अब तक अपने चुनावी वादों में नहीं बताया है।

एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक बुंदेलखंड से पांच वर्ष में 65 लाख किसानों के पलायन के बावजूद किसानों का कर्ज और पलायन चुनाव का मुद्दा न बन पाने के लिए पीछे सियासी मजबूरियां है। बताते हैं कि पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार में केंद्र की एक उच्चस्तरीय समिति ने बुंदेलखंड में पलायन करने वाले किसानों की एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में करीब 65 लाख किसानों के अन्यत्र पलायन करने का जिक्र है।

बुंदेलखंड क्षेत्र में आगरा जानवर किसानों की मौजूदा मुसीबत बन गए हैं। इन जानवरों से फसल की रखवाली के लिए किसान खेत में ' रतजगा तक कर रहे हैं। गौवंश के लिए बनायी गौशालायें सिर्फ कागजों में संचालित हैं और गौवंश की रक्षा और पालन का दावा करने वाली सरकार की जनप्रितिनिधि मौन हैं। वे भी अन्ना जानवरों और गौवंश के लिए आए चारे की धनराशि से अपना पेट भर रहे हैं।

झाँसी सदर, बबीना और मऊरानीपुर में फंसा है पेंच

झाँसी सदर सीट पर भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा में जातिवाद आंकड़ा फंसा हुआ है। हर प्रत्याशी अपनी जाति पर आश्रित है, लेकिन भाजपा की सीट काफी खतरे में नजर आ रही हैं। इस सीट पर विधायक रवि शर्मा प्रत्याशी है। इनके खिलाफ भाजपा में बगाबत बनी हुई है। झांसी सदर से भाजपा विधायक रवि शर्मा और कांग्रेस प्रत्याशी राहुल रिछारिया अपनी जाति पर ज्यादा विशेष नजर रखे हुए हैं। लोगों का कहना है कि रवि शर्मा ने अपने 10 वर्ष की विधायकी में विकास के मुद्दें पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है।

वहीं कांग्रेस प्रत्याशी राहुल रिछारिया पर बंगला संस्कृति हावी है और वे ज्यादा लोगों से मुलाकात नहीं करते हैं। इसके अलावा कांग्रेस पार्टी में फूट से उनकी हालत पतली नजर आ रही है। कांग्रेस झांसी के शहर अध्यक्ष के सैकड़ों समर्थकों के साथ त्यागपत्र देने से उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

बबीना में सपा प्रत्याशी से दूरी बना रही जनता

इसी तरह बबीना विधानसभा क्षेत्र में सपा प्रत्याशी यशपाल सिंह की हालत अब काफी गिरती नजर आ रही हैं। यहां सपा के धुरंधर नेता वीरु के भाजपा नें जाने से यशपाल यादव के प्रचार- प्रसार में काफी असर पड़ा हैं। मतदाताओं ने यशपाल से दूरियां बनानी शुरु कर दी है। इस संबंध में बबीना क्षेत्र के लोगों का कहना है कि अगर सपा के प्रत्याशी को जिताएंगे तो वह क्षेत्र में घूमते नजर नहीं आएंगे। लोगों का मानना है कि वे विदेश भ्रमण पर कुछ ज्यादा ही रहते हैं और बबीना क्या उनसे लोग झांसी में भी मुलाकात नहीं कर पाते हैं।

मऊरानीपुर में अपना दल-भाजपा प्रत्याशी को करना पड़ रहा है विरोध का सामना

वहीं, मऊरानीपुर में मतदाताओं ने सपा प्रत्याशी तिलक चंद्र अहिरवार और अपना दल-भाजपा की संयुक्त प्रत्याशी रश्मि आर्या को नकार रहे हैं। लोगों का कहना है कि रश्मि आर्या पूर्व में विधायक रही हैं मगर उनके पति की गुंडागर्दी के चलते लोग दहशत में नजर आते हैं। वहीं उन पर दलबदलू का भी ठप्पा लगा हुआ है। इसके चलते बीते रोज उन्हें क्षेत्र की जनता ने काले झंडे दिखाये थे।

इसी प्रकार मऊरानीपुर क्षेत्र की जनता का मानना है कि अगर सपा प्रत्याशी तिलक अहिरवार को जिताएंगे तो वह भी यहां से गायब नजर आएंगे। वहीं बसपा प्रत्याशी रोहित रतन भी झांसी के हैं और उनके पिता रतनलाल 3 बार अलग-अलग दलों भाजपा, सपा और बसपा से विधायक रह चुके हैं। उनका कहना है कि अगर कोई भी पार्टी यहीं के रहने वाले प्रत्याशी को मैदान में उतार देती तो जनता खुलेआम ऐसे प्रत्याशी को सपोर्ट कर सकती है। वहीं गरौठा विधानसभा में सपा और भाजपा के मध्य भिड़ंत नजर आ रही हैं लेकिन मतदाता विकास और सुरक्षा के मुद्दे को लेकर काफी गंभीर नजर आ रहे हैं। क्षेत्र की गुंडई और बालू खनन बिल्कुल पसंद नहीं है।

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