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Mahoba News- नवजात को थामे बेबस पिता, इलाज के लिए लाचार खड़े मरीज, ये हाल महोबा जिला अस्पताल का...
Mahoba News : पेशे से मजदूर सुंदरलाल अपनी गर्भवती पत्नी रामदेवी को लेकर 2 दिन पूर्व महोबा के महिला अस्पताल आया था। यहां उसकी पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया...
Mahoba News : धरती का भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर, जब अपने काम को रस्म अदायगी मानकर करने लगें, तो फिर गरीब तबके के लोगों का क्या हाल होगा। महोबा में एक बेबस पिता अपने नवजात बच्चे के इलाज के लिए दो सरकारी अस्पतालों के चक्कर लगाने के लिए मजबूर हो जाता है। मुफलिसी के मारे पिता का दर्द शायद सरकारी अस्पतालों में तैनात डॉक्टरों को नजर नहीं आ रहा है।
दरअसल पेशे से मजदूर सुंदरलाल अपनी गर्भवती पत्नी रामदेवी को लेकर 2 दिन पूर्व महोबा के महिला अस्पताल आया था। यहां उसकी पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया। तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, लेकिन आज डॉक्टर ने बताया कि बच्चे की तबियत बहुत खराब है। उसे पीलिया की शिकायत है तो बेबस पिता उसके इलाज के लिए परेशान हो गया।
ये है जिला अस्पताल का हाल
महिला अस्पताल में तैनात डॉक्टर ने मासूम को पुरुष जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया, तो लाचार पिता हाथ में नवजात को उठाये दौड़ता हुआ जिला अस्पताल आ गया। लेकिन यहां तो हद हो गई। जब जिला अस्पताल में मौजूद डॉक्टर ने उसे देखकर फिर वापस महिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। तो उसके सब्र का बांध टूट गया।
बेबस पिता सुंदरलाल बताता है कि वह एक किलोमीटर अपने मासूम बच्चे को लेकर पैदल आ जा रहा है। मजबूर है वह चाहता है कि इसी सरकारी अस्पताल में उसके बच्चे को इलाज मिल जाये। खैर मीडिया के दखल के बाद उसके बच्चे को महिला अस्पताल में ही भर्ती कर लिया गया। पर बड़ा सवाल यह है कि जब यह मुमकिन था तो फिर महिला अस्पताल से उसे रेफर क्यों किया गया।
ये मामला अकेले सुंदरलाल का नहीं है। न जाने कितने सुंदरलाल अपनी गरीबी और मुफलिसी से परेशान होकर भटक रहे हैं। जिनके पास इतना पैसा नहीं है कि वह अपने मासूम बच्चे का किसी प्राइवेट क्लीनिक में इलाज करा सकें। इन्हें सिर्फ सरकारी अस्पताल में इलाज की दरकार है। लेकिन धरती के भगवान को शायद इसकी चिंता और उसकी बेबसी की बिल्कुल फिक्र नहीं है।
जिला अस्पताल में जब नहीं मिलेंगे बेड, कैसे होगा इलाज
महोबा का जिला अस्पताल मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देना तो दूर, उन्हें बेड भी उपलब्ध नहीं करा पा रहा। मरीजों की बढ़ती संख्या के चलते अस्पताल में अव्यवस्थाएं भी बढ़ती चली जा रही हैं। बेड के लिए मरीजों को खासा परेशान होना पड़ता है, लेकिन जिम्मेदार आला अधिकारी इस समस्या के निदान की बात कह कर अपना पल्ला हर बार झाड़ लेते हैं।
यहां एक बेड पर 2 मरीज लेटे हैं, तो वहीं संदीप अपनी मां को भर्ती कराने के लिए भटक रहा है। उसे कोई सही जवाब नहीं मिल पा रहा। अपनी मां को पथरी का दर्द होने पर महोबा शहर का निवासी संदीप जिला अस्पताल लेकर आया था। मगर उसे बेड ही नही मिल पाया। जब मरीज को बेड ही नहीं मिल पाएगा, वो भर्ती ही नहीं हो पाएगा। फिर उसका इलाज कब और कैसे होगा यह बड़ा सवाल है।
जिला अस्पताल में मिलने वाले स्वास्थ्य संबंधी सभी व्यवस्थाओं को बेहतर बताने के कसीदे हर रोज विभाग पढ़ता रहता है। लेकिन असल तस्वीर यह है जिला अस्पताल के अंदर अव्यवस्थाओं का बोलबाला है। मरीजों को इलाज नहीं मिल पा रहा, दवाएं बाहर की लिखी जा रही हैं और भर्ती करने के नाम पर मरीजों के तीमारदारों को यहां तैनात कर्मचारियों की अभद्रता भी झेलनी पड़ती हैं।
हद तो तब हो जाती है जब जिला अस्पताल में मामूली से मामूली बीमारियों के लिए भी मरीजों को रेफर कर दिया जाता है। ऐसे में बेबस ,तकलीफ में आया मरीज अपने इलाज के लिए अपनी बारी और खाली बैड के इन्तेजात में बैठने को करने मजबूर रहता है।