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कैफी की सोच से परिचित होगी दुनिया

raghvendra
Published on: 16 Nov 2018 3:34 PM IST
कैफी की सोच से परिचित होगी दुनिया
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संदीप अस्थाना

आजमगढ़: कैफी आजमी को उनकी शायरी, गीत व किताबों ने दुनिया में अमर बना दिया है। यह अलग बात है कि कैफी को जानने वाला हर शख्स उनकी सोच से परिचित नहीं है। हर कोई यह नहीं जानता कि वह गरीबों से कितनी मुहब्बत करते थे और मजलूमों से उनको कितना गहरा लगाव था। वह अपनी माटी, अपनी जन्मभूमि को कितना चाहते थे। फिलहाल अब वह दिन दूर नहीं जब समूची दुनिया कैफी की सोच से परिचित होगी। कैफी के जीवन, उनकी सोच पर एक डाक्यूमेंट्री बन रही है जो 14 जनवरी 2019 को कैफी के सौवीं जयंती के अवसर पर रिलीज होगी।

कैफी आजमी के सपनों को पूरा करने में जुटी हैं उनकी बेटी शबाना आजमी। पिछले कई दिन से मेजवां गांव में मुंबई से आई टीम कैफी आजमी की असली जिंदगी और उनके सपनों के मेजवां को रील में कैद कर रही है। सुबह होते ही लाइट, कैमरा और एक्शन सुनाई दे रहा है। पिता पर ‘कैफियात’ नाम की बन रही डाक्यूमेंट्री में शबाना के अलावा उनके भाई सिनेफोटोग्राफर बाबा आजमी भी पूरी तन्मयता से लगे हैं। डाक्यूमेंट्री के डायरेक्टर सुमांतो चक्रवर्ती के नेतृत्व में टीम ने कैफी गल्र्स कालेज में भी शूटिंग की है। कैफी आजमी चाहते थे कि गांव की लड़कियों को बेहतर शिक्षा ग्रहण करने के लिए दूर न जाना पड़े। विद्यालय में प्रार्थना सभा, क्लास रूम और पुस्तकालय आदि को कैमरे में कैद किया गया है। डाक्यूमेंट्री में शबाना आजमी का इंटरव्यू भी है जिसमें उन्होंने अपने पिता के बारे में विस्तार से जानकारी दी है।

अपनी माटी से था गहरा लगाव

कैफी साहब को अपनी माटी से गहरा लगाव था। यही वजह रही कि जीवन के आखिरी वर्षों में वह मुम्बई की चकाचैंध भरी जिन्दगी छोडक़र अपने पैतृक गांव मेजवां चले आए थे। गांव की गरीबी ने देख कर उन्होंने तय किया वह अपने गांव से गरीबी भगाकर ही रहेंगे। इसके लिए उन्होंने लोगों को जागरूक करने का काम किया। लोगों को काम धंधे से जुडऩे के लिए प्रेरित किया। गांव के लोगों को यह भी समझाया कि महिलाओं को भी काम करना चाहिए और घर के पुरुषों का हाथ बंटाना चाहिए। ऐसा होने पर ही तरक्की व खुशहाली आयेगी। उन्होंने महिलाओं की रोजगारपरक शिक्षा के लिए भी प्रोत्साहन दिया।

कैफी साहब जीवन के आखिरी क्षणों तक अपने गांव के विकास को लेकर चिन्तित रहे। अंतिम दिनों में उन्होंने बेटी शबाना से कहा था कि वह रहेंगे या नहीं, इसकी चिन्ता उनको नहीं है। उनको बस फिक्र इस बात की है कि उनके बाद गांव के लोगों की देख-रेख कौन करेगा। इस गांव के विकास की जिम्मेदारी कौन संभालेगा। इस पर शबाना ने वादा किया कि वह इन जिम्मेदारियों को संभालेंगी। शबाना ने बखूबी इस जिम्मेदारी को निभाया भी है। आज मेजवां के हर हाथ में रोजगार है। कैफी का गांव किसी शहर से कम नहीं दिखता।

कैफी के दिल में हमेशा जिन्दा रहा कम्युनिस्ट

कैफी आजमी साहब के दिल में एक कम्युनिस्ट हमेशा जिन्दा रहा। जब वे मुम्बई छोड़ कर मेजवां आये तो इस जिले में छोटी रेल लाइन ही थी। बड़ी लाइन न होने की वजह से महानगरों के लिए जाने वालों को वाराणसी आदि शहरों में जाकर ट्रेन पकडऩी पड़ती थी। लोगों की तकलीफों को महसूस कर कैफी साहब ने आजमगड़ में बड़ी लाइन के लिए बड़ा आन्दोलन खड़ा किया। परिणाम यह रहा कि यहां बड़ी रेल लाइन की पटरी बिछ गयी।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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