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Caste Census: अब यूपी में भी उठने लगी है जातिगत जनगणना की मांग, BJP सांसद भी समर्थन
लोकसभा में ओबीसी संशोधन विधेयक पारित होने के बाद अब पिछड़ी जातियों की पहचान और उनकी जनगणना की मांग जोर पकड़ने लगी है।
लखनऊ: लोकसभा में ओबीसी संशोधन विधेयक पारित होने के बाद अब पिछड़ी जातियों की पहचान और उनकी जनगणना की मांग जोर पकड़ने लगी है। इससे पहले बिहार और अन्य राज्यों में यह मांग उठ चुकी है, लेकिन अब मिर्जापुर की सांसद और लोकसभा में एनडीए के घटक दल तथा अपना दल एस की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने भी जातिगत गणना की मांग की है। जबकि भाजपा की सांसद संघमित्रा मौर्या ने भी लोकसभा में चर्चा के दौरान यह बात खुलकर सामने कही तो पार्टी के अंदर अन्य पिछड़ी जाति के सांसदों के बीच सुगबुगाहट शुरू हो गयी है।
संघप्रिय मौर्या ने कहा कि 1931 में आखिरी बार जितगत जनगणना हुई थी और अब तक इसी आधार पर व्याख्या की जा रही है। उन्होंने कांग्रेस पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह साफ करे कि उसने आज तक जातिगत जनगणना क्यों नहीं कराई।
उधर भाजपा के अंदर पिछडी जाति और अनुसूचित जाति के सांसद भी जातिगत जनगणना चाहते हैं पर वो अपना मुंह खोलने से कतरा रहे हैं। केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए गए मंत्रियों एसपी बघेल भानु प्रताप वर्मा पंकज वर्मा कौशल किशोर बीएल वर्मा आदि भी जातिगत जनगणना के पक्ष में बताए जा रहे हैं। उधर भाजपा के एक और सहयोगी दल निषाद पार्टी की भी मांग है कि केवल अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यक की ही जनगणना नहीं होनी चाहिए बल्कि हर जाति के सभी लोग जो वोट डालते हैं चाहे वो जिस जाति का हो, अलग से जनगणना होनी चाहिए।
यहां यह बताना जरूरी है कि सबसे पहले यह मांग बिहार से उठी जहां पर राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव ने यह मांग की। इसके बाद एनडीए के घटक दल जनता दल यू की तरफ से भी इस मांग का समर्थन शुरू हो गया, जिसके बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार भी खुलकर इस बात के समर्थन में आ गए।
बस फिर क्या था, बिहार से उठी हवा यूपी तक पहुंच चुकी है। यहां पर पिछड़ी जातियों के नेता इस मांग के समर्थन में खुलकर सामने आने लगे हैं। पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस बात का समर्थन किया। उन्होंने एक तीर से दो निशाने मारने का काम किया जहां एक तरफ उन्होंने भाजपा पर हमला किया वहीं दूसरी तरफ ओबीसी वोट को साधने के लिए कहा कि भाजपा केवल ओबीसी वोटों को अपने कब्जे में करना चाहती है। अगर वो उनकी सच्ची हितैषी है तोक्यों नहीं अलग से जनगणना कराने का काम करती है।
इससे पहले जाति आधारित जनमणना का समर्थन हिंन्दुस्तान आवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी और महाराष्ट्र के सांसद और केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले भी कर चुके हैं।
एक बात और महत्वपूर्ण है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन ने 2006 में एक नमूना सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की थी जिसके अनुसार अन्य पिछडे वर्ग की आबादी कुल आबादी का 41 प्रतिशत है। तत्कालीन प्रधानरमंत्री मनमोहन सिंह ने तब वित मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में एक कमेटी का भी गठन किया था। कमेटी ने अपनी राय भी रखी थी, जिसमें जाति आधारित जनगणना कराने की बात कही गयी थी पर यूपीए सरकार ने इसे प्रकाशित नहीं किया।