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सचल पालना गृह घोटाले की जांच तेज, अफसरों-NGO संचालकों को CBI करेगी तलब
यूपी में हुये करोड़ रूपए के सचल पालना गृह घोटाले की जाँच ने रफ़्तार पकड़ ली है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने का निर्देश जारी किया था।
लखनऊ: यूपी में हुये करोड़ों रूपए के सचल पालना गृह घोटाले की जाँच ने रफ़्तार पकड़ ली है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने का निर्देश जारी किया था। जिस के बाद मुक़दमा दर्ज कर जाँच शुरू हुई थी। लेकिन रफ़्तार काफी सुस्त थी। अब सीबीआई ने अफसरों और एनजीओ संचालकों को नोटिस जारी कर पूछताछ के लिए तलब करने की तैयारी शुरू कर दी है।
यूपी में एनजीओ संचालकों और अफसरों ने मिल कर पालना गृह के 1100 करोड़ रूपए डकार लिए थे। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सीबीआई जाँच कराने का आदेश दिया था। जिस के बाद 22 जून 2017 को सीबीआई की लखनऊ यूनिट ने मुक़दमा दर्ज किया था। अब सीबीआई 144 अफसरों के साथ क़रीब 300 एनजीओ संचालकों को नोटिस देकर तलब करने की तैयारी कर रही है। जिन से पूछताछ की जाएगी। इस जाँच में तत्कालीन प्रमुख सचिव महिला एवं बाल कल्याण,प्रमुख सचिव समाज कल्याण, प्रमुख सचिव श्रम समेत आधा दर्जन आईआईएस अफसर भी जाँच के घेरे में हैं।
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क्या थी सचल पालन गृह योजना
-यूपी में श्रमिकों के बच्चों के लिए पालना गृह बनाये जाने थे।
-इस योजना के तहत श्रमिकों के बच्चों के शारीरिक विकास, मनोरंजन व अल्पावास के दौरान भोजन उपलब्ध कराना था।
-बच्चों की बीमारी यानि 0 से 06 वर्ष के बच्चों की देखभाल के लिए बनना था पालना गृह।
-पालना गृह के निर्माण के लिए करोड़ों की धनराशि जारी की गई थी।
-योजना का लाभ ज़रूरतमंदों को नहीं मिला लेकिन करोड़ों की धनराशि का भुगतान कर दिया गया। सीबीआई ने मामले में श्रमिक कल्याण बोर्ड, महिला कल्याण बोर्ड से दस्तावेज मांगे हैं।
-इस योजना का लाभ ऐसे पंजीकृत पुरूष निर्माण श्रमिकों के 0 से 6 वर्ष के बच्चों को भी मिलना था जिनके माता नहीं है।
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योजना के लाभ के लिए क्या थीं यह शर्ते
-लाभार्थी श्रमिक के पास स्वयं का अथवा परिवार का पक्का आवास न हो।
-योजना में उन निर्माण कामगारों को लाभ दिया जाना था।
-जिनके पास स्वयं अथवा परिवार के नाम समुचित भूमि उपलब्ध हो।
-लाभार्थी द्वारा नियमित अंशदान जमा किया जा रहा हो।
-परिवार “एक इकाई” के रूप में लिया जाएगा।
-पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को उक्त योजना का लाभ सम्पूर्ण जीवन काल में केवल एक बार ही दिए जाने की योजना थी।
-यदि पति और पत्नी दोनों पंजीकृत निर्माण श्रमिक है तो उक्त योजना का लाभ प्राथमिकता पर दिया जाना था।
-कार्य स्थान / निवास एक ही जिले में होने पर वरीयता प्रदान की जानी थी।
-केन्द्र या प्रदेश सरकार की आवास अथवा आवासीय सुविधा हेतु सहायता का लाभ पा चुके श्रमिक इस योजना के अंतर्गत पात्र नहीं थे।