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जवाहर बाग उधेड़ देगा सत्ताधारी परिवार की सियासी बखिया
जवाहर बाग कांड की सीबीआई जांच सपा के अंदरूनी रिश्तों की बखिया उधेड़ कर रख देगी। समाजवादी परिवार की अंतर्कलह के एक एक तार सीबीआई जांच से खुलने वाले हैं। दिल्ली, लखनऊ और सैफई में बैठे परिवार के बीच रिश्तों की खटास इस जांच से उजागर होने लगेगी।
शारिब जाफरी
लखनऊ: मथुरा के जवाहर बाग कांड की सीबीआई जांच सपा के अंदरूनी रिश्तों की बखिया उधेड़ कर रख देगी। समाजवादी परिवार की अंतर्कलह के एक एक तार सीबीआई जांच से खुलने वाले हैं। दिल्ली, लखनऊ और सैफई में बैठे परिवार के बीच रिश्तों की खटास इस जांच से उजागर होने लगेगी। बाबा जय गुरुदेव के आश्रम से जुडी तमाम ऐसी जानकारी सीबीआई जल्दी ही सामने लाएगी। जो लोगो को चौंका सकती है। 19 मई 2012 को बाबा जय गुरुदेव के मृत्यु के बाद ये पूरा विवाद खड़ा हुआ था।
आईआईएस और आईपीएस अधिकारी सीबीआई के राडार पर
बाबा जय गुरुदेव की मौत के बाद उनके आश्रम पर वर्चस्व की लड़ाई का खुलासा भी सीबीआई करेगी। समाजवादी परिवार में दो भाइयों के बीच वर्चस्व को लेकर किस तरह प्रशासनिक अमले का इस्तेमाल किस तरह किया गया ये सीबीआई जांच से साफ हो जाएगा। सीबीआई मथुरा के तत्कालीन पुलिस कप्तान राकेश सिंह, तत्कालीन जिलाधिकारी राजेश सिंह और जवाहर बाग की बिजली जुड़वाने वाले तत्कालीन जिलाधिकारी विशाल चौहान से भी पूछताछ करेगी। विशाल चौहान के मौखिक आदेश से ही जवाहर बाग की बिजली जोड़ी गई थी।
सत्ताधारी दल के बड़े नेता का था संरक्षण
जवाहर बाग कांड के समय जिलाधिकारी मथुरा राजेश सिंह, पुलिस अधीक्षक राकेश के समय जवाहर बाग पर कब्जा और 3 साल तक वहां बने रहने के पीछे सत्तारूढ़ दल के एक बड़े नेता का हाथ था। रामवृक्ष को सत्ताधारी दल पार्टी के एक बड़े नेता के वर्चस्व के चलते ही 2014 में कलेक्ट्रेट पर चल रहे उस के धरने के लिए जवाहर बाग़ में जगह दी गई थी। ये रामवृक्ष के राजनीतिक रसूख का नतीजा था की आये दिन रामवृक्ष व उसके लोग जिला प्रशासन से बदसलूकी करने से परहेज नहीं करते थे।
हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था मामला
जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने ही जवाहर बाग खाली कराने के मामले में हाईकोर्ट से मदद ली थी। एक सत्य ये भी है कि राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से जिला प्रशासन रामवृक्ष से जवाहरबाग खाली करा पाने की स्थिति में नहीं था। इसीलिए अदालत ने जब जवाहरबाग खाली कराने के लिए आदेश दिया तो रामवृक्ष इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गया लेकिन उसे राहत नहीं मिली। सीबीआई जांच में इस बात का भी खुलासा हो रहा है। समाजवादी पार्टी के एक जिलाध्यक्ष के भाई और एक सहकारी बैंक का अध्यक्ष को आर्थिक मदद पहुंचाते थे। इस बात के सबूत सीबीआई के हाथ लग रहे हैं।
जवाहरबाग काण्ड में गई 24 जान
दरअसल जवाहरबाग पर रामवृक्ष ने अपने साथियों के साथ 3 साल से क़ब्ज़ा जमा रखा था। 280 एकड़ में फैले जवाहरबाग को खाली कराने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया था। 2 जून 2016 को ज़िला प्रशासन ने जवाहर बाग़ खाली कराने की तिथि तय की थी। पुलिस और प्रशासन का अमला जब जवाहरबाग़ खाली कराने पहुंचा तो अचानक रामवृक्ष के गुर्गों ने हमला बोल दिया। इस हमले में पुलिस अधीक्षक नगर मुकुल द्विवेदी और थानाध्यक्ष फराह संतोष यादव शहीद हो गए थे। इस पूरे बवाल में 24 लोगों की मौत हो गई थी। इस मामले में 116 महिलाओं समेत 320 आरोपियों को गिरफ्तार किया था।
पुलिस अफसर की मौत के बाद बढ़ा बवाल
बताया जाता है कि पुलिस व प्रशासन 2 जून को सिर्फ रिहल्सल के मक़सद से जवाहर बाग गया था जबकि जवाहर बाग को 5 जून को खाली कराने की तैयारी थी। लेकिन जैसे ही पुलिस और प्रशासन के लोग पहुंचे रामवृक्ष के गुर्गों ने गुरिल्ला तरीके से हमला कर दिया। रामवृक्ष के गुर्गों ने पेड़ों पर असलहे छिपा कर रखे थे। इन असलहों का इस्तेमाल पुलिस पर किया गया। इस हमले में पुलिस अधीक्षक नगर मुकुल द्विवेदी और थानाध्यक्ष फराह संतोष यादव शहीद हो गए थे। पुलिस के अफसर की मौत के बाद जवाहरबाग में बवाल बढ़ गया। 2 दिन तक चले इस बवाल में 24 लोगों की मौत हो गई थी।
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