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गिरिजा त्रिपाठी के गोरखपुर सेंटर पर भी अफसरों की मेहरबानी

raghvendra
Published on: 11 Aug 2018 8:47 AM GMT
गिरिजा त्रिपाठी के गोरखपुर सेंटर पर भी अफसरों की मेहरबानी
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: देवरिया में एनजीओ द्वारा संचालित बालिका एवं नारी संरक्षण गृह से सेक्स रैकेट के संचालन का मामला प्रकाश में आने के बाद गोरखपुर के सभी बालिका आवासीय केंद्र प्रशासन की रडार पर हैं। गोरखपुर में विभिन्न एनजीओ द्वारा संचालित 10 बालक-बालिका और शिशु गृह हैं। सेक्स रैकेट चलाने के आरोपों से घिरी देवरिया के बालिका एवं नारी संरक्षण गृह की संचालक संस्था मां विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण सेवा संस्थान की ओर से गोरखपुर में भी वृद्धाश्रम का संचालन होता मिला।

गिरिजा त्रिपाठी की संस्था द्वारा गोरखपुर के खोराबार की चाणक्यपुरी कालोनी में ‘मां विंध्यवासिनी महिला वृद्धाश्रम चलाया जा रहा था। डीएम, एसएसपी ने इसे सील कराते हुए यहां से पांच लोगों को अभिरक्षा में ले लिया। ये लोग हैं, गिरिजा त्रिपाठी की बेटी और जिला प्रोबेशन विभाग में संविदा पर परीविक्षा अधिकारी कनकलता, देवरिया से गायब युवती और तीन कर्मचारी। इस वृद्धाश्रम से चार बुजुर्ग महिलाएं भी मिलीं, जिन्हें राजकीय वृद्धाश्रम, बरगदवा में रखा गया है। जांच में साफ हुआ कि आठ साल से चल रहे इस वृद्धाश्रम को महिला कल्याण निगम से कोई मान्यता नहीं मिली हुई है। जनवरी 2017 से प्रशासन की तरफ से कोई फंडिंग भी नहीं है। पहले यह अशोकनगर, बशारतपुर में संचालित होता था और पिछले तीन सालों से चाणक्यपुरी में चल रहा है। कनकलता की संविदा डीएम ने खत्म कर दी है। वृद्धाश्रम के लिपिक अंकित मिश्र के अनुसार संस्था अपने खर्चे पर वृद्ध महिलाओं की सेवा करती है। गोरखपुर के डीएम के. विजयेंद्र पाण्डियन का कहना है कि फिलहाल वृद्धाश्रम को सील कर दिया गया है।

अफसरों को नहीं मिली गम्भीर खामियां

सूरजकुंड स्थित राजकीय संप्रेक्षण गृह (किशोर) में स्वीकृत संख्या 50 है, लेकिन इसमें कहीं अधिक किशोर रहते हैं। वहीं घंटाघर स्थित राजकीय महिला शरणालय का भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है। लिटिल लॉवर सोसाइटी खोराबार द्वारा शिशु गृह और बालिका गृह संचालित है। वहीं कैंपियरगंज में मानसिक रूप से बीमार बालिकाओं के लिए आसरा विशेष स्कूल है। गुलरिहा में एलएसडीपी द्वारा संचालित प्रोविडेंस होम के नाम से शिशु गृह है। वहीं पादरी बाजार में दिव्यांग बालिकाओं के लिए बालिका गृह संचालित है। पादरी बाजार में स्नेहालय शिशु गृह और स्नेहालय खुला आश्रय बालक गृह में भी कोई खामी नहीं मिली है। जेल रोड पर एशियन सहयोगी संस्था द्वारा संचालित शिशु गृह एवं दत्तक ग्रहण केंद्र, गगहा के उज्जरपार में संचालित सरस्वती सेवा संस्थान शिशु गृह एवं बालिका गृह में कोई खामी नहीं मिली है। जिला प्रोबेशन अधिकारी सर्वजीत सिंह के अनुसार सभी केंद्रों में कोई आपत्तिजनक बात नहीं मिली।

संरक्षण गृहों में मिली अनियमितता

सुलानपुर: जिले के दो बालिका संरक्षण, एक शिशु संरक्षण और एक वृद्धावस्था संरक्षण गृह में बड़े पैमाने पर अनिमितता पाई गई है जिसके बाद प्रशासन ने चारों आश्रय गृहों को निरस्त करने की संस्तुति शासन से की है। इन आश्रय गृहों में एक शिशु आश्रय गृह है, जिसमें नाबालिग बच्चियों की देखरेख की जाती है। इसके अलावा बालिग लड़कियों के दो आश्रय गृह और वृद्धावस्था के लिए एक आश्रय गृह है।

एडीएम प्रशासन ब्रह्मदेव सिंह की अध्यक्षता में गठित टीम ने जांच में अनियमितताएं तो स्वीकार की हैं, लेकिन अनियमितताएं क्या हैं इसे सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो कई लड़कियों के बीच-बीच में गायब होने की सूचना भी मिल रही थी। ब्रह्मदेव सिंह ने बताया कि चारों के खिलाफ निलंबन की संस्तुति कर दी गई है।

कमियां छिपाने को मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी

सुशील कुमार

मेरठ: देवरिया में बालिका गृह में रहने वाली बच्चियों से देहव्यापार की सनसनीखेज घटना ने प्रदेश के सियासी हलके में तूफान मचा दिया है। मेरठ भी इससे अछूता नहीं रहा है। तमाम छोटे-बड़े सरकारी अफसर शरणालयों की खाक छानने निकल पड़े हैं। देवरिया कांड में जैसी कार्रवाई मुख्यमंत्री ने की है उसका भय सरकारी अफसरों के चेहरों पर साफ दिख रहा है।

देवरिया कांड जैसी बदनामी से बचने के लिए शासन-प्रशासन ने सबसे पहला काम यह किया है कि बालिका व महिला संरक्षण गृहों में मीडिया के प्रवेश पर अघोषित प्रतिबंध लगा दिया है। यहां बालिका व महिला संरक्षण गृहों में मीडिया को प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है। अपना भारत संवाददाता जब शिवाजी रोड स्थित रामानुज वैश्य बाल सदन पहुंचा तो उसे वहां प्रवेश नही करने दिया गया। कारण पूछने पर सदन के अधीक्षक शरद श्रीवास्तव का साफ कहना था कि डीएम के हमें ऐसे मौखिक निर्देश हैं। इसलिए जो कुछ पूछना है हमारे कार्यालय में आकर हमसे पूछ सकते हैं।

घपलों पर बोलने से इनकार

अधीक्षक ने बताया कि सदन में कुल 53 बच्चे हैं जिनमें 26 लड़कियां और 27 लडक़े हैं। सदन को किसी तरह का सरकारी अनुदान नहीं मिलता है। सारा खर्च प्रबंध तंत्र और शहर के संपन्न लोग उठाते हैं। उन्होंने सदन के घपलों के बारे में कुछ भी बोलने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इस बारे में सचिव ही कुछ बता सकते हैं। यहां गौरतलब है कि इस संस्था में ही पले-बढ़े अनाथ राम किशन की शिकायत पर फम्र्स सोसाइटीज एवं चिट्स के डिप्टी रजिस्ट्रार ने संस्था के क्रियाकलापों एवं कुप्रबंधन की जांच की थी। जांच रिपोर्ट के अनुसार सदन के बच्चों को भरपेट भोजन एवं कपड़ा भी नहीं मिलता। उन्हें घुटन और भीषण गंदगी भरे कमरों में ठूंसकर रखा जाता है।

लालकुर्ती स्थित राजकीय महिला शरणालय की भी कमोबेेश यही स्थिति रही। महिला कल्याण विभाग द्वारा संचालित इस महिला शरणालय में भी इस संवाददाता को डीएम मौखिक निर्देशों का हवाला देकर कर्मचारियों ने प्रवेश नहीं करने दिया। यहां बता दें कि कि इस शरणालय का बीती छह अगस्त को डीएम,सीजेएम ने डीपीओ(जिला प्रोबेशन अधिकारी) आदि ने निरीक्षण किया था। निरीक्षण के दौरान मीडिया को किसी भी बालिका से बात नहीं करने दिया गया। बाद में अधिकारियों ने बाहर आकर मीडिया से कहा कि सबकुछ ठीक-ठाक है।

नारी निकेतन के हालात ठीक नहीं

यह अलग बात है कि नारी निकेतन में अंदर जाने वाले संगठनों ने हालात सही नहीं बताए थे। संगठनों ने छोटी बालिकाओं से पिटाई तक होने की बात कही है, जबकि अधिकारियों ने इससे इनकार किया है। बकौल एडीएम सिटी मुकेश चंद निरीक्षण के दौरान खाने पीने,रहने आदि और जरुरत के सामान देखे गए। साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से चेकिंग हुई,लेकिन ऐसी कोई कमी नहीं मिली। डीएम अनिल ढींगरा का भी कमोबेश यही कहना है। बकौल अनिल ढींगरा वहां की सारी व्यवस्था की पड़ताल की गई तो कहीं कोई कमी नहीं मिली। जिला प्रोबेशन अधिकारी श्रवण कुमार गुप्ता के मुताबिक मेरठ में राजकीय महिला शरणालय में 123 बालिकाएं हैं, जिनमें 85 नाबालिग और 38 बालिग हैं। राजकीय पाश्चातवर्ती में 35 महिलाएं व रामानुज वैश्य बाल सदन 53 बालक-बालिकाएं हैं। बकौल श्रवण कुमार गुप्ता इन सभी का निरीक्षण किया जा चुका है और कहीं पर भी कोई गड़बड़ी नहीं मिली है।

दागदार रहा है इतिहास

वैसे, सरकारी अधिकारी फिलहाल कुछ भी कहें, लेकिन मेरठ में भी बालिका व महिला संरक्षण गृहों का इतिहास दागदार रहा है। मेरठ के नारी निकेतन में तो आत्महत्या से लेकर सरियों से दागी हुई लड़कियां भी मिली थीं। सामाजिक संगठन संकल्प की सचिव अतुल शर्मा कहती हैं कि करीब 19 साल पहले जब बेगमबाग में नारी निकेतन था तो एक लडक़ी गर्भवती हो गई थी। मामले ने तूल पकड़ा तो जिम्मेदार अधिकारियों ने प्रेम प्रसंग की बात कहकर मामले से पल्ला झाड़ लिया था। लालकुर्ती में एक लडक़ी नारी निकेतन से भागी और बाहर पकड़ी गई। इस लडक़ी को गरम सरियों से दागा गया था। मामले के खुलासे के बाद शासन ने तत्कालीन नारी निकेतन अधीक्षका को सस्पेंड कर दिया था। घटना के बाद एक लडक़ी ने आत्महत्या कर ली। इस पर भी काफी हो-हल्ला मचा था। इन तीनों ही मामलों के तूल पकडऩे पर शासन को जिम्मेदार लोंगो को सस्पेंड करना पड़ा।

दरअसल, दावा किया जाता है कि संरक्षण गृहों में रहने वाली महिलाओं व बच्चियों को घर जैसा माहौल व रहन-सहन दिया जाता है ताकि उन्हें परिवार की कमी का एहसास न हो। हालांकि समय-समय पर होते खुलासे इन दावों की कलई खुद-ब-खुद खोलते रहे हैं। ताजा घटना के बाद नींद से जागने के अंदाज में शासन-प्रशासन चौकस हुआ दिख रहा है। लेकिन सब जानते हैं कि कुछ दिनों बाद फिर सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा।

संरक्षण गृह को आठ महीने से बजट नहीं

नरेन्द्र सिंह

रायबरेली: देवरिया में बाल संरक्षण गृह में बच्चियों के साथ हुई दरिंदगी का मामला खुलने और उस पर सीएम योगी आदित्यनाथ के एक्शन के बाद प्रदेश की मशीनरी में हडक़ंप मचा हुआ है। सीएम के कड़े रुख के बाद रायबरेली जिला प्रशासन भी सक्रिय हुआ है। शहर के मिल एरिया थाना क्षेत्र के चक धौरहरहा में चल रहे संरक्षण गृह गांधी सेवा निकेतन में अपर जिलाधिकारी वित्त राजस्व राजेश प्रजापति अपने महकमे के साथ पहुंचे और पूरे संरक्षण गृह का निरीक्षण किया। जांच के बाद प्रशासन की लापरवाही सामने आई कि पिछले आठ महीनों से बाल संरक्षण का बजट नहीं मिला और जो बजट मिला वह तीन महीने से ट्रेजरी से बाहर नहीं निकल पाया। संरक्षण गृह में बच्चों की सुरक्षा के लिए चहारदीवारी नहीं है। साथ ही संरक्षण गृह में सीसीटीवी लगवाने की भी जरुरत है।

परिसर में भरा है बारिश का पानी

गांधी सेवा निकेतन में 63 बच्चे रहते हैं जिनमें 31 लड़कियां और 32 लडक़े हैं। इनकी देखभाल के लिए दो सुपरिटेंडेंट सहित 24 लोग तैनात हैं। यहां बालिका गृह में पंखे खराब हैं और रसोई घर में रखे हैं। इसके चलते बच्चियों को उमस भरी गर्मी में रहना पड़ता है। पूरे परिसर में बारिश का पानी भरा है और सुरक्षा के लिए चहारदीवारी नहीं है जबकि यह केंद्र 2010 से चल रहा है। बच्चों का महीने में एक बार चिकित्सीय परीक्षण होता है जो बीती 4 अगस्त को हुआ था। बाल संरक्षण गृह का सालाना बजट 55 लाख रुपये से ज्यादा का है, लेकिन इस बाल संरक्षण गृह को शासन द्वारा पिछले आठ महीनों से बजट नहीं मिला। जो मिला वह जिला कोषागार में पिछले तीन महीने से पड़ा है। अब ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाल संरक्षण में रहने वाले बच्चों के सामने कैसे हालत होंगे। हालांकि बाल गृह के संचालक अरुण मिश्रा यह दावा जरूर करते हैं कि समाजसेवियों की मदद से वो आश्रम का संचालन करते हैं।

अपर जिला अधिकारी वित्त एव राजस्व राजेश कुमार प्रजापति ने बताया कि संरक्षण गृह में 90 प्रतिशत सरकारी सहायता है और दस प्रतिशत धनराशि संचालक की ओर से लगायी जाती है। इसकी सुरक्षा के लिए एसपी से बात करके यहां पुलिस कर्मी तैनात किए जाएंगे। रुके हुए बजट को जल्द से जल्द संरक्षण गृह को दिलवाने का प्रयास किया जाएगा। साथ ही यहां सीसीटीवी लगवाने की हिदायत दी गयी है।

संवासिनी गृह का भोजन काफी घटिया

महेश कुमार शिवा

सहारनपुर: देवरिया में बालिका सुधार गृह की किशोरियों के साथ की जानी वाली गंदी हरकत और यौन शोषण का राजफाश होने के बाद प्रदेश के तमाम बालिका और महिला सुधार गृहों की स्थिति पर प्रश्नचिन्ह लगना लाजिमी है। वैसे सहारनपुर की बात करें तो यहां पर अभी तक ऐसा कोई मामला तो सामने नहीं आया जिसमें बालिका, युवती अथवा महिला की इज्जत को बेचने का काम किया गया हो, लेकिन यहां पर भोजन और अन्य शिकायतें मिलती रही हैं।

सहारनपुर में तीन संवासिनी गृहों का संचालन किया जाता है। एक सरकारी स्तर पर तथा दो स्वयं सेवी संगठनों के स्तर पर। सरकार द्वारा संचालित नारी निकेतन जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर देहरादून हाईवे पर गांव फतेहपुर में स्थित है। यह संवासिनी गृह काफी समय से संचालित हो रहा है। यहां इस वक्त 41 युवती और महिलाएं रह रही हैं। इनकी शिक्षा के लिए बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से दो सरकारी शिक्षक तथा दो संविदा शिक्षक तैनात किए गए हैं।

अपर जिलाधिकारी प्रशासन एसके दुबे और उप जिलाधिकारी सदर संगीता के औचक निरीक्षण में यहां कई कमियां मिली थीं। संवासिनियों को जो भूने हुए चने दिए जाते हैं, वह बेहद ही घटिया थे। भोजन तैयार करने के लिए प्रयोग होने वाला सरसो व रिफाइंड आदि तेल भी बेहद ही घटिया पाए गए।

सरकार की ओर से संचालित इस नारी निकेतन की देखभाल जिला प्रोबेशन अधिकारी की ओर से की जाती है। यहां पर रहने वाली युवती महिला के लिए चार हजार रुपये प्रति महिला प्रति माह की दर से भुगतान किया जाता है। इस समय यहां पर 41 महिलाएं व युवतियां हैं। जिला प्रोबेशन अधिकारी कार्यालय की ओर से एक लाख 64 हजार रुपये प्रति माह का भुगतान किया जाता है। यहां आने वाले लोगों पर नजर रखने के लिए सीसी टीवी कैमरा और बायोमैट्रिक लगाए गए हैं जो चालू हालत में पाए गए। स्वास्थ्य के लिए महिला चिकित्सक यहां पर आती है। इमरजेंसी की हालत में गांव में ही स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया जाता है। यदि हालत और भी अधिक नाजुक हो तो जिला अस्पताल लाया जाता है।

एक अन्य संवासिनी गृह भाजपा से सहारनपुर सांसद राघव लखनपाल शर्मा की दादी श्रीमती कुंतीपाल द्वारा करीब बीस साल पहले स्थापित किया गया। इसे ऑल इंडिया वुमेन कांफ्रेंस द्वारा संचालित किया जाता है। यह संवासिनी गृह शहर में बाजोरिया रोड पर जिलाधिकारी आवास के ठीक पीछे स्थित है। इस संवासिनी गृह में घरेलू हिंसा से पीडि़त अथवा घर छोडक़र आने वाली महिलाओं को अल्प समय के लिए रखा जाता है। सरकार की ओर से इस संस्था को ग्रांट प्रदान की जाती है। फिलहाल यहां पर 48 महिलाएं है। कमरे सााफ सुथरे हैं और साफ सफाई का भी ध्यान रखा जाता है। सीसी टीवी कैमरे और बायोमैट्रिक भी लगे हैं।

इसके अलावा जनता रोड पर एक बालिका सुधार गृह जिला प्रोबेशन अधिकारी के यहां पंजीकृत हुआ है और इसे मान्यता भी मिल गई है। इस बालिका सुधार गृह को अभी तक सरकार की ओर से कोई ग्रांट नहीं मिल सकी है। स्वयंसेवी संस्था फिलहाल अपने खर्च से इसे संचालित कर रही है। जिला प्रोबेशन अधिकारी पुष्पेंद्र कुमार बताते हैं कि उनके कार्यालय की ओर से केवल फतेहपुर स्थित संवासिनी गृह को ही चार हजार रुपये प्रति महिला की दर से हर माह आर्थिक सहायता दी जाती है। यहां पर सुरक्षा के लिए हर वक्त होमगार्ड और सिपाही तैनात रहते हैं। उनका प्रयास रहता है कि किसी भी संवासिनी को कोई परेशानी न हो।

आगरा में नौ अवैध शेल्टर होम

मानवेन्द्र मल्होत्रा

आगरा: बाल आयोग के आदेश के बाद गठित की गयी कमेटी ने आगरा में बच्चों के लिए चलाए जा रहे 11 अवैध आश्रय स्थल चिन्हित किए थे। इनमें से सिर्फ एक ने रजिस्ट्रेशन कराया और एक का मामला शासन में लंबित है। जांच कमेटी ने अवैध रूप से बिना मान्यता के चलाए जा रहे आश्रय स्थलों को बंद करने की सिफारिश भी की थी, लेकिन बीते दो सालो में ना तो अवैध रूप से संचालित शेल्टर होम बंद किए गए और ना ही इन को सुचारु रूप से चलाने के लिए इनका रजिस्ट्रेशन जेजे एक्ट में कराया गया।

जांच में उजागर हुआ राज

दरअसल उप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग की तत्कालीन सदस्या डॉ.ज्योति सिंह को लंबे समय से शिकायत मिल रही थी कि जेजे एक्ट की अनुमति के बिना आश्रयगृह संचालित हैं। इन आश्रय स्थलों में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को रखा गया है। उन्होंने तत्कालीन डीपीओ अजीत कुमार को जल्द से जल्द आश्रय स्थलों की मान्यता की जांच करने और मान्यता न होने की स्थिति में इन्हें बंद कराने के आदेश दिये थे। इसके बाद डीपीओ द्वारा जांच के लिए गठित की गई कमेटी ने तीन चरणों में 11 आश्रयस्थलों की जांच की थी। इस कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार जांच किए गए 11 आश्रयस्थलों में नाबालिग बच्चे रह रहे थे और किसी भी आश्रयस्थल के पास जेजे एक्ट की मान्यता नहीं थी। ऐसे में इन शेल्टर होम्स का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी था, लेकिन दो साल से ज्यादा समय बीतने के बावजूद अभी तक सिर्फ एक शेल्टर होम का रजिस्ट्रेशन हुआ। वही इन 11 अवैध शेल्टर होम में शामिल प्रेमदान शेल्टर होम के संरक्षक मुकेश जैन ने बताया कि उनकी फाइल शासन में लम्बित है।

इस बारे में जिला प्रोबेशनरी अधिकारी का कहना था कि 11शेल्टर होम्स में से एक शेल्टर होम बंद हो चुका है। वही एक रजिस्टर्ड हो चुका है ौर अन्य शेल्टर होम्स के खिलाफ नोटिस की कार्रवाई करने की बात कही गयी है। लेकिन जांच रिपोर्ट के 2 साल बीतने के बाद भी प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के चलते 9 शेल्टर होम्स अभी भी अवैध रूप से संचालित है। ऐसे में अगर देवरिया जैसी घटना की आगरा में भी पुनरावृत्ति हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

ये हैं अवैध आश्रय स्थल

श्री मद्यानंद अनाथालय यमुना ब्रिज, मातृछाया न्यास गांधी नगर, जिशोंन मिशन अनाथालय टेढ़ी बगिया, करिश्मा चेरिटेबल चिल्ड्रन होम शास्त्रीपुरम, कदम आश्रय गृह सेक्टर 16 आवास विकास, रामलाल आश्रम सिकंदरा, सेंट विसेंट चिल्ड्रेन होम घटिया, अंतर्देशीय संस्कृत सेवा आश्रम संस्थान जगनेर रोड, मदर टेरेसा मेघ शिशु भवन मिशनरी ऑफ चैरिटी, निर्मल हृदय प्रेम दान मिशनरी ऑफ चैरिटी, प्रतापपुरा, शरण स्थान कहरई।

सम्प्रेक्षण गृह में क्षमता से अधिक बच्चे

तेज प्रताप सिंह

गोंडा: शहर में दो बाल संरक्षण गृह, एक स्वाधार गृह और एक सम्प्रेक्षण गृह संचालित है। इनमें एक सरकार तथा तीन स्वयं सेवी संस्थाओं की ओर से संचालित किए जाते हैं। सिंचाई विभाग कालोनी के सामने एनजीओ ग्रामीण विकास समिति चारु गोंडा द्वारा संचालित बाल संरक्षण गृह में दस साल तक के 11 बच्चे पंजीकृत हैं। यहां 10 बच्चे मौके पर मिले और एक बच्चा अस्पताल में था। यहां दिन रात की शिफ्ट मिलाकर कुल 12 स्टाफ कर्मचारी कार्यरत हैं।

परिसर में साफ सफाई बेहतर होने के साथ ही बच्चों नाश्ते और भोजन की भी व्यवस्था ठीक मिली। बच्चे पढ़ाई कर रहे थे। सुरक्षा के मद्देनजर यहां सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। संस्था के कोआर्डिनेटर उपेन्द्र श्रीवास्तव तथा संरक्षण गृह की अधीक्षिका अर्चना ने बताया कि यहां का औसत प्रतिमाह खर्च डेढ़ लाख है। एनजीओ ग्रामीण विकास समिति चारु गोंडा द्वारा संचालित पोर्टरगंज स्थित गोंडा चाइल्ड प्रोटेक्शन होम बाल में भी सभी व्यवस्थाएं चाक चौबन्द मिलीं। संरक्षण गृह की अधीक्षिका सपना श्रीवास्तव समेत आधे दर्जन से अधिक कर्मचारी इन निराश्रित बच्चों की देखभाल करते हैं। यहां भी सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। इस केन्द्र का औसतन प्रतिमाह खर्च सवा लाख है।

सुंदर पेंटिंग बना लेता है बच्चा

नगर के मोहल्ला राधाकुण्ड स्थित राजकीय सम्प्रेक्षण गृह में क्षमता 30 के सापेक्ष 50 बच्चे रह रहे हैं। यहा पर मौके पर 42 बच्चे मिले, 6 बच्चे पेशी पर न्यायालय तथा एक बच्चा कानपुर व एक बच्चा उपचार के लिए अस्पताल गया हुआ बताया गया। यहां उड़ीसा का एक बच्चा फूलचन्द भी है जो सुन्दर पेंटिंग बना लेता है। राजकीय सम्प्रेक्षण गृह में रह रहे बच्चे सरकार द्वारा प्रदत्त सभी इंतजामों से संतुष्ट हैं। जिला प्रोबेशन अधिकारी जयदीप सिंह ने बताया कि एक बच्चे पर प्रतिमाह चार हजार रुपए खर्च होता है। बच्चों की निगरानी और सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं।

जेल रोड पर शहीद राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी मार्ग छावनी सरकार में एनजीओ द्वारा संचालित स्वाधार गृह में एक महिला अन्नपूर्णा व उसकी दो बेटियां राधा और अंकिता रह रही है। महिला तथा दोनों बेटियों ने बताया कि वे यहां की व्यवस्था से संतुष्ट हैं और उनके ऊपर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं बनाया जाता है। वार्डेन माधवी सिंह ने बताया कि यहां खानपान और सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है।

आखिर कैसे हो बेटियों की सुरक्षा

आशुतोष सिंह

वाराणसी : वाराणसी में सरकार के द्वारा दो संवासिनी गृह संचालित है जबकि एक दर्जन शेल्टर होम स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा संचालित हैं। यहां के संवासिनी गृहों में बेटियों को मिलने वाली सुविधाएं नाकाफी हैं। शहर में जैतपुरा के अलावा शिवपुर में सरकार की ओर से संवासिनी गृह बनाए गए हैं। इसके अलावा अलग-अलग स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से एशियन संस्था मिंट हाउस, साथी खुला आश्रय गृह चौकाघाट, डेयर संस्था सारनाथ, खुला आश्रय सारनाथ, अघोर सेवापीठ सामनेघाट, शांति निकेतन नगवां, खुला आश्रय मंडुवाडीह, होप होम महमूरगंज, काशी अनाथालय वनिता विश्राम लहुराबीर, स्वधार गृह ऊषा निकेतन सिकरौल, एसओएस चौबेपुर, कुटुंब विलेज बाबतपुर संचालित हैं। इन शेल्टर हाउस में तकरीबन डेढ़ हजार महिलाएं और लड़कियां रहती हैं। इन आश्रय गृहों में सुविधाओं का घोर अभाव है। एक कमरे में सात से आठ लड़कियां रहती हैं।

अधिकतर लड़कियां या तो डिप्रेशन या फिर दूसरी बीमारियों की शिकार हैं। इन्हें मिलने वाले भोजन की गुणवत्ता पर भी सवाल उठते रहे हैं। अधिकतर शेल्टर हाउस में सीसीटीवी कैमरे लगे ही नहीं हैं। विजिटर्स रजिस्टर भी मेंटेन नहीं किया जाता है। लेकिन डीएम सुरेंद्र सिंह का दावा है कि लगभग संवासिनी गृहों की जांच की गयी और सभी जगहों पर हालात सामान्य मिले। जैतपुर स्थित नारी संरक्षण गृह में कुछ खामियां पाई गई हैं जिन्हें जल्द ही दूर कर लिया जाएगा।

18 साल पहले हुआ था संवासिनी कांड

18 साल पहले वाराणसी में शिवपुर स्थित नारी संरक्षण गृह की संवासिनियों से अनैतिक देह व्यापार का धंधा उजागर हुआ था। इस मामले में अधीक्षिका श्यामा सिंह समेत 14 आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज हुआ था। बाद में मामले को सीबीआई को सिपुर्द कर दिया गया था। पुलिस ने जहां आरोपियों को दोषी ठहराया था वहीं लगभग ढाई साल की विवेचना के बाद सीबीआई ने सभी को क्लीनचिट दे दी।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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