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राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा व प्रशिक्षण परिषद की वैधता को चुनौती, सरकार से जवाब तलब
अनुदेशकों को प्रशिक्षण का कार्य प्राइवेट एजेंसियों को सौंपना पूरी स्कीम का प्राइवेटाइजेशन करना है। जो राज्यों के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप है। यह अनुच्छेद 252 व अनुच्छेद 73 का उल्लंघन है। संविधान के खिलाफ होने के कारण केन्द्र सरकार की प्रशासनिक शक्तियों से एकतरफा गठित परिषद असंवैधानिक घोषित करने की याचिका में मांग की गयी है।
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय व्यवसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण परिषद के गठन की अधिसूचना की संवैधानिक वैधता की चुनौती याचिका पर केन्द्र व राज्य सरकार से एक माह में जवाब मांगा है। याचिका की अगली सुनवाई 11 मार्च को होगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति पी.के.एस.बघेल तथा न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की खण्डपीठ ने कन्फेडरेशन आफ स्किलडेवलपमेंट एण्ड वेलफेयर आफ ट्रेनीज एसोसिएशन इंदौर व अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एन.त्रिपाठी व अरविन्द कुमार मिश्र, राघवेन्द्र मिश्र ने बहस की।
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इनका कहना है कि इस अधिसूचना से केन्द्र सरकार ने परिषद को अवार्डिंग निकायों आकंलन एजेंसी, कौशल सूचना प्रदाताओं एवं प्रशिक्षण निकायों को मान्यता देकर कार्य की निगरानी सौंपने का उपबंध किया गया है। 5 दिसम्बर 18 को जारी अधिसूचना 180 यानी 3 माह बाद 5 मार्च 19 को लागू हो जायेगी। इसके बाद कार्यरत संस्थाएं स्वतः समाप्त हो जायेगी।
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याची का कहना है कि केन्द्र सरकार को बिना राज्यों की सहमति के ऐसी संस्था गठित करने का अधिकार नहीं है। ऐसा करना संघीय ढांचे के विपरीत है। राज्यों के अधिकार में हस्तक्षेप है। प्रदेश के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं में अनुदेशकों को प्रशिक्षित किया जाता है। अभी तक एन.सी.वी.टी. का नियंत्रण था अब गठित संस्था के निर्देशन में प्राइवेट संस्थाओं को मान्यता देकर प्रशिक्षण का कार्य किया जायेगा।
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अनुदेशकों को प्रशिक्षण का कार्य प्राइवेट एजेंसियों को सौंपना पूरी स्कीम का प्राइवेटाइजेशन करना है। जो राज्यों के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप है। यह अनुच्छेद 252 व अनुच्छेद 73 का उल्लंघन है। संविधान के खिलाफ होने के कारण केन्द्र सरकार की प्रशासनिक शक्तियों से एकतरफा गठित परिषद असंवैधानिक घोषित करने की याचिका में मांग की गयी है।