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विश्व जल दिवस: सरकारी उपेक्षा के कारण चंद्रावल को नहीं मिल सका जीवन

Newstrack
Published on: 22 March 2016 1:55 PM GMT
विश्व जल दिवस: सरकारी उपेक्षा के कारण चंद्रावल को नहीं मिल सका जीवन
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लखनऊ : विश्व जल दिवस मंगलवार को मनाया गया। यूपी में सूख चुकी नदियों पर कुछ ज्यादा काम नहीं हो रहा है। ऐसी ही एक नदी बुंदेलखंड की चंद्रावल है। जिसे सदानीरा बनाने का बीड़ा पिछले साल यूपी सरकार ने उठाया था। कई विशेषज्ञ आए और तय हुआ कि एक साल में इस जीवनदायिनी नदी को पहले की हालत में ले आया जाएगा। पिछले साल अगस्त में बस दो चार दिन कुछ मजदूरों ने फावड़े चलाए और महोबा के करीब एक सौ गांव की जीवनदायिनी चंद्रावल नदी को सदानीरा बनाने का काम खत्म हो गया।

नदी को एक साल में उसके मूल स्वरूप में लाने के दावे हवा में उड़ गए। पठारी भू-भाग वाले बुंदेलखंड इलाके में पानी के पारम्परिक श्रोतों को फिर से जीवन देने की सरकारी कोशिश एक बार फिर नौकरशाही का शिकार होकर रह गई। बजट के अभाव से चंद्रावल को फिर से जीवन देने का काम रुक गया। जिसका खाका यहां की सैंकडों एकड़ खेती की जमीन को सिंचित करने तथा लोगों को पेयजल मुहैया कराने को लेकर तैयार किया गया था।

आयुक्त कल्पना अवस्थी कहती हैं कि काम इस उम्मीद से शुरू किया गया था कि सरकार से बजट मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका। चन्द्रावल का उदगम चांदो गांव है जिसे चंद्रापुरा के पहाड़ी झरनों से जीवन मिला करता था। खोदाई भी यहीं शुरू की गई थी। वक्त और प्रदूषण की मार से चंद्रावल के अस्तित्व पर ही खतरा हो गया। इसके सूख जाने से चंद्रावल बांध पर भी खतरा मंडराने लगा। कभी चंद्रापुरा की पहाड़ियों पर घनघोर जंगल हुआ करता था। जिसका लकड़ी माफिया ने सफाया कर दिया। परिणाम यह हुआ कि प्रकृति का उपहार झरने सूख गए।

20 साल पहले तक नदी में लबालब पानी रहता था। अंग्रेजों ने पानी का उपयोग करने के लिए चंद्रावल बांध बनाया। 5,000 मीटर से ज्यादा लंबे बने बांध से 80,000 किलोमीटर लंबी नहर प्रणाली बनायी गई। जिससे 20,000 हेक्टयर में सिंचाई होती थी।

भारी जलधारण क्षमता के साथ नदी का ऐतिहासिक महत्व भी महोबा की अस्मिता के साथ जुड़ा है। दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान ने 11वीं सदी में यहां आक्रमण किया था और चंदेली सेना को हराकर राजकुमारी चंद्रावल का डोला लूट लिया था। पृथ्वीराज जब चंद्रावल का डोला ले दिल्ली लौट रहे थे। तब नदी के बेग ने उनका रास्ता रोका। चंदेल सेना में सेनापति रहे आल्हा उदल ने पृथ्वीराज को हराया और चंद्रावल का डोला वापस ले आए। तभी से इस नदी का नाम चंद्रावल पड़ गया।

स्वीडन के स्टाकहोम से पानी का नोबल पुरस्कार पाने वाले जलपुरुष के नाम से मशहूर राजेन्द्र सिंह ने कहा कि चंद्रावल को फिर से जीवन देने के काम को खर्चीला नहीं बनाया जाना चाहिए। नदी सदानीरा हो जाए। इसके लिए उनके पास साधारण सा मॉडल है। उन्होंनें कहा कि कई जगहों पर 5 से 6 मीटर तक खोदाई करने के बाद वाटर लेबल रिचार्ज कर जमीन के अंदर के पानी को बाहर निकालना फायदेमंद रहेगा।

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