चौरीचौरा कांड की अजब दास्तान: क्रांतिकारियों और अंग्रेजों का शहीद स्मारक एक साथ

रेलवे स्टेशन पर जहां पुलिस फायरिंग और फांसी के तख्ते पर चढ़े क्रान्तिकारियों की याद में शहीद स्थल बना है तो वहीं थानापरिसर में भी गुस्साई भीड़ द्वारा थाने में आग लगाए जाने से मारे गए 23 पुलिस वालों की याद में शहीद स्मारक बना है।

Roshni Khan
Published on: 2 Feb 2021 3:02 AM GMT
चौरीचौरा कांड की अजब दास्तान: क्रांतिकारियों और अंग्रेजों का शहीद स्मारक एक साथ
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चौरीचौरा कांड की अजब दास्तान: क्रान्तिकारियों और अंग्रेजों का शहीद स्मारक एक साथ (PC: social media)

गोरखपुर: प्रदेश सरकार 4 फरवरी से स्वतंत्रता संग्राम की दशा-दिशा बदलने वाले चौरीचौरा कांड का शताब्दी वर्ष धूमधाम से मना रही है। 4 फरवरी को कार्यक्रम स्थल पर जहां राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में कार्यक्रम होंगे, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वर्चुअल भाषण भी होगा। लेकिन यहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को नमन करने को आ रहे लोग क्रांतिकारियों और अंग्रेज पुलिस वालों के लिए अलग-अलग शहीद स्थल देखकर चौंक रहे हैं।

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रेलवे स्टेशन पर जहां पुलिस फायरिंग और फांसी के तख्ते पर चढ़े क्रान्तिकारियों की याद में शहीद स्थल बना है तो वहीं थानापरिसर में भी गुस्साई भीड़ द्वारा थाने में आग लगाए जाने से मारे गए 23 पुलिस वालों की याद में शहीद स्मारक बना है। घटना के 100 साल बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का कत्लेआम करने वालों की यादें संजोने के लिए बने स्मारक को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। दरअसल, चौराचौरा में एक शहीद स्मारक चौरीचौरा रेलवे स्टेशन के पास बना हुआ है। जिसका शिलान्यास पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने चौरीचौरा की घटना के 60 साल बाद 6 फरवरी, 1982 को किया था। 19 जुलाई, 1993 को इसका लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. नरसिम्हा राव ने किया।

gorakhpur-matter gorakhpur-matter (PC: social media)

दो जमीदारों के आर्थिक सहयोग से बना था थाना परिसर का स्मारक

इसी के साथ दूसरा स्मारक थाना परिसर में मारे गए अंग्रेजी हुकूमत के पुलिस वालों की याद में बना है। जिसका लोकार्पण अंग्रेज अफसर विलियम मौरिस ने 1924 में थाना परिसर में किया था। इस स्मारक पर आने वाले खर्च को गोरखपुर के ही दो जमीदारों ने उठाया था। पूर्व राज्यसभा सांसद आस मोहम्मद कहते हैं कि अंग्रेज पुलिस की तथाकथित कुर्बानी के चलते 19 क्रांतिकारियों को फांसी हुई। एक ही घटना के दो शहीद नहीं हो सकते हैं। यह गद्दारों का स्थल है, इसे शहीद स्थल नहीं कहा जाना चाहिए।

चौरीचौरा की घटना पर पुस्तक लिखने वाले सुभाष कुशवाहा कहते हैं कि तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत के लिहाज से यह सही हो सकता है, लेकिन आजाद भारत में शहीद स्मारक स्वीकार्य नहीं है। चौरीचौरा के पत्रकार राजअंनत कहते हैं कि आजाद हिन्दुस्तान में यह स्मारक गुलामी का प्रतीक है। थाना परिसर के स्मारक पर शहीद और जयहिन्द शब्द तत्काल हटना चाहिए। जयहिन्द बोलने पर क्रान्तिकारियों पर गोलियां बरसाने वालों को शहीद कैसे बोला जा सकता है। यदि उन्हें सम्मान देना ही है तो उस स्मारक पर ब्रिटिश पुलिस स्मारक लिखा जाए।

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घटना के बाद गांधी ने वापस ले लिया असहयोग आंदोलन

4 फरवरी 1922 को चौरीचौरा के भोपा बाजार में सत्याग्रही जुटे। थाने के सामने से गुजर रहे सत्याग्रहियों के जुलूस को तत्कालीन थानेदार गुप्तेश्वर सिंह ने अवैध मजमा घोषित कर रोक दिया। एक सिपाही ने वालंटियर की गांधी टोपी को पांव से रौंद दिया। इससे आक्रोशित सत्याग्रहियों के विरोध पर पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। जिसमें 11 सत्याग्रही मौके पर ही शहीद हो गए, जबकि 50 से ज्यादा घायल हो गए। गोलियां खत्म होने पर पुलिसकर्मी थाने की तरफ भागे। फायरिंग से भड़की भीड़ ने उन्हें दौड़ा लिया। केरोसीन, मूंज और सरपत से थाने में आग लगा दी गई। जिसमें 23 पुलिस वालों की मौत हो गई। इस घटना के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था।

रिपोर्ट- पूर्णिमा श्रीवास्तव

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