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अब आई सरकारी स्कूल के बच्चों की याद

raghvendra
Published on: 12 Oct 2018 9:44 AM GMT
अब आई सरकारी स्कूल के बच्चों की याद
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गोरखपुर : बजट मिलेगा तो बदलाव दिखेगा

प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक स्कूलों के रंगरोगन और अन्य सुविधाओं के लिए बजट आंवटित करने के सरकार के निर्णय के बाद अधिकारी से लेकर शिक्षक तक बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं। छात्रसंख्या को लेकर शिक्षकों में प्रतियोगिता बढऩे की उम्मीद है। कई शिक्षक दावा कर रहे हैं कि सबकुछ ठीक से लागू हुआ तो प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों की सूरत बदल जायेगी। प्राथमिक स्कूल भी कान्वेंट से मोर्चा ले सकेंगे।

गोरखपुर जिले में 2170 प्राथमिक व 733 उच्च माध्यमिक विद्यालय हैं। ८३०० शिक्षक व 2 लाख 98 हजार छात्र हैं। पिछले कुछ वर्षों में छात्रसंख्या और शिक्षा की गुणवत्ता में भले ही खास सुधार नहीं आया हो, लेकिन स्कूलों की बिल्डिंग के रंगरोगन को लेकर शिक्षक जरूर सक्रिय दिख रहे हैं। लेकिन सरकार शैक्षणिक क्रियाकलापों को संचालित करने और भवनों के मरम्मत आदि पर जो रकम देती है, वह ऊंट के मुंह में जीरा ही है। अभी प्राथमिक स्कूलों को कुर्सी, मेज, चॉक, डस्टर आदि के लिए 5 हजार रुपए सालाना मिलते हैं। भवन की मरम्मत, रंगाई, वॉल राइटिंग आदि के लिए कक्ष संख्या के आधार पर 5 से 10 हजार रुपए मिलते हैं। पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में शैक्षणिक कार्यों के लिए 7 हजार और भवन की मरम्मत आदि के लिए 6500 रुपये सालाना मिल रहे हैं।

सरदारनगर क्षेत्र के प्राथमिक स्कूल में प्रधानाचार्य विजय मिश्रा कहते हैं कि 15 वर्ष पहले भी इतनी ही रकम मिलती थी। तब पेंटर आसानी से 80 से 100 रुपये में मिल जाते थे, अब 400 रुपये से कम पर कोई काम करने को तैयार नहीं है। सरकार का जो प्रस्ताव बताया जा रहा है वैसा हुआ तो यह प्राथमिक शिक्षा के लिए क्रांतिकारी होगा। एक प्राथमिक स्कूल के प्रधानाचार्य प्रवीण जायसवाल बताते हैं कि कंघी-तेल के लिए अलग से कोई रकम नहीं मिलती है। नये प्रस्ताव पर अमल होता है तो अच्छे शिक्षकों को प्रोत्साहन मिलेगा। छात्रसंख्या के आधार पर बजट मिलने के प्रस्ताव पर अमल हुआ तो गोरखपुर के 80 फीसदी से अधिक स्कूलों की सूरत बदल जायेगी। गोरखपुर में पिछले सितम्बर महीने में 66 स्कूल ऐसे चिन्हित हुए थे, जहां छात्रसंख्या 100 से कम थी। अनुदेशकों के नियुक्ति के बाद 52 स्कूलों में छात्रसंख्या 100 से पार हो गई है। यानी गोरखपुर के कमोवेश सभी स्कूलों में छात्रसंख्या 100 पार की होती दिख रही है।

नगर शिक्षा अधिकारी ब्रह्रïमचारी शर्मा का कहना है कि शासन की मंशा प्राथमिक स्कूलों को कान्वेंट के मुकाबले खड़ा करने की है,लेकिन प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश मंत्री और गोरखपुर के जिलाध्यक्ष भक्तराजराम त्रिपाठी का कहना है कि प्रदेश सरकार कागजों में ही योजनाएं बना रही है। चुनावी वर्ष में लोकलुभावन योजनाओं पर विश्वास कम ही होता है। सरकार पहले प्रस्ताव को अमल में लाए।

टॉप फाइव स्कूलों के शिक्षक गदगद

छात्रसंख्या के लिहाज से बड़े स्कूलों के शिक्षक संभावित बदलाव को लेकर काफी खुश हैं। पिपराइच के बसडीला प्राथमिक स्कूल में 378, पिपरौली के बरहुआ प्राथमिक स्कूल में 385, दाउदपुर प्राथमिक विद्यालय में 398, कौड़ीराम प्राथमिक विद्यालय में 403 और करमहा के प्राथमिक स्कूल में छात्र संख्या 368 है। जिले में 70 से अधिक विद्यालयों में 300 से अधिक की छात्रसंख्या है। यहां के शिक्षकों को उम्मीद है कि उनके बच्चे बेहतर माहौल में शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे।

शासन को भेज दी है छात्रसंख्या:बीएसए

गोरखपुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी भूपेन्द्र नारायण सिंह का कहना है कि बजट आवंटन के नये प्रस्ताव को लेकर लिखित में कोई जानकारी नहीं है। अभी किसी प्रकार के बजट का आवंटन नहीं हुआ है। ब्लाकवार विद्यालय, छात्रसंख्या और शिक्षकों की संख्या को लेकर सूचना मांगी गई है जिसे भेज दिया गया है। जर्जर भवनों को लेकर भी सूची भेजी गई है, ताकि उनकी मरम्मत कराई जा सके।

वाराणसी:आखिर कैसे पढ़ें और बढ़ें बच्चे

साक्षरता दर बढ़ाने के लिए केंद्र और प्रदेश की सरकारें लगातार कोशिश कर रही हैं। बच्चों की शिक्षा के नाम पर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है, लेकिन शिक्षा विभाग की लापरवाही और भ्रष्टाचार की मजबूत जड़ें सरकार की सभी कवायदों पर पानी फेर दे रही हैं। दरअसल प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद प्राइमरी स्कूलों की शक्लो-सूरत बदलने की कवायद शुरू हुई। इन स्कूलों को नया लुक देने का ऐलान हुआ। बच्चों को आधुनिक संसाधनों से युक्त स्कूल कैंपस देने का दावा किया गया, लेकिन अपना भारत की पड़ताल बताती है कि अधिकांश स्कूलों के पास बिल्डिंग के अलावा बेहद सीमित संसाधन हैं। ये हाल प्रदेश के किसी दूरदराज जिले का नहीं है बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का है। सरकार के अधिकांश स्कूलों में मरम्मत के नाम पर मामूली रकम पहुंचती है। लिहाजा स्कूल बदहाली का दंश झेल रहे हैं।

संसाधन के नाम पर सीमित रकम

अधिकांश स्कूलों के अध्यापकों का कहना है कि आधुनिकीकरण के नाम पर जो पैसा स्कूलों को अब तक मिलता रहा है वो काफी कम है। स्कूलों में स्टेशनरी, टाट-पट्टी, स्वच्छता, रेडियो, अग्निशमन यंत्र, साबुन, ब्लैकबोर्ड, झूला, झाड़ू और कूड़ादान की व्यवस्था की बात होती है। लेकिन ये व्यवस्था सिर्फ कागजों पर ही चल रही है। अपना भारत की पड़ताल के दौरान अधिकांश व्यवस्थाएं ध्वस्त दिखीं। अधिकांश स्कूलों में बच्चे टाट-पट्टी पर जैसे-तैसे बैठे हुए मिले। ज्यादातर स्कूलों में ब्लैकबोर्ड आधे से ज्यादे उखड़े मिले। अग्निशमन यंत्र, झूला और कूड़ादान तो नजर ही नहीं आए। अध्यापकों का कहना था कि शासन स्तर पर इन व्यवस्थाओं की मरम्मत के लिए सिर्फ 5000 रुपए का प्रावधान है। इतने पैसे में क्या हो सकता है? अध्यापकों के मुताबिक स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद और कुछ अपने स्तर से हम लोग स्कूल का खर्च चला रहे हैं।

वाराणसी के जिला बेसिक शिक्षाधिकारी जय सिंह के मुताबिक शासन की ओर से स्कूल मेंटनेंस ग्रांट बढ़ाने का फरमान आ चुका है, लेकिन अभी बजट स्वीकृत नहीं हुआ है। शिक्षक संघ के नेता राजीव कुमार सिंह के अनुसार अगर वाकई नई व्यवस्था लागू होती है तो इससे स्कूलों का कायाकल्प होगा क्योंकि मौजूदा व्यवस्था में स्कूलों का मेंटनेंस संभव नहीं हो सकता है। राजीव कुमार के मुताबिक अध्यापकों की सैलरी तो छह गुना बढ़ गई, लेकिन स्कूल की मेंटनेंस की रकम आज भी वही है जो दो दशक पहले थी।

व्यवस्था पर भारी बदइंतजामी

सरकार भले ही लाख कोशिश कर ले, लेकिन शिक्षा विभाग की बदइंतजामी पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर रही है। पिछले साल बच्चों को स्वेटर बांटने में हुई लापरवाही इस साल भी जारी है। शैक्षणिक सत्र का आगाज अप्रैल महीने से ही हो जाता है, लेकिन जनपद के अधिकांश स्कूलों में बच्चों को किताबें और बैग बांटने का कार्य अगस्त-सितंबर में पूरा हुआ है। बच्चों को बांटे जाने वाले जूतों को लेकर भी पेंच फंस गया है। लापरवाही का आलम ये है कि जिन बच्चों के पैरों में तीन नंबर के जूते होते हैं, उन्हें सात नंबर के जूते भेजे गए हैं। लिहाजा स्कूलों में अधिकांश बच्चों को जूते और मोजे नहीं मिल पाए हैं। बच्चों के पैरों के नाप ना होने के कारण विभिन्न ब्लॉकों में करीब हजारों जोड़ी जूते बेकार पड़े हैं। इस बार जूता मोजा सीधे ब्लॉक पर भेजा गया ताकि तत्काल इसका वितरण हो सके। इसी तरह अध्यापकों की संख्या को लेकर भी स्कूल जूझ रहे हैं। अधिकांश स्कूलों में अध्यापकों की कमी है, लिहाजा छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।

मेरठ में परवान नहीं चढ़ रही सरकारी कोशिशें

प्रदेश सरकार भले ही बेसिक स्कूलों को नया लुक देने की कोशिशों में जुटी है, लेकिन सच्चाई यही हैकि अभी तक इन कोशिशों को अपेक्षित कामयाबी मिलती नहीं दिख रही है। मेरठ मंडल में 300 से ज्यादा ऐसे स्कूल हैं,जिनकी इमारत जर्जर अवस्था में हैं। हापुड़ में अभी हाल ही में चमरी मोहल्ला में स्कूल की छत गिर गई थी। मेरठ शहर में ही 19 स्कूल भवन बुरी हालत में हैं।शहर के सरायलाल मोहल्ले में स्थित प्राथमिक विद्यालय सरायलाल दास की बिल्डिंग बहुत पुरानी हो चुकी है। दीवारों में जगह-जगह दरारें पड़ गई हैं। ऐसे में यहां किसी समय भी बड़ा हादसा हो सकता है। शौचालय है पर पानी की व्यवस्था नहीं है। हालांकि स्कूल परिसर में एक हैंडपंप है, लेकिन वह साल भर से खराब पड़ा है। बिजली वायरिंग पुरानी पड़ चुकी है।

स्कूल शिक्षक अफसरों के डर से कुछ बोल नहीं रहे हैं। अलबत्ता,स्कूल के बच्चे जरूर स्कूल की हालत की पोलपट्टïी खोलते हैं। चौथी का छात्र अमित कहता है कि बिजली अधिक समय के लिए जाती है तो टीचर हमारी छुट्टी कर घर भेज देते हैं। ऐसा ही हाल शहर के ही खिश्त पजान(उर्दू माध्यम) और जिले के करीब-करीब सभी स्कूलों का है।

निजी स्कूलों से बेहतर होगी बिल्डिंग

बीएसए सतेन्द्र ढाका बेसिक स्कूलों की जर्जर हालत पर तो कुछ नहीं बोलते,लेकिन ये दावा जरूर करते हैं कि बहुत जल्दी बेसिक स्कूलों की इमारतें निजी स्कूलों से भी बेहतर दिखेंगी। बीएसए के अनुसार बजट का पैसा स्कूलों में बांट दिया जाता है। इसके बाद संबंधित स्कूलों की प्रबंध समिति ही बजट को आवश्यकतानुसार खर्च करती है। बीएसए के अनुसार स्कूलों में कंघी-तेल आदि की व्यवस्था पूर्व में भी थी।

उधर,विभागीय सूत्रों के अनुसार जनपद में 910 परिषदीय स्कूल हैं। इनमें 1.21 लाख छात्र पंजीकृत हैं। 8 करोड़ छात्रों के मिड डे मील पर खर्च होता है। 5.38 करोड़ छात्रों की यूनीफार्म पर,2.60 करोड़ रुपए किताबों पर, 2.38 करोड़ रुपए स्वेटर पर, 1.60 करोड़ रुपए जूतों पर और 45.62 लाख रुपए मोजों पर खर्च किये जाते हैं। ज्यादातर स्कूलों में फर्नीचर बुरी हालत में हैं।बेसिक शिक्षक संघ से जुड़े ब्रजेश कुमार कहते हैं कि कई साल से फर्नीचर के लिए बजट नहीं मिला। कुर्सियां टूटने पर शिक्षकों को ही अपने पैसे से मजबूरन कुर्सियां मंगानी पड़ती है।

सहारनपुर : पहले की योजनाएं हो चुकी हैं फ्लॉप

स्कूलों में बच्चों की संख्या से बढ़ाने से लेकर शिक्षण व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए सरकार की तमाम योजनाएं लागू होती रही हैं। अब समग्र शिक्षा अभियान के तहत कम्पोजिट स्कूल ग्रांट से बेसिक स्कूलों की तस्वीर में कितना बदलाव आएगा, ये देखने वाली बात है।

पहले भी राज्य सरकार द्वारा बेसिक स्कूलों की तस्वीर बदलने के लिए योजनाएं लाई गईं, लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों और शिक्षकों के रवैये के कारण कई योजनाएं पूरी तरह से नाकाम साबित रही हैं। खास बात यह है कि सरकार ने जो नई मद तय किए हैं, उनमें स्कूलों के जीर्णोद्धार के लिए कहीं कोई जिक्र नहीं है। स्कूलों का जीर्णोद्धार पुरानी तर्ज पर ही होगा। मतलब कि जर्जर स्कूल के भवन निर्माण के लिए पहले प्रस्ताव बनाना होगा। इसके बाद यह प्रस्ताव शिक्षा मुख्यालय को जाएगा और वहीं से धन का आवंटन होगा।

सहारनपुर जनपद की बात करें तो यहां 1931 बेसिक स्कूल हैं जिनमें १,७७,३१० बच्चे पंजीकृत हैं। इन स्कूलों में करीब एक सौ ऐसे हैं, जिनकी हालत बच्चों के बैठने लायक भी नहीं है। किसी की छत टपकती है तो किसी की दीवार गिरने की कगार पर है। सरकार की ओर से नई मदों में जो राशि आवंटित की गई हैं उसको खर्च करने के लिए बाकायदा डीएम की अध्यक्षता वाली कमेटी में इसका निर्णय होने के साथ ही टेंडर व्यवस्था लागू की जाएगी। हाल फिलहाल यह तय नहीं किया गया है कि उक्त मदों में खर्च के लिए किसी एजेंसी की मदद ली जाएगी या नहीं।

कुछ दिनों बाद दिखेगा असर

ग्राम उग्राहू के प्राथमिक स्कूल की प्रबंध समिति के सदस्य अरुण प्रताप का कहना है कि सरकार ने बेसिक स्कूलों की दशा सुधारने के लिए जो कदम उठाया है, आगामी दिनों में इसका असर देखने को मिलेगा। शिक्षक संघ नेता अशोक मलिक का कहना है कि सरकार ने जो नई मद के तहत राशि आवंटित की है वह सही है, लेकिन इन सभी मदों को देखने के बाद यह बताया जाए कि इसमें बच्चों के लिए सरकार ने क्या किया है। किताबें, जूते ड्रेस आदि तो पहले से मिलते रहे हैं, लेकिन नई मदों में बच्चों का भविष्य बनाने के लिए कुछ भी नहीं दिया गया है। किसी भी स्कूल की दशा सुधारने के लिए सबसे पहले शिक्षकों की व्यवस्था करनी होती है। आज हालात यह है कि किसी स्कूल में दस-दस शिक्षक हैं और कोई स्कूल केवल शिक्षा मित्रों के भरोसे ही चल रहा है। दूरस्थ क्षेत्र के स्कूलों में आज भी शिक्षक जाना पसंद नहीं करते हैं। जो तैनात हैं, वे अपनी हाजिरी लगाने के लिए भी नहीं जाते हैं। स्कूलों की दीवारों पर पेंट, स्लोगन, रंगाई पुताई पहले भी होती आई है। अब इस नए बजट में क्या नया किया गया है। कुल मिलाकर सरकारी धन का बंदरबांट ही होना है।

सहारनपुर के शिक्षा विभाग के बेसिक शिक्षा अधिकारी रमेंद्र कुमार सिंह का कहना है कि सरकार ने जो नई मदों के तहत राशि आवंटित की है, उससे न केवल स्कूलों में बच्चों की संख्या में इजाफा होगा बल्कि प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा का एक नया माहौल तैयार होगा। जर्जर स्कूलों की दशा सुधारने के लिए प्रस्ताव के हिसाब से ही बजट प्रदान किया जाता है।

सुलतानपुर को मिले 8.5 करोड़ रुपए

सरकार की ओर से जिले के २,३४२ स्कूलों को ८.५ करोड़ रुपए की लागत से नया लुक देने की तैयारी है। इसमें छात्र संख्या के हिसाब से पांच कैटेगरी बनाई गई हैं। एक से 15 तक की छात्र संख्या वाले विद्यालयों को 12,500 रुपए मिलेंगे। 15 से 100 छात्र संख्या वाले विद्यालय25 हजार रुपए, 100 से 250 छात्र संख्या वाले विद्यालय 50 हजार रुपए, 250 से 1000 छात्र संख्या वाले विद्यालय75 हजार रुपए और 1000 से अधिक छात्र संख्या वाले विद्यालय एक लाख रुपए पाएंगे।

कंपोजिट स्कूल ग्रांट खर्च करने के लिए शासन ने 17 मद सुझाए हैं। इसमें स्वच्छता अभियान के तहत झाड़ू, कूड़ेदान, हाथ धोने का साबुन, फिनायल, चूना, बाल्टी आदि खरीदा जाएगा। मेंटेनेंस के काम में विद्यालय में मौजूद कुर्सी-मेज, झूले, हैंडपंप, ब्लैकबोर्ड, फर्श, दीवार आदि का मरम्मत कार्य कराया जाएगा। रंगाई-पुताई, पेंटिंग के साथ-साथ फस्र्ट एड बॉक्स भी रखे जाएंगे। टाट-पट्टी, अग्निशमन यंत्र, स्टेशनरी, रेडियो, इंटरनेट कनेक्शन, विद्युत उपकरण व अन्य सामग्री भी इसी पैसे से खरीदा जाएगा। कंपोजिट स्कूल ग्रांट में मिली धनराशि का दुरुपयोग न हो, इसके लिए शासन ने सभी खंड शिक्षाधिकारियों के माध्यम से रैंडम चेकिंग कराने का निर्देश दिया है। ग्रांट से खरीदी गई सामग्री दो स्टॉक रजिस्टरों में अंकित की जाएगी। इसमें एक में उपभोग की जाने वाली सामग्री का अंकन होगा तो दूसरे में शेष स्टॉक सामग्री अंकित की जाएगी। धनराशि सीधे विद्यालय प्रबंध समिति के खातों में भेजी जाएगी। इसका संचालन प्रबंध समिति अध्यक्ष एवं प्रधानाध्यापक के संयुक्त हस्ताक्षर से होगा। स्वीकृत धनराशि में 10 प्रतिशत धनराशि स्वच्छता अभियान पर खर्च होगी। बीएसए कौस्तुभ कुमार सिंह ने बताया कि शासन से आठ करोड़ 53 लाख 75 हजार रुपये कंपोजिट स्कूल ग्रांट मिली है। जल्द ही छात्र संख्या के हिसाब से विद्यालयों के प्रबंध समिति खातों में धनराशि भेजी जाएगी।

रायबरेली : एक रुपये प्रतिदिन में कैसे बदलेगी तस्वीर

प्राथमिक स्कूलों को नया लुक देने की तैयारी है। सरकार ने बजट भी दे दिया है,लेकिन इस पैसे सेे कोई काम ढंग से होपाना मुमकिन ही नहीं है। रायबरेली में प्राथमिक स्कूल 1982 और जूनियर हाई स्कूल 623 हैं यानी कुल स्कूलों की संख्या 2605 है। इनमें अध्ययनरत 2,48, 885 बच्चों के सापेक्ष आठ करोड़85 लाख रुपये सालाना का बजट आवंटित हुआ है यानी प्रति छात्र 355 रुपये सालाना। इसका मतलब ये हुआ कि प्रतिदिन के हिसाब से प्रति छात्र एक रुपये से भी कम। और तो और, इस बजट का दस फीसदी अनिवार्य रूप से स्वच्छता अभियान पर खर्च किया जाना है। बाकी पैसा टाट-पट्टी, अग्निशमन यंत्र, स्टेशनरी, मरम्मत कार्य, रंगाई-पुताई व अन्य सामान की खरीदारी के लिए है।

बीएसए पीएन सिंह का कहना है कि शासन द्वारा जो धनराशि आवंटित हुई है, उसे नियमानुसार आवंटित करके स्कूल स्तर पर खंड शिक्षा अधिकारी व एबीआरसी द्वारा निगरानी कराई जायेगी।खंड शिक्षा अधिकारी नगर क्षेत्र अनुराधा मौर्या का कहना है कि पहले धनराशि कम होती थी, लेकिन काम यही सब करने होते थे। ऐसे में कुछ काम होते थे, कुछ काम नहीं हो पाते थे। अब जब बजट बढ़ा दिया गया है तो सारे काम हो जाएंगे। लेकिन सवाल ये है कि ऐसे कई स्कूल है जहां अभी भी विद्युत कनेक्शन नहीं है।

ऐसे में बिजली उपकरण, इंटरनेट और कम्प्यूटर पर बजट का आवंटन हास्यास्पद लगता है। कई ऐसे स्कूल हैंजहां बिजली बिल न जमा होने की वजह से पिछले तीन साल से बिजली कटी हुई है। प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष बृजेन्द्र सिंह राठौर ने बताया कि स्कूल की पुताई और मरम्मत के नाम पर साल दर साल 5000 और 7000 रुपए की धनराशि दी जाती रही है। शिक्षक संघ अनेकबार इस समस्या को सरकार के सामने रखता आया है, धरना-प्रदर्शन और ज्ञापन देता रहा है मगर कुछ नहीं हुआ। स्कूलों की दयनीय दशा के मद्देनजर स्कूल को सजाने संवारने में शिक्षक अपने वेतन और अपनी जेब का पैसा लगाते हैं। स्कूल ग्रांट में जो 12500 से एक लाख तक कि बढ़ोतरी की गई है,वह स्वागत योग्य कदम है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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