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चीन की धनवर्षा से भारत-नेपाल में बढ़ रहीं दूरियां
पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक से लेकर भाषाई संबंधों पर चीनी ड्रैगन की बुरी नजर है। नेपाल के प्रति भारत की लचर विदेश नीति का चीन भरपूर लाभ उठाता दिख रहा है। चीन का दखल न सिर्फ नेपाल के ट्रांसपोर्ट, दूरसंचार, इन्फ्रास्ट्रक्चर और विद्युत परियोजनाओं पर है बल्कि अब वह नेपाली स्कूलों में पैठ बना रहा है। नेपाल के स्कूलों ने छात्रों के लिए चीनी (मंदारिन) भाषा सीखना अनिवार्य कर दिया है। मंदारिन के शिक्षकों का वेतन काठमांडू स्थित चीनी दूतावास द्वारा दिया जाएगा।
चीन के स्कूलों में दखल को लेकर न तो भारत की तरफ से कोई विरोध है न ही नेपाल में किसी प्रकार की आवाज उठ रही है। कुल मिलाकर चीन धनवर्षा कर मित्र देश भारत और नेपाल में दूरियां बनाने में कामयाब होता दिख रहा है।
स्कूलों में चीनी भाषा की पढ़ाई
दरअसल, चीन नेपाल में लगातार निवेश बढ़ा रहा है लेकिन भारत का निवेश प्रतिशत साल दर साल घट रहा है। चीन ढेरों बड़ी परियोजनाओं पर बड़े पैमाने पर काम कर रहा है। चीन संचालित योजनाओं से रोजगार सृजन हो रहा है। कंपनियां ऐसे नेपालियों को तरजीह दे रही हैं जो चीनी भाषा जानते हैं। रोगजार की उम्मीद में नेपाली अभिभावक भी अपने बच्चों को चीनी भाषा का ज्ञान दिलाने को लालायित हैं। नेपाल में स्कूलों के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने का जिम्मा सरकार के पाठ्यक्रम विकास केंद्र के पास है। सरकारी पाठ्यक्रम विभाग के सूचना अधिकारी गणेश प्रसाद भट्टारी का कहना है कि 'स्कूलों को विदेशी भाषा पढ़ाने की अनुमति है। मगर वे किसी भी विषय को विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य नहीं कर सकते हैं। यदि कोई विषय अनिवार्य करना भी है तो इसका निर्णय सरकार करती है। यह स्कूलों का अधिकार नहीं है।' गणेश प्रसाद का यह बयान सरकारी अफसर का है लेकिन हकीकत की धरातल पर चीनी भाषा को लेकर आकर्षण पहाड़ से लेकर मैदान तक के नेपाली स्कूलों में देखा जा सकता है। नेपाल में प्रमुख स्कूलों के जिम्मेदार तो दावा करते हैं कि चीनी भाषा पहले ही अनिवार्य विषय के रूप में शामिल थी। इन शिक्षकों की सैलरी काठमांडू में चीनी दूतावास द्वारा दिये जाने से सहूलियत हुई है। पोखरा, धुलीखेल, डोल्पा, रोल्पा से लेकर तराई के क्षेत्रों के स्कूलों में भी चीनी भाषा का दखल बढ़ा है। युनाइटेड स्कूल के प्राचार्य कुलदीप एन.का कहना है कि मंदारिन विदेशी भाषा है। लोग जैसे अंग्रेजी सीखने को लेकर उत्सुक हैं, वैसे ही मंदारिन के लिए भी। बच्चों को भी अपनी पसंद बताने की अनुमति मिलनी चाहिए। यदि कोई जापानी या जर्मन पढ़ाना चाहे तो हम उनका भी स्वागत ही करेंगे।
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लचर विदेश नीति से बढ़ रही है भारत और नेपाल की दूरी
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने पहली यात्रा नेपाल की हुई थी। तब दोनों देशों के रोटी-बेटी के संबंधों पर चर्चा हुई लेकिन नेपाल में भूकंप और 2015 में बार्डर पर अघोषित नाकेबंदी ने दोनों देशों के बीच दरार पैदा कर दिए। तब नेपाल में रसोई गैस का सिलेंडर 10 हजार रुपए तक में बिका था। नेपाल में करोड़ों की कीमत की डंप पड़ी पुरानी भारतीय मुद्रा भी नाराजगी की बड़ी वजह बताई जा रही है। नेपाल सरकार के बार बार के गुहार के बाद भारत सरकार ने पुराने नोट नहीं बदले। नाराजगी में नेपाल ने 100 रुपए से अधिक के नोट पर पाबंदी लगा दी है। नेपाल के युवा वर्ग में भारत के प्रति सर्वाधिक नाराजगी दिख रही है। इसीलिए चीन किसी न किसी बहाने नेपाली युवाओं को लुभा रहा है। नेपाली सरजमी पर चीन विभिन्न योजनाओं के माध्यम से तेजी से पांव पसार रहा है। पोखरा से लेकर बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी में अरबों रुपए के निवेश से चीन हवाई सुविधाओं को बढ़ाने पर जुटा है।
पोखरा शहर में चीन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण कर रहा है, तो लुम्बिनी शहर के हवाई अड्डे का विस्तार भी तेजी से हो रहा है। चीन ने अपने बंदरगाह तक नेपाल के लिए खोल दिए हैं। तिब्बत से काठमांडू तक रेल लाइन परियोजना को लेकर भी तेजी से काम हो रहा है। काठमांडू और पोखरा सहित कई शहरों में चीनी रेस्तरां खुलते चले जा रहे हैं। नेपाली बाजारों में लगभग हर दूसरी दुकान के बोर्ड नेपाली व अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ चीनी भाषा में लिखे देखे जा सकते हैं। नेपाल टूरिज्म बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि नेपाल आने वाले सैलानियों में सर्वाधिक संख्या चीनी पर्यटकों की ही है। 2017 के मुकाबले 2018 में चीनी सैलानियों की आवाजाही में 200 फीसदी की बढ़त है। नेपाल सेना व नेपाल सशस्त्र पुलिस तक को चीन की ओर से प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हाल ही में नेपाल सशस्त्र पुलिस को चीन ने एक अत्याधुनिक प्रशिक्षण केंद्र बना कर दिया है। हालांकि प्रशिक्षण केन्द्र की घोषणा 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेपाल दौरे में की थी। भारत अभी योजना बनाता उसके पहले ही चीन ने उसे हकीकत की शक्ल दे दी।
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भारत सरकार मैत्री बस सेवा भी नहीं चला पा रही
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'जनकपुर टू अयोध्या' बस सेवा की शुरुआत बीते वर्ष 11 मई को की थी। बिन तैयारी की शुरू हुई यह सेवा अब जैसे तैसे चल रही है। बस में रोजाना के विवाद से दोनों देशों के बीच रिश्ते अच्छे होने के बजाए बिगड़ रहे हैं। बस को औसतन 15 से 20 सवारी ही मिल रही है। जनकपुर से सीधे अब तक 100 सवारी भी नहीं मिल सकी है। वहीं वाराणसी से काठमांडू के बीच मैत्री बस सेवा अचानक ठप हो गई है। जबकि नेपाल सरकार द्वारा अनुबंधित बस काठमांडू से वाराणसी बस सेवा पूर्व की तरह संचालित हो रही है। मार्च 2015 में दोनों देशों के बीच मैत्री बस सेवा शुरू हुई थी। एआरएम गोरखपुर डिपो केके तिवारी का कहना है कि मैत्री बस सेवा करीब दो महीने से प्रभावित है। इसकी वजह वाराणसी के अधिकारी ही बता सकते हैं। सेवा ठप होने के पीछे कोई सड़क खराब होना वजह बता रहा है तो कोई वॉल्वो बस सेवा ठप होना।
चीन का निवेश बढ़ रहा, भारत का घट रहा
वर्ष 2012-13 में भारत का नेपाल में निवेश 45.5 करोड़ रुपए का था जबकि चीन ने 61.30 करोड़ का निवेश किया। वर्ष 2010-11 में भारत का नेपाल में निवेश जहां 4.37 अरब था, वहीं चीन का निवेश महज 74.19 करोड़ ही था। 2016-17 के दौरान चीन का निवेश पांच अरब 22 करोड़ रुपए हो गया जबकि भारतीय निवेश एक अरब 24 करोड़ पर सिमट गया। नेपाल के निवेश बोर्ड और चीन की सिमेंट कंपनी हुआशिन के बीच 14.4 अरब के करार हुआ है। ऊंचे इलाकों में फलों एवं सब्जियों की विभिन्न किस्मों के उत्पादन के लिए फूड पार्क बनाने का भी करार किया। चीन इस पर 4.6 करोड़ डॉलर खर्च कर रहा है।
दूरसंचार के क्षेत्र में भारत के एकाधिकार को भी चीन से चुनौती मिल रही है। नेपाल की 2 करोड़ 80 लाख जनसंख्या में से करीब 60 प्रतिशत लोग इंटरनेट का प्रयोग करते हैं। नेपाल ने इंटरनेट सेवाओं की बेहतरी के लिए चीन का सहयोग ले रहा है। नेपाल टेलीकॉम और चाइना टेलीकॉम ग्लोबल ने चीन के केरूंग और नेपाल के रासुवागड़ी के बीच करीब 50 किमी तक ऑप्टिकल फायबर केबल बिछाए जाने के बाद अपनी सेवाएं भी शुरू कर दी हैं। दोनों देश 164 मेगावाट क्षमता की नेपाल कालीगंडकी गॉर्ज जलविद्युत परियोजना के विकास पर भी सहमत हुए। नेपाल सरकार के आंकड़े बताते हैं कि नेपाल में भारत 525 परियोजनाओं में शामिल है और कुल प्रस्तावित सीधे विदेशी निवेश में उसकी 46 प्रतिशत हिस्सेदारी है। जबकि चीन 478 परियोजनाओं में शामिल है।
चीन-नेपाल सीमा पर लापचा से लेकर भारत-नेपाल सीमा पर बिर्तामोड़ तक वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत सड़क बनाने की परियोजना पर काम कर रहा है। इससे चीन के बार्डर से भारतीय सीमा की दूरी महज 4 घंटे की रह जाएगी। भारत-नेपाल रिश्तों पर गोरखपुर विश्वविद्यालय के शोधार्थी डॉ.विनोद कुमार कहते हैं कि चीन लगातार भारत की रणनीतिक घेराबंदी कर रहा है। अगर भारत-नेपाल सीमा तक चीन सड़क बना लेता है तो यह भारत के लिए रणनीतिक रूप से बड़ी चुनौती होगी। पिछले दिनों नेपाल के रक्षामंत्री ईश्वर पोखरेल ने सैन्य मदद के तौर पर 150 मिलियन युआन के समझौते पर हस्ताक्षर किया था। हालांकि नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल को चीनी दखल में कुछ गलत नहीं दिखता है। उनका कहना है कि हमने कभी भी भारत के खिलाफ न तो चीन-कार्ड का इस्तेमाल किया और न ही चीन के खिलाफ भारत-कार्ड का। भारत और नेपाल के संबंध ऐसे होने चाहिए जहां दोनों के लिए फायदे की स्थिति बने। भारत के साथ हमारे पुराने भावनात्मक संबंध रहे हैं। आज विश्व व्यवस्था में कारोबार का महत्वपूर्ण स्थान है।