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Chitrakoot Horror Place: 1500 सालों से रह रही वहां, पायलों की झंकार से गूंजता है महल

सूरज की किरणों के ढलते ही यहां के तालाब से पानी की बुँदो की टप-टप के साथ आकर्षित करने वाली पायलो की खनक...

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Newstrack NetworkReport Zioul Haq
Published on: 23 Jun 2021 1:58 PM GMT (Updated on: 23 Jun 2021 2:04 PM GMT)
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छठी शताब्दी और आज 2021 करीब पंद्रह सौ साल से ज़्यादा का वक़्त गुजर चुका है। इतने लंबे अरसे में तो यादों पर भी वक़्त की गर्द चढ़ जाती है। पर यहां जिस जिस राज़ की बात की जा रही है, वो पंद्रह सौ साल बाद भी जिंदा है। एक किला जो भगवान् श्री राम की तपोभूमि में सीना ताने खड़ा है, इस किले में रहस्य है। सन्नाटे को चीरती घुंघरुओं की चीख़ है, तो कहीं तिलिस्मी चमत्कार कई ख़ौफ़नाक हवेलियों और किले के क़िस्से अब तक सुने गए हैं। ऐसी कोई भी हवेली या किला नहीं था, जहां कोई रहता हो, इसलिए दास्तान कितनी सच है, कितनी झूठ, ये शक़ हमेशा बना रहता है। मगर इस किले में 'वो' रहती है और साथ में रहती है उसकी घुंघरुओं का आवाज़।

जी हां...'वो', जिसे मरे 1500 साल बीत चुके हैं। कभी किसी महल जैसा रहा शानदार किला आज खंडहर में तब्दील हो गया है। मगर यहां की ज़िंदगी यहां के क़िरदारों के साथ आज भी ज़िंदा नज़र आती है। यहां की वीरानी आज भी किसी के जिंदा होने का एहसास कराती हैं और जब दिन थककर सो जाता है, तो यहां रात की तनहाई अक्सर घुंघरुओं की छनकती आवाजों से टूट जाती है। गणेश बाग़ के इस किले में काली गुफाओं के कई रहस्यमई तिलिस्म हैं। रात होते ही इन गुफाओं में एक अजीब हलचल होती है. दिन के वक्त ये किला जितना खामोश नज़र आता है, रात के वक्त उतना ही खौफनाक। शाम ढलते ही यहां से पायल और घुंघरुओं की तेज़ आवाज़ आने लगती है। जिसकी वजह से पुरातत्व की विरासत गणेश बाग़ के कर्मचारी जल्दी जल्दी दार्शनिक भीड़ को यहां से बाहर कर देते है। यहां के कर्मचारियों का कहना है कि शाम ढलने के बाद हम यहां किसी को नहीं रुकने देते क्युकी वो नहीं चाहते कि कोई इन आवाज़ों को सुने और खोफ में न आ जाए।

मिनी खजुराहो कहे जाने वाले गणेशबाग़ की ईमारत कुछ और कहानी सुनाती है, सूरज की किरणों के ढलते ही यहां के तालाब से पानी की बुँदो की टप-टप के साथ आकर्षित करने वाली पायलो की खनक सुनाई देने लगती है, ये किस्सा नहीं है ये है चित्रकूट के गणेशबाग़ की हकीकत है। कहते है राजा विनायक राव पेशवा ने इस ईमारत को बनवाया था, इस ईमारत में एक कुआ एक तालाब एक बाउली है इस बाउली में रानियों का डेरा रहा करता था जब भी राजा और उसकी रानियों को मनोरंजन करना हुआ करे तो वो ऐशगाह यानि गणेश बांग में जाना पसंद किया करते थे।

शाम के ढलता ये आग का गोला इसकी लालिमा की रौशनी और घर लौटे पक्षी इस सन्नाटे से दूर जाने की तैयारियां कर चुके है खजुराहो की तर्ज में बने विशाल चोटी, गुम्बद के चारो तरफ इस गणेश बांग में मूर्तियां है लेकिन गणेश भगवान की नहीं। यही वजह रही गणेशबांग को मिनी खजुराहो कहा जाने लगा और इस सन्नाटे को चीरती मराठा काल की रानियों को सुगबुगाहट व पायलो की आवाजे आज भी सूरज ढलने के बाद सुनाई देती हैं, घुप्प अंधेरी रात में जब सन्नाटे से पायलो की आवाजे जो सुनता है वो पल भर के लिए सन्न रह जाता है, क्योकि इस इमारत में शाम ढलते ही सबको बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। इसमें खजुराहो शैली पर आधारित काम कला का विस्तृत चित्राकंन भी है। पंचखंड की वावली है, जिसके चार खण्ड भूमिगत हैं। गर्मियों में जलस्तर कम होने पर तीन खंडों के लिए रास्ता जाता है। कर्वी पेशवाकालीन राजमहल से गणेश बाग तक गुप्त रास्ता है, जो पेशवाओं के पारिवारिक सदस्यों के आने-जाने के लिए प्रयोग किया जाता था। इस इमारत में एक चौकीदार भी तैनात है सुनते है चौकीदार की जुबानी।

इस किले में आने जाने वालो की ज़ुबानी माने तो दरअसल इस गणेश बाग़ किले में राजाओ की महारानियाँ जौहर किया करती थी और वो एक दौर था जब इस महल में हर रात महफिलें सजा करती थीं. कहने वाले कहते हैं कि आज 1500 साल बाद भी शाम ढलते ही एक नर्तकी के कदम यहां उसी तरह थिरकने लगते हैं. बस फर्क यह है कि अब इन घुंघरुओं की आवाज दिल बहलाती नहीं बल्कि दिल दहला जाती है। आस पास के इलाकाई लोगो की माने तो यहां डूबते सूरज और पायलो और चीख की आहिस्ता आहिस्ता बुलंद होती ये आवाज़े कानों में छम छम करने लगती है। हालांकि शुरुवाती दौर में एक डर सा लगता था लेकिन एक वक़्त बाद आदत सी हो गई और आज कोई डर नहीं लगता। ग्रामीणों की माने तो उनकी कभी इन आवाज़ों से कोई नुक्सान भी नहीं हुआ वहीँ यहां के कर्मचारी शाम क बाद किले में किसी को आने नहीं देते तो कोई बहुत खौफ भी नहीं हुआ।

मराठाकालीन इस किले से आने वाली इन आवाज़ों की हकीकत और स्थानीय लोगो की ज़ुबानी सुनंने के बाद हमारी टीम शाम ढलने के बाद बेसाख्ता इस खौफनाक वीरान इमारत में दाखिल हुई तो सुनाई दी पायल और घुंघरुओं की आवाज़। टीम ने पुरातत्व विभाग के लोगो से रात रुकने की इजाज़त मांगी लेकिन इजाज़त न मिलने पर किले में एक नाईट वीज़न कैमेरा लगाने की परमिशन मिल गई। कैमरे को जब सुबह निकाला गया तो जो कुछ उसमे रिकॉर्ड हुआ उसको सुनकर आपके रोंगते खड़े हो जाएंगे। एक पल को लगा की वहम है लेकिन कैमेरे के लेंस ने जो महसूस किया तो सुनाई दी सिरहन पैदा करने वाली वो पायलो की आवाज़। कहते हैं इस किले को मराठाकालीन बादशाह विनायक राव पेशवा ने बनवाया था। जिस किले का उपयोग रानियों के जौहर और मनोरंजन के लिए किया जाता था, लेकिन ये किला इतिहास के पन्नो में दर्ज होने की वजह से दूर दराज़ के दर्शनार्थियों के लिए आकर्षण का केंद्र है जहां की कामुक मुर्तिया यहना की सच्चाई को आपकी आँखों में उकेरती हैं।

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