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Chitrakoot News: पावन नगरी चित्रकूट के कण-कण में बसे हैं भगवान श्रीराम
अयोध्या से 6 घंटे की दूरी पर बना है चित्रकूट, यहां के मंदिरों की है अलौकिक मान्यताएं
Chitrakoot News: सदियों से हिंदुओं की आस्था का केंद्र चित्रकूट वही स्थान है, जहां कभी भगवान श्रीराम ने देवी सीता और लक्ष्मणजी के साथ अपने वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए थे। असल में कर्वी, सीतापुर, कामता, खोही और नया गांव के आस-पास का वनक्षेत्र चित्रकूट नाम से विख्यात है। चित्रकूट, चित्र और कूट शब्दों के मेल से बना है। संस्कृत में चित्र का अर्थ है अशोक और कूट का अर्थ है शिखर या चोटी। चूंकि इस वनक्षेत्र में कभी अशोक के वृक्ष बहुतायत में मिलते थे, इसलिए इसका नाम चित्रकूट पड़ा। चित्रकूट की महत्ता का वर्णन पुराणों के प्रणेता वेद व्यास, आदिकवि कालिदास, संत तुलसीदास तथा कविवर रहीम ने भी अपनी कृतियों में किया है। "चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवध नरेस, जेहि पर विपदा परत है, सो आवत एहि देस" अपने समस्त वांग्मय की रचना करने के उपरांत संत तुलसीदास की दृष्टि फिर चित्रकूट की ओर जाती है और लिखते हैं कि- "अब चित चेति चित्रकूट ही चलु, भूमि बिलोकु राम पद अंकित बन बिलोकु रघुवर विहार थलु" वर्तमान में यह स्थान उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले की कर्वी तहसील तथा मध्य प्रदेश के सतना जिले की सीमा पर झांसी-मानिकपुर रेलवे मार्ग पर स्थित है। चित्रकूट का मुख्य स्थल सीतापुर है जो कर्वी से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। चित्रकूट के प्रमुख दर्शनीय स्थल मध्य प्रदेश के सतना जिले में ही स्थित हैं। यों तो चित्रकूट प्राचीनकाल से ही हमारे देश का सबसे प्रसिद्ध धार्मिक सांस्कृतिक स्थल एक महत्वपूर्ण तीर्थ रहा है लेकिन श्रीरामचंद्र जी के साढ़े ग्यारह वर्ष तक यहां वनवास करने से इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है। वनवास काल में राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ यहां इतनी लंबी अवधि तक निवास किया कि चित्रकूट की पग पग भूमि राम, लक्ष्मण और सीता के चरणों से अंकित है। श्रीरामचंद्र जी ने चित्रकूट में साधनाकर शक्ति का संचय किया एवं अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष का संकल्प किया " निसिचर हीन करौं महि भुज उठाई प्रण कीन्ह"। कामदगिरि जहाँ भगवान राम ने विश्राम किया, जानकीकुंड जहाँ जग जननी सीता मंदाकिनी में नित्य स्नान पूजा करती थीं, स्फटिक शिला जहाँ मंदाकिनी के किनारे एक विशाल शिला पर बैठे राम ने जयंत पर बाण चलाया था, यहीं स्थित हैं।
लाखों दीपों से जगमगाती है मंदाकिनी
यहाँ सदियों से प्रवाहित मंदाकिनी नदी (जिसे पयस्वनी गंगा भी कहा जाता है) का जल पवित्र तथा सभी पापों का नाश करने वाला कहा जाता है। चित्रकूट में दीपावली एवं रामनवमी के अवसर पर विराट मेले लगते हैं। जिनमें पाँच से दस लाख तक तीर्थ यात्री भाग लेते हैं। उत्तरी भारत का इतना बड़ा ग्रामीण मेला अन्यत्र कहीं नहीं लगता है। दीपावली के दिन हजारों श्रद्धालु मंदाकिनी नदी में दीपदान करते हैं। वनवास की अवधि समाप्त होने पर भगवान श्रीराम का अयोध्या में जो राज्याभिषेक हुआ था उसकी याद में चित्रकूट के लोग घी के दिये जलाकर मंदाकिनी में बाँस की टट्टियों में रखकर प्रवाहित करते हैं और लाखों दीपों की ज्योति से मंदाकिनी का प्रवाह प्रकाशित हो उठता है। कामाद्गिरि पर्वत संभतः विश्व का पहला ऐसा पर्वत है जिसकी वर्ष में लाखों तीर्थ यात्री परिक्रमा करते हैं। चित्रकूट की महत्ता के बारे में गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है कि जो व्यक्ति चित्रकूट में रहकर मंदाकिनी का जल ग्रहण कर भगवान श्रीरामचंद्र जी का जाप करता है, उसे सहज ही परम सिद्धि प्राप्त हो जाती है। चित्रकूट की तपोभूमि इतनी मनोहारी है कि यहाँ के पर्वतों की चोटियाँ कामद्गिरि एवं मंदाकिनी का प्रवाह, सुंदर एवं आकर्षक वन गुफाएँ एवं कंदराएँ ऋषिमुनि कोल किरात सभी दर्शक का ध्यान बरबस खींच लेते हैं।
कामदगिरि पर्वत पर विराजमान देव कामतानाथ की परिक्रमा से पूरी होती है मनोकामना
यह उल्लेखनीय है कि वनवासी राम को महर्षि वाल्मीकि ने चित्रकूट निवास का परामर्ष दिया था। उनके अवतार कार्य के लिए उपयुक्त क्षेत्र होने के अतिरिक्त चित्रकूट की जलवायु एवं प्राकृतिक सौदर्य भी कुछ ऐसे हैं कि राम लक्ष्मण और सीता वनवास की लंबी अवधि वहाँ काट सके। सती अनुसूया आश्रम विशालकाय पर्वत के नीचे मंदाकिनी का शांत अविरल प्रवाह, एवं नाचते हुए मोरों के झुंड चित्त को अनायास हर लेते हैं। प्राकृतिक सुषमा से भरपूर हनुमान धारा, देवांगना एवं कोट तीर्थ सुरम्य दर्शनीय स्थल है। गुप्त गोदावरी में विशाल पर्वत मालाओं के नीचे मीलों अंदर पोल है तथा बहुत ही सुंदर प्राकृतिक रेखांकन है। अंदर के जल प्रपात में राम लक्ष्मण व जानकी के स्नान कुंड हैं। वाल्मीकि रामायण से पता चलता है कि उस समय मंदाकिनी में कमल के पुष्प भी खिलते थे और नदी के दोनों तटों पर घने वृक्ष थे। उस समय भी मंदाकिनी में स्नान करना पुण्यदायक माना जाता है और चित्रकूट वास को शोक और विपत्तिनाशक कहा जाता था। वाल्मीकि रामायण में स्वयं भगवान राम कहते हैं कि चित्रकूट में वास करने के कारण उन्हें जरा भी वनवास का कष्ट नहीं हुआ।
चित्रकूट के मुख्य देव कामतानाथ हैं जो कामदगिरि पर्वत पर विराजमान हैं, जिनकी परिक्रमा और दर्शन करने से माना जाता है कि व्यक्ति के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। इस पर्वत के चारों ओर पक्का परिक्रमा मार्ग बना हुआ है। मार्ग के किनारे-किनारे राम मुहल्ला, मुखारबिंद, साक्षी गोपाल, भरत-मिलाप आदि कई देवालय बने हुए हैं। इसके दक्षिणी ओर एक छोटी पहाड़ी पर लक्ष्मणजी का एक मंदिर भी है। कहा जाता है कि वनवास में लक्ष्मण जी यहीं रहा करते थे। परिक्रमा मार्ग में ही भरत मिलाप स्थित है। कहा जाता है कि यहीं भरत भगवान श्री राम से मिलने आए थे। चित्रकूट का सर्वाधिक रम्य स्थल मंदाकिनी नदी के पयस्वनी तट पर मध्य प्रदेश की सीमा में स्थित जानकी कुंड है। कहा जाता है कि माता जानकी इसी कुंड में स्नान किया करती थीं। इसके आगे एक विशालखंड है जिस पर भगवान राम के चरणचिह्न अंकित हैं। चित्रकूट से दक्षिण में लगभग १५ किलोमीटर की दूरी पर सती अनुसुइया तथा महर्षि अत्रि का आश्रम है। यहीं सती अनुसुइया और महर्षि अत्रि के साथ-साथ दत्तात्रेय व दुर्वासा व चंद्रमा आदि की मूर्तियाँ स्थापित हैं। रामघाट से पूर्व में स्थित एक पर्वतचोटी पर हनुमान जी की पवित्र मूर्ति स्थापित है। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष के अंतिम मंगलवार को यहाँ विशाल मेला लगता है। पर्वत के भीतर से ही एक ऐसा झरना फूट पड़ा है जिससे जिसकी जलधारा हुनमान जी की मूर्ति की बायीं भुजा पर गिरती है। यहाँ तक आने के लिए करीब ३५० सीढ़ियों को पार करना होता है। इसी पर्वत पर सीता रसोई व नरसिंह धारा भी देखने लायक हैं।
भगवान राम का जन्म भले ही अयोध्या में हुआ हो, लेकिन पिता दशरथ की आज्ञा से वह 14 वर्षों के वनवास पर चले गए थे। उन्होंने वनवास काल के साढ़े 11 साल तपोभूमि चित्रकूट में ही बिताए। इसीलिए कहा गया है कि चित्रकूट के कण-कण में भगवान श्रीराम और माता सीता बसती हैं। कई महान ऋषियों की तपोस्थली चित्रकूट के कण-कण में बसते हैं श्री राम, तभी तो श्री रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है," चित्रकूट में बस रहे रहिमन अवध नरेश, जापर विपदा पड़त है, एसो आवे यही देश" यानी चित्रकूट में श्री राम हमेशा निवास करते हैं और जिसके ऊपर विपदा पड़ती है वह उससे मुक्त होने के लिए चित्रकूट आता है।
गर्मी में ठंडी तथा ठंडी में गर्म रहती है गुफा
प्राकृतिक सुंदरता की चादर ओड़े चित्रकूट में न जाने ऐसे कितने स्थान हैं, जो इस बात की गवाही देते हैं की कभी वहां पर किन्हीं दिव्य शक्तियों का निवास था और ये शक्तियां थीं श्री राम व माता जानकी की है। कहा जाता है कि चित्रकूट के जिस भी स्थान पर भगवान श्री राम ने विचरण किया, उन स्थानों पर आज भी एक परम आध्यात्मिक अनुभूति महसूस की जाती है। श्री रामचरितमानस में लिखा गया है कि जब चित्रकूट में माता जानकी का निवास था और वे वनों में विचरण करती थीं तो उनके पैरों के नीचे आने वाले कंकण-पत्थर पिघल जाया करते थ। माता जानकी चित्रकूट की पवित्र मन्दाकिनी नदी में जहा स्नान करती थीं, आज उस स्थान को जानकी घाट के नाम से जाना जाता है। खास बात यह कि इस स्थान के पत्थर बिल्कुल वैसे ही पिघले नजर आते हैं, जैसा श्री रामचरितमानस तथा वाल्मीकि रामायण में उल्लेख किया गया है। वहीं राम सैया वह स्थान है, जहां श्री राम, माता जानकी के साथ विश्राम करते थे। पास में ही स्थित लक्ष्मण पहाड़ी है, जहां से लक्ष्मण श्री राम तथा माता जानकी की सुरक्षा में पहरा देते थे। गुप्तगोदावरी एक ऐसा अद्भुत स्थान है, जो आज भी विज्ञान के लिए पहेली बना हुआ है। इस स्थान पर जो गुफा है वह गर्मी में ठंडी तथा ठंडी में गर्म रहती है। इस गुफा का प्राकृतिक नक्कासी ऐसी है की कोई भी देखकर सोच में पड़ जाए।
मांग: विशेष पर्यटन का हिस्सा बने चित्रकूट
राम नवमी पर चित्रकूट के विभिन्न मठ-मंदिरों में भगवान राम व माता सीता की आराधना होती है। भजन-कीर्तन से वातावरण भक्तिमय हो जाता है जिसमे खासतौर पर प्रसिद्ध भगवान कामतानाथ पर्वत की भी पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है कि भगवान कामतानाथ श्री राम के प्रसाद के रूप में यहां विद्यमान हैं और लोगों की विपत्तियों को दूर करते हैं। कामदगिरी प्रमुख द्वार के महंत मदन गोपाल दास जी महाराज का कहना है कि चित्रकूट में भगवान राम ने साढ़े ग्यारह वर्ष तक रहकर तपस्या की और यह उनकी कर्मभूमि भी है। ऐसे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हमारी यही अपेक्षा रहेगी कि जिस तरह से विश्व पटल पर एक विशेष पर्यटन का हिस्सा खजुराहो को बनाया गया है, वहां विशेष सुविधाएं दी गई हैं, उसी प्रकार से चित्रकूट धाम को विश्व पटल पर मानचित्र को एक हिस्सा मिले। यहां पर विश्व भर से तीर्थयात्री आते हैं, लेकिन यहां उनको वैसी सुविधायें नहीं मिल पाती हैं। इसके अलावा यहां पर हर अमावस्या को हजारों-लाखों की संख्या में तीर्थयात्री आते हैं। रामायणी कुटी चित्रकूट के महंत रामहृदय दास जी महाराज का कहना है कि चित्रकूट और अयोध्या को जोड़ने वाले हमारे आराध्य भगवान राम हैं और उन्होंने अपनी यात्रा के पड़ाव का सबसे अधिक समय चित्रकूट में बिताया है। चित्रकूट में उन्होंने तपस्या करके रावण को मारने की शक्ति प्राप्त की। यहां से आगे जाकर उनकी यात्रा सफल हो पाई थी। इसलिए ये भगवान राम का दिया हुआ संबंध है, जो अटूट है। हमेशा से चित्रकूट और अयोध्या दोनों एक-दूसरे के पूरक रहे हैं।