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सिनेमा देखने में यूपी वाले फिसड्डी, कर्नाटक सबसे आगे

raghvendra
Published on: 22 April 2023 6:04 PM GMT (Updated on: 22 April 2023 6:42 PM GMT)
सिनेमा देखने में यूपी वाले फिसड्डी, कर्नाटक सबसे आगे
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लखनऊ: भारत के दक्षिणी राज्यों में बाकी देश से काफी कुछ अलग है और इनमें से एक है - सिनेमा और सिने सितारों के प्रति दीवानगी। फिल्मस्टार्स को पूजना, उनके मंदिर तक बना देना ये सिर्फ दक्षिण भारत में देखा जाता है। रील लाइफ में उत्तर-दक्षिण के बीच के फर्क को अब बाकायदा आधिकारिक आंकड़ों में दर्ज किया गया है।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे २०१५-१६ के हाल में जारी आंकड़ों से पता चलता है कि सर्वे में जितने लोगों से बात की गई उनमें औसतन १५ फीसदी महीने में कम से कम एक बार सिनेमा हॉल या थियेटर जाते हैं। लेकिन दक्षिण के पांच में से चार राज्यों - कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में औसतन ३० फीसदी से ज्यादा लोग महीने में कम से कम एक बार सिनेमा देखने जाते हैं। यही नहीं, इन राज्यों में हर तीन में एक व्यक्ति नियमित रूप से सिनेमा देखने जाता है। दक्षिण के राज्यों में सिर्फ केरल ही है जहां सिनेमा जाने वालों का औसत थोड़ा कम - २१ फीसदी - है। लेकिन फिर भी ये राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है। बिहार और यूपी जैसे राज्यों में तो दस में से एक ही व्यक्ति ने महीने में एक बार सिनेमा जाने की बात कही। यूपी के मात्र ६.३ फीसदी लोग सिनेमा देखने जाते हैं। बिहार में ये आंकड़ा थोड़ा ज्यादा ९.८ फीसदी है।

बंगलुरु टॉप पर

किसी जिले में सिनेमा देखने का सबसे ज्यादा क्रेज है, इसकी बात करें तो कर्नाटक का बंगलुरु शहरी जिला टॉप पर है। यहां लोगों का महीने में कम से कम एक बार सिनेमा या थियेटर जाने का औसत ५५ फीसदी है, इसके बाद चेन्नई का नंबर है जहां ५० फीसदी लोगों ने ये बात स्वीकारी। तीसरा स्थान तेलंगाना के रंगारेड्डी जिले (४४ फीसदी) का स्थान है।

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पैसे का कोई रोल नहीं

सर्वे से पता चला है कि सिनेमा देखने जाने की आदत में पैसे का कोई रोल नहीं है। दिल्ली, हरियाणा और पंजाब जैसे दक्षिण के बराबर धनी राज्यों में सिनेमा जाने की आवृत्ति बहुत कम है। मिसाल के तौर पंजाब में सिनेमा देखने जाने वालों का प्रतिशत ११.२ है।

टीवी काफी पॉपुलर

भारतीय परिवारों में टेलीविजन काफी पॉपुलर है। करीब ६२.१५ फीसदी पुरुषों व ६१.१७ फीसदी महिलाओं ने बताया कि वे टीवी देखते हैं। आयु वर्ग की बात करें तो सबसे ज्यादा २५ से २९ वर्ष के लोग टीवी के शौकीन हैं। इस आयु वर्ग के ६५.१८ फीसदी पुरुष व ६१.४१ फीसदी महिलाएं टॉप पर हैं।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे २०१५-१६ में ५ लाख से ज्यादा परिवारों के सैंपल साइज का सर्वे किया गया है। ये सर्वे मूलत: स्वास्थ्य योजनाओं के नतीजे मापने के लिए किया जाता है लेकिन इससे परिवार की संपत्तियों और लोगों के उपभोग के पैटर्न की बढिय़ा जानकारी भी मिलती है।

बहुत कम महिलाएं पढ़ती हैं अखबार

सर्वे में करीब एक-चौथाई लोगों ने कहा कि वे रोजाना एक अखबार या पत्रिका पढ़ते हैं। अखबार पढऩे वालों में महिला-पुरुष में काफी असमानता है जो संभवत: साक्षरता की वजह से हो सकती है। बहरहाल, २५ से २९ वर्ष की आयु के पुरुष अखबारों के सबसे बड़े (३५.५२ फीसदी) पाठक हैं। इसकी आयु वर्ग में महिलाओं का प्रतिशत मात्र १४.६१ है। एक दिलचस्प बात ये निकल कर आई कि उम्रदराज वाले लोग भी बहुत ज्यादा अखबार-पत्रिका नहीं पढ़ते हैं। मिसाल के तौर पर ४५ से ४९ वर्ष की आयु वर्ग के ३३.६७ फीसदी पुरुष व १२.१२ फीसदी महिलाएं अखबार-पत्रिका पढ़ती हैं। वहीं ५० से ५४ आयु वर्ग में ३२.७२ फीसदी पुरुषों ने अखबार-पत्रिका पढऩे की बात कही। इस आयु वर्ग महिलाओं का प्रतिशत शून्य पाया गया। ओवरऑल देखा जाए तो १४.१ फीसदी महिलाएं व ३३.४२ फीसदी पुरुष अखबार-पत्रिका पढ़ते हैं।

युवा पुरुष सबसे आगे

सिनेमा देखने जाने में स्त्री आगे हैं या पुरुष और वह भी किस आयु वर्ग के? इस सवाल का जवाब है - २० से २४ वर्ष की आयु के पुरुष सबसे आगे हैं। इनका प्रतिशत ३४.०३ है। इसी आयु वर्ग की महिलाएं (११.४६ फीसदी) टॉप पर हैं। सर्वे से पता चलता है कि ५० से ५४ आयु वर्ग के पुरुष सबसे कम सिनेमा देखने वाले - मात्र ६.३९ फीसदी हैं। इस आयु वर्ग में महिलाओं का प्रतिशत शून्य है। यानी उम्र बढऩे के साथ साथ सिनेमा देखने जाना कम होता जाता है। बता दें कि इन आंकड़ों में घर बैठ कर टीवी पर सिनेमा देखने वाले शामिल नहीं हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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