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जर्जर सिटी बसों से हजारों यात्रियों की खतरे में जान

raghvendra
Published on: 16 March 2018 9:25 AM GMT
जर्जर सिटी बसों से हजारों यात्रियों की खतरे में जान
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अमित यादव

लखनऊ: राजधानी और वाराणसी कहने को हैं तो वीवीआईपी क्षेत्र, लेकिन दोनों महानगरों में सिटी बसों का संचालन खस्ता है। उम्र पूरी होने के बावजूद बसों को सडक़ों पर उतारकर यात्रियों की जान जोखिम में डाली जा रही है। राजधानी स्थित बर्लिंगटन चौराहे पर हुए हादसे ने सिटी ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था की पोल खोल दी है। खटारा बसें अक्सर रास्ते में मुसाफिरों को धोखा दे जाती हैं। वाराणसी के शहरी क्षेत्रों में तो केवल सात सिटी बसों का ही संचालन होता है। इसके अलावा 120 बसें शहर के 8 रूटों पर चल रही हैं, वे भी जर्जर हालत में हैं। एक बस में प्रतिदिन 500 यात्री सफर करते हैं। देखा जाए तो हजारों यात्रियों की जान रोजाना खतरे में है। इसकी प्रमुख वजह अफसरों का नाकारापन है। बजट नहीं होने का हवाला देकर वे तमाम सवालों का मुंह बंद कर देते हैं।

बनारस में आ रही है दिक्कत

दुनिया के सबसे पुराने शहरों में शुमार होने वाली काशी में यातायात व्यवस्था की हालत खराब है। संकरी सडक़ों पर भर्राटा भरती गाडिय़ों के चलते जाम की समस्या आम है। शहर के बाहर तो हालात बेहतर हैं, लेकिन अंदर दाखिल होते ही परिवहन विभाग की ओर से संचालित बस ड्राइवरों के पसीने छूटने लगते हैं। मौजूदा वक्त में वाराणसी डिपो से शहर के अलग-अलग हिस्सों को जोडऩे के लिए कुल 130 बसें हैं। इनमें से 120 बसें शहर के आठ रुटों पर चलती हैं, लेकिन अधिकतर बसें रखरखाव के अभाव में जर्जर हो चुकी हैं।

बस संचालन को कठिन काम बताया

वाराणसी बस अड्डे के सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक बालेंदु तिवारी के मुताबिक शहर के अंदर सिटी बसों का संचालन बेहद कठिन है। हम चाहकर भी शहर के अंदर बसों की संख्या नहीं बढ़ा सकते। शहर में एक बड़े हिस्से में बस तो क्या ऑटो रिक्शा तक नहीं चल पाते। शहर की जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है जबकि सडक़ों की हालात जस की तस है। रिंग रोड बनने के बाद हालात में सुधार होने की संभावना है।

लखनऊ में बजट की है कमी

राजधानी में बजट के अभाव के कारण सिटी बसों की हालत खस्ता है। 260 बसें लखनऊ के बेड़े में हैं जिनका संचालन गोमतीनगर व दुबग्गा डिपो से होता है। इनमें से 70 से अधिक बसें खराब होकर कार्यशाला में खड़ी हैं। मौजूदा समय में शहर में 190 बसें चल रही हैं। इनमें से अधिकांश 5 लाख किमी से अधिक चल चुकी हैं। बसें अपने मानक समय से अधिक समय से चल रही हैं। लखनऊ में जो सिटी बसें चल रही हैं, उनमें रोजाना कोई न कोई खराबी आ जाती है। एक-दूसरे का पार्ट बदलकर बसों को ठीक किया जाता है।

अनफिट बसों को हटाने का दावा

लखनऊ सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज कंपनी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक आरिफ सकलैन ने बताया कि हमने अनफिट सिटी बसों को सडक़ों पर उतारने से रोक दिया गया है। हमारे लिए यात्रियों की सुरक्षा महत्वपूर्ण है। गोमतीनगर डिपो के सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक डीके गर्ग के मुताबिक बजट की कमी के चलते दिक्कत आ रही है। बसों की हालत खराब होने से वे अधिक डीजल तथा मोबिल खाती हैं। हम अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रहे हैं।

बस संचालन निजी हाथों में सौंपने की तैयारी

सरकार बसों के संचालन को सही करने के लिए उनके संचालन का जिम्मा निजी हाथों में सौंपकर थ्रीपी मॉडल के आधार पर करने की तैयारी में है। इस संबंध में कैबिनेट में भी प्रस्ताव भेजा जा चुका है। इसके बाद मथुरा,आगरा, मेरठ, कानपुर और वाराणसी का निजीकरण होगा। सात महानगरों में करीब 1100 बसों का संचालन हो रहा है। इनमें अधिकांश बसें पुरानी हो चुकी हैं।

बसों की उम्र हो चुकी है पूरी

- आलम यह है कि इन बसों में से 70 ऐसी बसें हैं, जो 5 लाख किमी की मियाद पूरी कर चुकी हैं। मानक के मुताबिक एक बस को 5 लाख किमी से अधिक होने पर सडक़ों पर नहीं उतारना है।

- वाराणसी शहर के अंदर परिवहन विभाग की ओर से सिर्फ 7 बसों का संचालन होता है। ये बसें कैंट से लंका मार्ग पर चलती हैं। हालांकि इन बसों का संचालन भी सही तरीके से नहीं हो पाता है।

हाल में हुए हादसे

- बर्लिंगटन चौराहे पर सिटी बस का ब्रेक फेल होने से हादसा,तीन मरे

- काकोरी में सिटी बस का स्टेयरिंग फेल

- कानपुर रोड पर बस का अगला पहिया निकलने से बचा

- मोहनलालगंज में दौड़ती बस का अगला टायर दबा

- इंदिरानगर के भूतनाथ के सामने सिटी बस का ब्रेक फेल

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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