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कागज में शौचालय, दावे बेमानी- पढ़िए पूरी रिपोर्ट
यूपी में 16 जिलों के 15,595 गांवों में से इस साल 30 अगस्त तक 1749 गांवों को खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया है। ये जिले हैं सिद्दार्थ
योगेश मिश्र / संजय तिवारी
लखनऊ: यूपी में 16 जिलों के 15,595 गांवों में से इस साल 30 अगस्त तक 1749 गांवों को खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया है। ये जिले हैं सिद्धार्थनगर, गोरखपुर, श्रावस्ती,वाराणसी,लखनऊ, रायबरेली, फर्रुखाबाद, औरैया, झांसी, हमीरपुर, जालौन, ललितपुर , गौतमबुद्ध नगर, गाज़ियाबाद , मेरठ और बागपत। इन जिलों को इस उपलब्धि के लिए राज्य सरकार ने बीते दिनों सम्मानित भी किया है।
एक राष्ट्रीय चैनल पर इस सम्मान समारोह को बड़े जोरदार तरीके से प्रचारित भी किया गया था। लेकिन इस अभियान और आंकड़ों का हकीकत से कोई लेना देना नहीं है। आंकड़ों और हकीकत में गज़ब की दूरी है। कही न तो इन गांवों की किसी दिनचर्या में बदलाव दिख रहा है और न ही ऐसा कुछ ख़ास दिख रहा है जिसे उपलब्धि माना जा सके। इन 16 में से किसी भी जिले में कभी कोई जाकर हकीकत देख सकता है।
वाराणसी
पीएम मोदी जब यहां से सांसद चुने गए तो उन्होंने भी काशी को स्वच्छ बनाने के लिए अभियान छेड़ा। अस्सी घाट पर फावड़ा चलाकर सफाई अभियान की मुहिम चलाई। लेकिन अफसोस कि,तीन साल गुजर जाने के बाद भी सफाई व्यवस्था में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिख रहा है। आइए अब आपको काशी की सफाई व्यवस्था से जुड़े कुछ आंकड़े दिखाते हैं।
काशी में प्रतिदिन तकरीबन साढ़े पांच सौ मिट्रिक टन कूड़ा निकलता है। यानि महीने के लगभग 17 हजार मिट्रिक टन कूड़ा-कचरा शहर के अलग-अलग स्थानों से निकलता है। सफाई व्यवस्था के लिए नगर निगम की ओर से सफाई कर्मचारियों के अलावा सफाई मित्रों की बहाली की गई है। यहां पर दो शिफ्ट में कूड़ा उठान का काम किया जाता है। सुबह और रात्रि पाली दोनों वक्त कूड़ा उठान होता है।
कचरे के निस्तारण के लिए करसड़ा में लगभग एक हजार मिट्रिक टन की क्षमता का एक प्रसंस्करण प्लांट लगाया गया है। इस प्लांट में कूड़े को रिसाइकिल कर खाद बनाने का काम होता है। इसकी वजह से बनारस के कई गांवों की हजारों महिलाओं को रोजगार भी मिला है। खाद के अलावा बिजली बनाने की भी कोशिश की जा रही है। माना जा रहा है कि करसड़ा प्लांट में पैदा होने वाली बिजली से लगभग 40 हजार घर रौशन होंगे।
सफाई व्यवस्था और नदी प्रदूषण के लिहाज से सीवर लाइन का प्रमुख स्थान है। लेकिन काशी में आज भी सीवर की पुरानी व्यवस्था कायम है। पूरे शहर में आज भी अंग्रेजों के जमाने की सीवर व्यवस्था है। पूरे शहर में लगभग 24 किमी की सीवर लाईन बिछाई गई है। इसे शाही नाला भी कहा जाता है। हालांकि कि जेएनयूआरएम के तहत शहर में नया सीवर सिस्टम बनाने का काम जारी है।
अगर सीवर ट्रीटमेंट की बात करें तो मौजूदा वक्त में शहर में तीन प्लांट चल रहे हैं। दीनापुर में 80 एमएलडी, भगवानपुर में 12 एमएलडी और डीरेका में 10 एमएलडी क्षमता का प्लांट लगा है। ये तीनों प्लांट तीन दशक से भी ज्यादे पुराने हैं। फिलहाल 2008 के बाद से चार और प्लांट बनाए जा रहे हैं। इसमें रमना में 50 एमएलडी, रामनगर में 50 एमएलडी, गोइठहां में 120 एमएलडी के अलावा मुगलसराय में 50 एमएलडी क्षमता है। वहीं दूसरी ओर दीनापुर प्लांट की क्षमता 140 एमएलडी करने की तैयारी है।
शहर के प्रमुख स्टेशन कैंट और रोडवेज पर सफाई की व्यवस्था कहीं से उच्च स्तर की नजर नहीं आती है। इन दोनों ही जगहों पर हर रोज लाखों लोग आते हैं लेकिन सफाई की व्यवस्था देख नाक, भौ सिकोड़ने लगते हैं। हालांकि मंडुवाडीह स्टेशन पर सफाई की व्यवस्था बेहतर है।
मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के नाते शौचालय व्यवस्था पर खास फोकस किया गया है। 2 अक्टूर तक चार ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले सभी गांवों को ओडीएफ घोषित करने की तैयारी है। इन गांवों में शौचालय बनाने का काम युद्ध स्तर से जारी है। अगर शहरी क्षेत्र की बात करें तो यहां पर कुल 90 की संख्या में सार्वजनिक और सामुदायिक शौचालय बनाए जाने हैं। अब तक लगभग 60 की संख्या में इनका निर्माण हो चुका है।
रायबरेली
पीएम नरेंद्र मोदी और प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ सड़क पर झाड़ू लगाकर जनता को स्वछ्ता के लिए प्रेरित करने की कोशिश कर रहे है जिसके चलते केंद्र और प्रदेश सरकार ने स्वछता को अपने अभियान में शामिल कर लिया है। लेकिन जिले में बैठे जिम्मेदार अधिकारी सररकार के महत्वपूर्ण मिशन में भ्रष्टाचार और घोटाला करने से बाज नहीं आ रहे है। सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में स्वछता अभियान डीपीआरओ की भ्रस्ट नीति के चलते भ्रस्टाचार की भेट चढ़ रहा है। जिले में स्वछता अभियान के तहत 278172 शौचालयों का निर्माण होना है जिसके लिए 50 फीसदी बजट सरकार द्वारा जिले को भेजा गया। स्वच्छता अभियान को अमली जामा पहनाने के लिए आउटसोर्सिंग के जरिये भारी भरकम स्टाफ की भर्ती की गयी। स्वछता अभियान के लिए रायबरेली के 18 ब्लाकों में 10000 मानदेय पर 23 खंड प्रेरक और उनके साथ 18 कम्प्यूटर ऑपरेटर नियुक्त किये गए हैं जिन पर 9000 रूपये खर्च किये जा रहें है । इसके आलावा जिले में 35000 रूपये पर 3 कंसल्टेंट रखे गए है जिसमे दो काम कर रहे है। इतना ही नहीं सरकार ने खंड प्रेरको को फील्ड में जाकर ग्रामीणों को शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित करने के लिए 25000 प्रतिमाह पर चार पहिया वाहन की व्यवस्था भी की गयी है साथ ही एक वाहन डीपीआरओ को भी उपलब्ध करवाया गया है।
यहां जब गावों की पड़ताल की गई तो सब अलग ही दिखा। विकास खंड अमावा के ग्राम पंचायत अमावा में सरकारी दावों के पोल खोलते हुए कई ग्रामीणों ने हकीकत बताई। गांव में 70 घर है जिनमें से केवल दर्जन भर परिवारों को ही शौचालय मिला है। ग्रामीणों का कहना है हम आज भी खुले में शौच के लिए जाते हैं। जब पूछा गया कि आपके ब्लाक से आपकी ग्राम पंचायत में स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत कोई टीम सर्वे करने व शौचालय के विषय में जानकारी देने कोई आया था तो ग्रामीणों ने बताया कि यहां पर कोई नहीं आया। ग्रामीणों से खुद का शौचालय बनाने के लिए कहा गया तब ग्रामीण समर बहादुर, राम बरन, व सुखी लाल ने बताया कि हम लोग झोपड़ी में रहकर किसी तरह जीवन यापन करते हैं हम लोगों को पास रहने को घर नहीं है शौचालय तो बहुत दूर की बात है ग्रामीणों ने बताया कि बरसात में गंदा पानी झोपड़ी में घुस जाता है। जब बछरावां ब्लाक के बिशुनपुर गांव पहुंचे तो वहां की हकीकत कागजों की हकीकत से दूर है।
इस गांव के रहने वाले राजाराम और सुखदीन से बात करने पर पता चला कि लोगों को रहने के लिए एक छत तक नहीं है शौचालय होना तो दूर की बात है। गांव में हकीकत कुछ और है और फाइलों में दिखाया कुछ और जाता है । इस बारे में जब डीपीआरओ चंद्र किशोर वर्मा से बात की गयी तो उन्होंने सारी जिम्मेदारी आउटसोर्सिंग कंपनी द्वारा नियुक्त कंसल्टेंट पर डाल दी और कहा की उनसे सारी जानकरी कर लीजिये।
गोरखपुर
सरकार ने गोरखपुर को दिसम्बर में ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) घोषित करने लक्ष्य निर्धारित किया है। अभी भी जिले के सभी गांवों को ओडीएफ करने के लिए साढ़े चार लाख शौचालयों की दरकार है। जिसके लिए करीब 550 करोड़ रुपये की जरूरत है। शासन स्तर से अभी तक सिर्फ 70 करोड़ ही जारी हुए हैं। चालू वित्त वर्ष में 26363 शौचालय बनाने को मंजूरी दे दी गई है। पिछले वर्ष पिपराइच का केवटलियां गांव जिले का सबसे पहला ओडीएफ गांव घोषित हुआ था। इस गांव की स्थिति भी खराब है। गांव की सिताली ने जैसे-तैसे टॉयलेट को बना दिया, अब उसे इस्तेमाल नहीं कर रही हैं।
टॉयलेट में अब भूसा रखा जा रहा है। वहीं सदर क्षेत्र के सेंदुली-बेंदुली गांव में दर्जन भर टॉयलेट बाढ़ में पूरी तरह बर्बाद हो गईं। गोरखपुर में जिले स्तर पर बच्चा सिंह को और नगर निगम ने गौतम गुप्ता को सलाहकार नियुक्त किया है। दोनों को गाडिय़ां नहीं मुहैया कराई गई हैं। गोरखपुर में अभी भी 281323 टॉयलेट का निर्माण बचे हुए 4 महीनों में किया जाना है। प्रशासनिक दावों पर ही यकीन करें तो वर्तमान में रोज 200 से 250 टॉयलेट का निर्माण हो रहा है। गोरखपुर नगर निगम क्षेत्र में 10942 आवास शौचालय विहीन चिन्हित हुए हैं। इनमें से सिर्फ 1200 का टॉयलेट ही निर्माण अभी तक हो सका है। जबकि 5500 से अधिक लोगों ने अभी तक शौचालय का निर्माण नहीं शुरू किया है।
मेरठ
मेरठ समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्वच्छ भारत मिशन के तहत प्रत्येक घर में शौचालय तो सरकारी मशीनरी नही बनवा पाई,लेकिन शौचालय की आड़ में भ्रष्टाचार की फसल खूब लहरा गई है। दरअसल,शौचालय के लिए पात्र बीपीएल परिवारों की संख्या में खेलकरके फर्जीवाड़ें को अंजाम दिया गया। सूत्रों के अनुसार मेरठ,बागपत,अलीगढ़,सहारनपुर समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 20 जिलों में प्रति शौचालय़ मिलने वाली 12 हजार की अनमुदान राशि को हड़पने के लिए यह खेल किया गया।
मेरठ में 5,881 बीपीएल परिवार ज्यादा दर्शाये गए। जबकि पड़ोस के बागपत में 14 हजार 778 बीपीएल परिवार बढ़ाकर दर्शाये गये। इसी तरह अन्य जिलों में भी बीपीएल परिवार बढाकर दर्शाये गये। मेरठ जनपद की बात करें तो वर्ष 2016-17 में जिला प्रशासन तीन हजार शौचालयों का निर्माण होना बता रहा है। लेकिन,जो सच्चाई छनकर सामंने आ रही है उसके अनुसार सब कागजों में है। असल में तो इनमें से आधे शौचालयों का भी निर्माण नही हो सका है। मसलन,शाहजहांपुर गांव की ही बात करें तो यहां 80 लाख के बजट में 667 शौचालयों का निर्माण होना अधिकारी बता रहे हैं। लेकिन इस गांव के जाकिर खान की मानें तो गांव में मात्र 276 शौचालयों का निर्माण हुआ है,जबकि बाकी का पैसा गायब कर दिया गया। ऐसा ही हाल कायस्थ बड्ढा का है यहां भी ग्रामीण 300 घरों में शौचालयों का निर्माण नही होने की शिकायत कर रहे हैं। जिले के रसबलपुर औरगांबाद में 10 लाख गबन का मामला,दौराला के लोइया गांव, जुर्रानपुर, नरहेड़ा, किनानगर समेत 30 गांवों में भ्रष्टाचार की शिकायतें जिला प्रशासन को मिली है। जिनकी जांच की जा रही है।
शौचालयों को लेकर जिला प्रशासन वास्तव में कितना गंभीर है इसका पता इसी बात से चलता कन्सलटेंट के नाम पर यहां पूरे जिले के 12 ब्लाकों के लिए मात्र चार लोग तैनात हैं। जिले की मुख्य विकास अधिकारी आर्यका अखौरी कहती है,इनमें तीन के पास वाहन है जबकि एक को अभी वाहन उपलब्ध नही कराया जा सका है। कन्सलटेंट को उपलब्ध कराए गए वाहनों पर महीने में कुल कितना खर्च आता है। इसका जवाब मुख्य विकास अधिकारी सरकारी कार्य में व्यस्त होने की बात कह कर टाल गईं।
जिला प्रशासन जिले के जुर्रानपुर, बलरामपुर, लडपुरा, नंगली अब्दुल्ला, इदरीशपुर, मिर्जापुर,मखदुमपुर, सिरजेपुर, मानपुरा, शेरपुर, दुर्वेशपुर समेत करीब 60 गांवों को खुले में शौच मुक्त बनाने का दावा कर रहा है। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उल्ट है। शेरपुर गांव की निवासी वीरमति देवी(50) कहती है,मेरे घर पर शौचालय नही है। मैने कई बार ग्राम प्रधान और सरकारी अफसरों से शौचालय निर्माण की फरियाद की लेकिन कोई नतीजा नही निकला। क्योंकि सबको सुविधा शुल्क जो चाहिये। अब भला हम जैसे गरीब लोगो की औकात सुविधा शुल्क देने की कहां है। बकौल वीरमति देवी,मजबूरन,पहले की तरह शौच के लिए जंगल की राह पकडऩी पड़ती है।
भाजपा के सांसद राजेन्द्र अग्रवाल द्वारा गोद लिये गये गांव भगवानपुर चटावन निवासी झुमरी(49) की भी कमोवेश यही शिकायत थी। इस गांव के लोंगो की शिकायत है कि गांव में करीब 190 शौचालय बने हैं। जिसके लिए शासन से 18 हजार प्रति शौचालय आया। लेकिन इन शौचालयों का निर्माण ग्रामीणों ने खुद कराया है। किसी को दो कट्टे सीमेंट और कुछ ईंटे दे दी गई तो किसी को 15 सौ से दो हजार रुपये दे दिए गए।
आयुक्त डॉ0प्रभात कुमार द्वारा गोद लिये गये शोल्दा गांव में तो हालात यह है कि यहां स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के अंतर्गत शौचालयों का निर्माण किया गया था। लेकिन लाभार्थियों ने इसे कमरे में तब्दील कर दिया। ग्राम पंचायत सचिव ने भी शौचालय बनने के बाद मॉनिटरिंग नही की।
मेरठ शहर में स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकार के लाखों रुपये और 14 वें वित्त आयोग,निगम फंड से करोड़ों रुपये सफाई पर खर्च हो रहे हैं। लेकिन शहर का नाम गंदे शहरों में ही शुमार है। हालत यह है कि शहर में करीब 30 हजार मकान ऐसे हैं जिनमें शौचालय नही है। जबकि यहां हर साल करीब सात हजार शौचालय निर्माण का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन,अभी तक भी नगर निगम के पास शौचालय निर्माम की उपलब्धि के नाम पर बताने को कुछ नही है। यही नही कूड़ा निस्तारण प्लांट,डोर टू डोर कूड़ा उठाने की योजनाएं तक अभी तक अधर में लटकी हैं।
जाहिर है कि जब मेरठ आयुक्त और सांसद द्वारा गोद लिये गये गांवों की यह तस्वीर है तो बाकी गांवों की बेहतरी की बात सोचना भी बेमानी है।
आजमगढ़
आजमगढ़ के गांवों में खुले में शौच की परम्परा आज भी कायम है। हालात यह कि इस जिले के 80 फीसदी घरों में अभी भी शौचालय नहीं है। हर घर में शौचालय बन पाना फिलहाल यहां के लोगों को सपने जैसा ही प्रतीत होता है।
55 लाख की आबादी वाले आजमगढ़ जिले में शौचालय की स्थिति काफी बदहाल है। करीब 80 फीसदी घर शौचालय विहीन हैं और वह लोग खुले में शौच के लिए मजबूर होते हैं। इस जिले की भारी भरकम आबादी को देखते हुए चालू वित्तीय वर्ष में यहां पर 90362 शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया है। फिलहाल दावे के साथ यह कहा जा सकता है कि यह सरकारी लक्ष्य पूरा हो पाना संभव ही नहीं है। वजह यह कि करीब वित्तीय वर्ष का आधा समय पूरा हो गया है और लक्ष्य के अनुरूप अभी तक पांच फीसदी शौचालय भी नहीं बन पाये हैं। सरकारी आंकड़े खुद इस सच को स्वीकार करते हैं कि शौचालय के लिए जिले को 4.50 करोड़ रूपये मिले थे। इन रूपयों को 165 गांवों के 3800 लाभार्थियों को प्रति शौचालय 1200 रूपये की दर से भेज दिया गया है। ऐसे में हर घर को शौचालय से आच्छादित करने की बात सोचना भी पूरी तरह से बेमानी साबित होगी।
रानी की सराय विकास खण्ड के सेठवल निवासी बब्लू ठठेर के घर में शौचालय नहीं है। उसका कहना है कि गरीबी के कारण शौचालय बनवा नहीं सकता। शौचालय न होने के कारण काफी जलालत झेलनी पड़ती है। महिलाओं व वृद्धों का तो काफी बुरा हाल होता है। इसके साथ ही बरसात के दिनों में व रात के समय में परिवार के सभी सदस्यों को काफी दिक्कत होती है। प्रधान व सेक्रटरी से कई बार मिला मगर कुछ नहीं हुआ। सभी जानते हैं कि वह गरीब है और उसके घर में शौचालय नहीं है, बावजूद इसके उसे शौचालय नहीं मिला। इसके विपरीत ऐसे लोगों को अनुदान वाला शौचालय दिया गया है जिनके घर में पहले से शौचालय मौजूद है। जिले में स्वच्छ भारत मिशन के तहत जनपद स्तर पर 2 वाहन व ब्लाक स्तर पर 22 वाहन उपलब्ध कराये गये हैं। इसके साथ ही जिला स्तर पर दो कन्सलटेंट व ब्लाक स्तर पर 16 कन्सलटेंट हैं। प्रति वाहन अधिकतम 25 हजार रूपये निर्धारित किया गया है, जिसमें चालक का पेमेन्ट, तेल सहित सारा खर्चा जुड़ा रहता है। प्रतिमाह सभी को खर्चों की बिल देने होते है। किसी ने कभी 24 हजार से कम की बिल नहीं दिया है।
झांसी
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बसा झाँसी शहर 1857 के संग्राम में यहां की रानी लक्ष्मी बाई को योगदान के लिए जाना जाता है। भारत के मध्य क्षेत्र में आने वाले इस शहर की आबादी लगभग 6 लाख है। यद्यपि झांसी को भारत सरकार ने 2014 में अपने स्मार्ट सीटी मिशन में शामिल किया था, वर्तमान में यह आज भी स्वछता की दृष्टिकोण से काफी पीछे है। ज्ञात हो की भारत सरकार द्वारा इस वर्ष यानि 2017 के मई माह में जारी किए गए एक स्वछता सर्वेक्षण के अनुसार, झाँसी पूरे देश में 166वें स्थान पर रहा। यह दर्शाता है की इस शहर में सफाई के मोर्चे पर काफी ध्यान देने की ज़रूरत है। अगर झांसी में सफाई की मौजूदा हालात पे गौर किया जाए तो आप पाएंगे की अभी भी कचरा निस्तारण, सीवरेज, सार्वजनिक शौचालयों के साथ-साथ सामान्य साफ-सफाई की स्थिति काफी हद तक निराशाजनक है। सरकार और प्रशासन के तमाम दावों के बावजूद झांसी के झुग्गी बस्तियों की हालत बेहद खस्ता है। शहरी विकास मंत्रालय - भारत सरकार, झांसी नगर निगम तथा एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कॉलेज ऑफ इंडिया, हैदराबाद द्वारा 2014 में संयुक्त रूप से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक शहर के झुग्गी बस्तियों के रहवासियो के लिए पक्के घर बनाए जाने थे और साथ-साथ उन्हें मूलभूत व्यवस्थाएं मुहैया कराई जानी थी। लेकिन अभी तक इन झुग्गी बस्तियों की हालत जस की तस बनी हुई है।
शहर के विभिन्न इलाकों में बसे झुग्गिया बस्तियां जैसे – तालपुरा, सखीपुरा, इन्दिरा नगर, गोविंद चौराहा, डडियापूरा, डेलि गाँव, मुकरियाना, पाहुज एवं गोरामछिया में रहने वाले गरीब लोगों की हालत बेहद खराब है। इन इलाकों के ज़्यादातर झुग्गीवासियों के लिए शौचालय, सीवरेज, नाले, साफ-सफाई, कचरा निस्तारण की कोई व्यवस्था न होने के कारण वे भरी गंदगी के बीच जीवन जीने को मजबूर हैं। खुले में शौच व गंदगी से पैदा होने वाले दुर्गंध के कारण इन इलाकों से गुजरने वाले लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। गंदगी के कारण इन इलाके में रहने वाले लोगों को कई बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है। इन सबका असर महिलाएं एवं बच्चों के सेहत को भी बुरी तरह प्रभावित करता है।
अगर शहर में सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति पे नज़र डालें तो जहां एक ओर इनकी संख्या काफी कम हैं वहीं दूसरी ओर साफ सफाई के अभाव में इनकी हालत बेहद दयनीय है। रखरखाव की कमी के कारण बस स्टैंड, सिपरी बाज़ार, सदर, आदि जगहों पर निर्मित सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति ऐसी है की लोगों के लिए इनका इस्तेमाल करना काफी मुश्किल होता है और वे प्रायः इनके इस्तेमाल से परहेज करने की चेष्टा करते हैं।
इसी प्रकार अगर हम शहर में कचरा निस्तारण एवं स्वछता की बात करें तो शहर के ज़्यादातर इलाकों में में इनकी काफी निराशाजनक तस्वीर देखने को मिलती है। बस स्टैंड के आसपास, बड़ा गांव, बड़ा बाज़ार सब्जी मंडी, तालपुरा सब्जी मंडी, सिपरी बाज़ार जैसे प्रमुख जगहों पर कचड़ों का ढेर हर रोज़ देखा जा सकता है। झांसी नगर निगम द्वारा इन बाज़ारों एवं इलाकों को स्वछ रखने की ओर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा। इन सबके के कारण जानवरों इन स्थानों पर जानवरों की मौजूदगी भी हर रोज़ देखी जा सकती है जिसके कारण गंदगी में और इजाफा होता है।
इसके अलावा शहर के विभिन्न कॉलोनियों में खुले नाले, खुले में कचरों का ढेर, खुले सिवेरेज आदि जैसी समस्याएं आम बात है। कई इलाकों के आसपास सार्वजनिक शौचालयों के न होने के कारण लोग सड़कों के किनारे खुले में शौच करते देखे जा सकते हैं। पाहुज नदी पर बसा उत्तर प्रदेश की यह ऐतिहासिक नागरी स्वच्छता के प्रति अपने उदासीन रवैये के कारण, बुंदेलखंड की इस प्रमुख नदी को भी प्रदूषित कर रहा है।
झांसी का ऐतिहासिक रानी लक्ष्मी तालाब जो की एक समय इस शहर का शान हुआ करता था, आज इसमे पूरे शहर का गंदा पानी इकट्ठा हो रहा है। हालांकि की इसके इसकी साफ-सफाई और मरम्मत के लिए भारत सरकार ने 40 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत की है लेकिन बावजूद इसके इस तालाब के जीर्णोद्धार के लिए शासन एवं प्रसाशन द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया। इस उदासीनता के कारण आज यह तालाब अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।
इसी प्रकार झांसी से लगभग १०० किलोमीटर दूरी पर स्थित जालौन ज़िले के उरई शहर की हालत भी स्वछता की दृष्टिकोण से काफी खराब है। लगभग सवा दो लाख जनसंख्या वाले इस शहर में जहां एक ओर ठोस कचरा प्रबंधन प्रणाली के अभाव में यहां के रहवासी यहां-वहां फैले कचरे से परेशान हैं वही दूसरी ओर ड्रैनेज सिस्टम के अभाव में लोगों का जीवन दूभर है। इसके साथ-साथ अस्पतालों एवं नर्सिंग होम्स से निकालने वाले हानिकारक अपशिष्टों के निस्तारण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा जिसके कारण लोगों के स्वास्थ पर इसका बुरा असर पर रहा है। उरई के मलिन बस्तियों की हालत भी इनती खस्ता है की यहां रहने वाले लोगों को साफ पानी, शौचलाए, साफ-सफाई जैसी बुनियादी समस्याओं से हर रोज़ दो-चार होना पड़ता है।