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हकीकत: खर्च हो गए करोड़ों, सफाई बन गई सपना
नीलमणि लाल
लखनऊ: मोदी सरकार आने के बाद देश में सफाई पर बड़ा जोर है। सरकारों ने इसके लिए पूरी ताकत लगा रखी है और खूब पैसा खर्च किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में सफाई को लेकर बातें तो लंबी-चौड़ी की जा रही हैं मगर प्रदेश के शहर देश के साफ शहरों की सूची में अपना नाम नहीं दर्ज करा पा रहे हैं। जबकि इंदौर और अन्य शहर सफाई में नए रिकार्ड बनाते जा रहे हैं। लखनऊ हो या वाराणसी सभी जगह नगर निकायों में सफाई कर्मियों की फौज है, ढेरों मशीनें हैं, लंबा-चौड़ा बजट है, लेकिन प्रदेश का कोई भी शहर ऐसा नहीं है जहां लोगों को गंदगी से मुक्ति मिल सकी हो। गाजियाबाद भले ही साफ होते शहरों की सूची में आगे है, लेकिन सूबे का कोई शहर इंदौर के आसपास भी नहीं फटक पा रहा है।
लखनऊ की बात करें तो यहां तमाम सरकारी महकमे और नगर निगम मिलकर सफाई के नाम पर हर साल ४ हजार करोड़ रुपए खर्च कर देते हैं। इलाहाबाद में इस साल सफाई के लिए नगर निगम ने डेढ़ अरब रुपए के बजट का प्रस्ताव किया है। रायबरेली जैसी जगह में हर साल सफाई पर दस करोड़ से ज्यादा और गोरखपुर में २७ करोड़ रुपए खर्च कर दिए जाते हैं। इन शहरों के बाशिंदे अपने यहां की सफाई से कतई संतुष्टï नहीं हैं और जहां तक अधिकारियों की बात है तो हमेशा की तरह रटीरटाई बात करते हैं कि स्थितियों में जल्द ही सुधार होगा। इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण बात यह निकलकर आती है कि जब तक लोग खुद साफ-सफाई के प्रति अपना दायित्व नहीं समझेंगे तब तक कुछ नहीं होने वाला।
49 पायदान नीचे फिसला लखनऊ
इस साल मई में आए स्वच्छता सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि ऑल इंडिया रैंकिंग में 2015 में लखनऊ जहां 220वें स्थान पर था वहीं 2018 में यह फिसलकर 269वें स्थान पर पहुंच गया। यह तब हुआ जब अकेले स्वच्छ भारत मिशन का बजट 2000 करोड़ का है। इस योजना के तहत नए निर्माण जैसे शौचालय, कूड़ाघर, टॉयलेट बनाने, पुनर्निर्माण करने में पैसा खर्च किया गया। आरोप हैं कि इन सब कामों में कमीशनखोरी हावी है जिस कारण बीते एक साल में नए शौचालयों का निर्माण बहुत कम और धीमा रहा है।
सफाईकर्मियों की फौज, शहर गंदा
लखनऊ में कुल 110 वार्डों में 3000 हजार से ज्यादा सफाईकर्मी हैं। निगम के स्वास्थ्य अधिकारी अरविंद राव का कहना है कि हर वार्ड में औसतन 30 सफाईकर्मियों की ड्यूटी लगती है। इनके वेतन, नयी मशीनों की खरीद व सफाई के अन्य कामों में नगर निगम प्रतिवर्ष 1000 करोड़ खर्च करता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि सफाई के काम में आधे कर्मचारी बिना काम किए कागज पर दस्तखत करके पैसा लेते हैं। कोई मॉनिटरिंग न होने से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।
उप नगर आयुक्त मनोज कुमार के अनुसार नगर निगम की टीम ने इंदौर सहित दो और शहरों का दौर करके वहां की सफाई व्यवस्था का गहन अध्ययन किया है। इंदौर की तर्ज पर यहां भी सफाईकर्मियों के लिए नियमित प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जाएंगे। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के सीईओ पीके श्रीवास्तव का दावा है कि समस्यायों का समाधान किया जा रहा है।