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असहायों-विक्षिप्तों की सफाई की अनोखी मुहिम
गौरव त्रिपाठी
गोरखपुर: प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान से जुडऩे के लिए लोगों ने तमाम तरीके से अपनी-अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। नेता से लेकर अभिनेता तक हाथ झाड़ू थामे फोटो खिंचवाने में सबसे आगे दिखे, लेकिन सीएम सिटी के कुछ युवा ऐसे है जो हाथो में झाड़ू नहीं उस्तरा, ब्लेड, पुराने कपडे और खाने-पीने की चीजों के साथ समाज की मुख्य धारा से अलग हो चुके असहाय, गरीब, मानसिक रूप से विक्षिप्त व बीमार लोगों की सेवा में जुटे हुए है।
कुछ ऐसा ही नजारा शहर के सबसे व्यस्ततम इलाके इंदिरा बाल बिहार पर देखने को मिला। एक दर्जन युवा आधा दर्जन से अधिक बीमार, गरीब, विक्षिप्त व असहाय लोगों की साफ सफाई और जरुरतों को पूरा करने में जुटे दिखे। आने-जाने वाले राहगीर भी रुक-रुक कर इन युवाओं का काम देख रहे थे। अपनों से दूर, महीनों से बिना नहाए, बिना कपड़ा बदले, चहरे पर लम्बी लम्बी दाढ़ीं-मूंछे, लम्बे बाल और शरीर से आती बदबू। जिसे कोई भी देखकर नजरअंदाज करते और बचते हुए निकल जाता है मगर इन युवाओं को इनकी सेवा करने से परहेज नहीं।
स्वच्छता अभियान को एक नई दिशा देते हुए गोरखपुर में इन युवाओं ने एक अनोखा सफाई अभियान छेड़ा है जिसमें न तो हाथों में झाड़ू था और न कूड़ा। इसमें स्वच्छता के हथियार के रूप में छुरा, कंघी, कैंची, साबुन थे। पूरे शहर के मानसिक विक्षिप्तों को संस्था की वैन से इक्क_ा करके इंदिरा बाल बिहार पर लाया गया। ये लोग महीनों से नहाए नहीं थे, उनके बालों में कीड़े पड़ गए थे, उनके बाल गंदगी से जकड़ गए थे और जो दस फुट की दूरी से ही भयंकर बदबू आ रही थी। इन सभी मनोरोगियों को एक जगह बैठाकर आजाद पाण्डेय ने बारी-बारी से खुद बाल और दाढ़ी बनाई। फिर सभी को संस्था के सदस्यों ने स्नान कराया और नए कपड़े पहनाए। महीनों से धूल से जकड़े चेहरे चमकते हुए नजर आए।
समाज की मुख्यधारा में लाने की कोशिश
राहगीरों और व्यापारियों ने इस अभियान की बहुत प्रशंसा की और आगे मदद के लिए सम्पर्क भी किया। इस बाबत आजाद पाण्डेय ने कहा कि स्वच्छता अभियान तभी सार्थक होगा जब इंसानों के बीच रहने वाले इन मनोरोगियों को भी गंदगी से निजात मिले। इसलिए हमारी टीम ने इंसानों को पशुवत जिंदगी से निकालकर समाज की मुख्यधारा में लाने की कोशिश कर रही है और यही असली स्वच्छता अभियान है।
इस बाबत डीडीयू के छात्र-छात्राओं का कहना है कि फोटो खिंचवाने के लिए कोई भी हाथों में झाड़ू लेकर खड़ा हो सकता है, लेकिन ये युवा उस सफाई अभियान से जुड़े हैं जिन्हें उनके ही परिजनों ने अपनों से दूर कर दिया है। असली सफाई तभी होगी जब इंसान का तन और मन साफ हो। इसलिए हमारी समझ से असली सफाई अभियान यही है।
सप्ताह में दो दिन करते हैं असहायों की सेवा
वही इस अभियान के सदस्य प्रियेश मालवीय ने बताया कि बेसहारा और मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है। सरकार द्वारा इनकी देखरेख और इनके पुनर्वास के लिए कुछ भी नहीं किया जाता है। ऐसे लोग रेलवे स्टेशन और शहर के हर चौराहों पर पड़े रहते हैं। हम लोगों से जो बन पड़ता है हम करते हैं। अभियान के सदस्य प्रणव द्विवेदी का कहना है कि पीएम मोदी का सपना पूरा करने के लिए हम लोग भी यह मुहिम चला रहे हैं। हम ऐसे लोगों की मदद करने की कोशिश करते हैं जिन पर किसी की नजर नहीं पड़ती और जो एकदम बेसहारा हैं। हम लोग दो साल से इस अभियान में जुट हुए हैं। टीम में करीब 12 लोग हैं जो हर हफ्ते दो दिन विभिन्न इलाकों में जाकर बेसहारा और लाचार लोगों की सेवा करते हैं।