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शहरों की स्थिति की पड़ताल: सपना ही रह जाएगा सफाई में टॉप करना

raghvendra
Published on: 2 Jun 2018 1:59 PM IST
शहरों की स्थिति की पड़ताल: सपना ही रह जाएगा सफाई में टॉप करना
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लखनऊ: देश के सबसे स्वच्छ शहरों में उत्तर प्रदेश सिरे से नदारद रह रहा है। हां, गंदे शहरों, गंदे रेलवे स्टेशनों की सूची में यूपी जरूर टॉप स्थान बरकरार रखे हुए है। ‘अपना भारत’ ने प्रदेश के चुनिंदा शहरों की स्थिति की पड़ताल की। किसी शहर का नगर निगम सफाई के नाम पर कितना खर्च कर रहा है, कितने लोग सफाई के काम में लगे हुए हैं, जिम्मेदार अधिकारी सफाई के बारे में क्या तर्क देते हैं और आम जनता की क्या राय है, हमने इन सभी बिंदुओं की पड़ताल की। नतीजे वही आए जिनकी अपेक्षा थी। सफाई के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं। नगर निगम में कर्मचारियों की फौज है। कागजों में सब चकाचक है, लेकिन जनता का यही कहना है कि हमारे शहर का इंदौर बन पाना तो सपना ही है और इन हालातों में सपना ही रह जाएगा।

रायबरेली : सफाई के हवा-हवाई दावे, हर तरफ नजर आ रहा कूड़ा

नरेन्द्र सिंह

केंद्र और प्रदेश सरकार भले ही स्वच्छता के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए प्रत्यनशील हों, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों पर सरकार के आदेश और नसीहतों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा और प्रदेश के जिले गंदगी के मामले में नए कीर्तिमान बना रहे हैं। ऐसे ही हालत रायबरेली के भी हैं जहां की नगर पालिका में कर्मचारियों की फौज के बाद भी सभी वार्डों में गंदगी पसरी पड़ी है। स्वच्छता मिशन की निगरानी के लिए यहां दो अधिकारी तैनात हैं जिसमें अपर्णा बाजपेई और डीपीएम आरिफ शामिल हैं।

हाल-ए-नगर पालिका

  • रायबरेली नगर पालिका में 586 कर्मचारी हैं जिसमें संविदा के कर्मचारी 203, आउटसोर्सिंग के 165 और नियमित 218 हैं।
  • नगर की सफाई व्यवस्था के लिए 26 गाडिय़ों-मशीनों से काम लिया जा रहा है। सफाई के लिए तीन जेसीबी, दो डम्पर, एक रिफ्यूज कंपैक्टर, १३ ट्रक, चार ट्रैक्टर, और दो सीवर सेक्शन मशीनों से काम लिया जाता है।
  • नगर पालिका का सालाना बजट 30 करोड़ का है जिसमें सफाई पर 10 करोड़ 20 लाख रुपए खर्च किया जाता है।

दो साल में वसूला दो हजार जुर्माना

गंदगी फैलाने और कूड़ा इधर-उधर फेंकने के खिलाफ बने नियम कानूनों का पालन किस तरह हो रहा है वह इससे पता चलता है कि नगर पालिका ने 2 साल में 135 लोगों पर कार्रवाई की है और कुल 2000 रुपया जुर्माने के रूप में वसूला है। नगर पालिका का कहना है कि लोगों को कई बार चेतावनी दी जाती है और समय-समय पर जनता को बैनर होर्डिंग लगाकर जागरूक किया जाता है।

दावा नगर पालिका का

सफाई दो शिफ्टों में कराई जाती है-सुबह 6 से 10 बजे और दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक। इस दौरान 15 वार्डों में डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन किया जाता है और दोनों पालियों में झाड़ू से व नालियों की सफाई की जाती है। कूड़ा ले जा कर जैतूपुर स्थित कूड़ा निस्तारण प्लांट में डाला जाता है और उससे कंपोस्ट खाद बनायी जाती है।

क्या कहते हैं जिम्मेदार

नगर पालिका के कार्यकारी अधिकारी मुशीर अहमद का कहना है पब्लिक सडक़ पर कूड़ा न फेंके तो सडक़ें साफ रहें। बिना जनता के सहयोग से सफाई कार्य संभव नहीं है। जिस तरह घर में कूड़ा नहीं फैलाया जाता है उसी तरह सडक़ पर कूड़ा न फैलाएं तो हमारा शहर इंदौर जैसा साफ नजर आएगा ।

जनता की आवाज

सफाई व्यवस्था कुछ लोगों के यहां और कुछ वार्डों तक ही सीमित रहती है। बाकी के वार्डों में गंदगी का अंबार लगा रहता है। इसके लिये नगर पालिका अध्यक्ष और प्रदेश सरकार जिम्मेदार है।

सुरेश पटेल (वार्ड १)

मोहद्दीपुर में सफाई व्यवस्था बहुत ही खराब है। जगह-जगह पानी भरा रहता है। कोई सफाई कर्मी यहां पर दिखाई नहीं देता है। नारकीय स्थिति के लिये सबसे ज्यादा अधिकारी ही जिम्मेदार हैं।

रवि सिंह चौधरी

सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी खुद हम लोगों की है कि सही तरीके से कूड़े को कूड़ेदान में ही डालें व गंदगी न फैलाएं। जब हम कूड़ा बाहर नहीं फेंकेंगे व उसे कूड़ेदान में डालेंगे तब हमारा शहर इंदौर जैसा ही दिखेगा।

तलत महमूद (स्वराज नगर)

शहर में साफ सफाई की व्यवस्था अच्छी है। तरह-तरह की सफाई मशीनों और मजदूरों द्वारा समय-समय पर होती रहती है।

विनय साहू (रतापुर)

रायबरेली में नगर पालिका की ओर से सफाई व्यवस्था अच्छी है और सरकार इस पर ध्यान भी देती है। हमारा शहर स्वच्छता मिशन की ओर बढ़ता जा रहा है।

कांति साहू

नालियों में गन्दा पानी भरा रहता है और सफाई व्यवस्था राम भरोसे है। सडक़ें टूटी हैं और अधिकारी जान के भी अनजान बने हैं। करोड़ों का सरकारी बजट बंदरबांट में खत्म हो जाता है ।

नरेंद्र चौधरी (धमशी राय पुरवा)

साफ सफाई ठीक तरीके से हो रही है और सरकार इस पर ध्यान भी दे रही है। जल्द ही रायबरेली को जलभराव से मुक्ति मिल जाएगी।

राम तीरथ (रायपुर)

सफाई व्यवस्था अच्छी है। सफाई कर्मचारियों द्वारा डोर टू डोर कूड़ा उठाना और झाड़ू लगना यह सब कार्य जारी रहता है। रायबरेली में नगर पालिका बेहतर कार्य कर रही है।

अरुण कुमार द्विवेदी

हमारे मोहल्ले में कभी भी साफ सफाई नहीं होती है। इसकी शिकायत हमने नगर पालिका अध्यक्ष से भी की मगर कोई ध्यान नहीं दिया गया। साफ सफाई की खराब हालत के लिए नगर पालिका अध्यक्ष दोषी हैं।

विवेक श्रीवास्तव (आचार्य द्विवेदी नगर, वार्ड नंबर 14)

सरकार तरह-तरह की योजना चला रही है। फिर भी सफाई के नाम पर कुछ दिख नहीं रहा है। इस मामले में सबसे ज्यादा जिला प्रशासन जिम्मेदार है।

संदीप कुमार

गोंडा : धुलने लगा सबसे गंदे शहर का ठप्पा

तेज प्रताप सिंह

गोंडा को स्वच्छता सर्वेक्षण में देश का सबसे गंदा शहर करार दिया गया था, लेकिन अब ये दाग धुलने लगा है। गत वर्ष केन्द्र सरकार द्वारा 434 शहरों व नगरों में कराए गए स्वच्छता सर्वेक्षण में गोंडा सबसे आखिरी पायदान पर रहा है। इस साल मुख्यालय की नगर पालिका परिषद को शहरी क्षेत्र में शौचालय निर्माण में प्रदेश में दूसरा स्थान मिला है। शहर में सफाई की सुधरी व्यवस्था की बदौलत अब गली कूचे भी साफ सुथरे दिख रहे हैं।

हाल-ए-नगर पालिका

  • सफाई के काम में यहां 198 नियमित व 198 ठेके के कर्मचारी तैनात हैं। इनके वेतन पर हर महीने तकरीबन 66 लाख रुपए खर्च होते हैं। सफाई के काम में लगे कर्मचारियों के वेतन आदि को मिलाकर कुल प्रतिमाह बजट एक करोड़ 44 लाख है।
  • सफाई के काम में दो लोडर, दो डम्पर, एक जेसीबी, आठ ट्रैक्टर ट्राली, चार छोटा हाथी, दो टाटा-407 और तीन छोटे टेम्पो लगे हैं। इन पर 63 लाख 80 हजार सालाना खर्च आता है। जबकि इन वाहनों की मरम्मत आदि पर सालाना करीब 18 लाख खर्च होता है।
  • स्वच्छता मिशन की निगरानी के लिए अलग से कोई अधिकारी तैनात नहीं है। निगरानी के लिए पालिका के अधिशासी अधिकारी और सफाई नायकों को जिम्मा सौंपा गया है। नगर के सभी 27 वार्डों में झाड़ू लगाने के लिए सफाई नायकों की निगरानी में सफाई कर्मियों को तैनात किया गया है।
  • नियमों का उल्लंघन कर गदगी फैलाने वालों को जुर्माने से दंडित किया जाता है। विगत दो वर्षों में दो दर्जन लोगों का चालान कर जुर्माना वसूला गया है।
  • गोंडा के आधा दर्जन वार्डों में डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन की व्यवस्था लागू है। नालों की सफाई के लिए विोष अभियान चलाया जा रहा है। शहर से हटकर रगडग़ंज रोड के बाइपास पर कूड़ा अड्डे में नगर का कूड़ा निस्तारण किया जाता है।

बोले जिम्मेदार

नगर पालिका अध्यक्ष उज्मा राशिद के प्रतिनिधि कमरुद्दीन और अधिशासी अधिकारी बलबीर सिंह यादव कहते हैं कि गत वर्ष की खराब रैकिंग से गोंडा देश भर में बदनाम हुआ। लेकिन इसे हमने चुनौती के रूप में लिया और अल्प संसाधन में सफाई का बेहतर इंतजाम किया गया। इसका परिणाम रहा कि इस साल रैकिंग में सुधार हुआ है। सफाई के मामले में भी गोंडा अब किसी से पीछे नहीं है और इसी प्रकार पालिका के सभासदों, कर्मचारियों और जन प्रतिनिधियों तथा नागरिकों का सहयोग मिलता रहा तो हमारा गोंडा एक दिन इंदौर जैसा देश का सबसे स्वच्छ शहर होगा।

क्या कहती है जनता

गत वर्ष की खराब रैकिंग के बाद अधिकारियों ने इसे चैलेंज के रूप में लिया है। इसके बाद अधिकारियों ने सफाई व्यवस्था में आशातीत सुधार किया है।

एसपी मिश्र (वरिष्ठ साहित्यकार)

पालिका अध्यक्ष और अधिकारियों के परिश्रम का ही नतीजा है कि नगर में घरेलू शौचालयों के निर्माण में पालिका को प्रदेश में दूसरा स्थान हासिल हुआ है।

डा. श्याम बहादुर सिंह (एसोसिएट प्रोफेसर, एलबीएस कालेज)

पालिका के अधिकारी कर्मचारी ऐसे ही मेहनत और लगन से कार्य करेंगे तो जल्द ही यह शहर ‘सबसे गंदे शहर’ के दाग से मुक्त हो जाएगा।

शाहनवाज वारसी, सपा जिला उपाध्यक्ष

सफाई में काफी सुधार हुआ है किन्तु अभी भी बहुत कुछ करने की आवयकता है।

यशोदा नंदन त्रिपाठी

योगी आदित्यनाथ सरकार शहरों में अवस्थापना सुविधाएं और साफ सफाई के लिए कृत संकल्पित है। इसी का परिणाम है कि एक वर्ष में ही चौंकाने वाले परिणाम आए हैं।

महेन्द्र सिंह, भाजपा नेता

मैं शहर की साफ सफाई से संतुष्ट हूं। एक साल की मेहनत ने हमें आगे चलने का रास्ता दे दिया है और अब हमें शर्मिन्दा नहीं होना पड़ेगा।

के.के.श्रीवास्तव, वरिष्ठ अधिवक्ता

मेरठ : कूड़े के ढेर पर बैठा शहर

सुशील कुमार

मेरठ नगर निगम को बने हुए 25 साल हो गए हैं लेकिन नगर निगम ने शहर से निकलने वाले कूड़ा निस्तारण के लिए अभी तक कोई भी इंतजाम नहीं किया है। आलम ये है कि शहर से निकलने वाला हजारों टन कूड़ा नगर निगम खुले स्थानों पर डाल रहा है। इससे आसपास का वातावरण दूषित हो रहा है साथ ही पर्यावरण पर भी इसका काफी बुरा असर पड़ रहा है। शहर में सफाई संबंधी कोई भी नियम लागू हैं भी या नहीं इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं है। यही वजह है कि पिछले दो सालों में इस मामले में किसी को कोई सजा नहीं हुई है।

जेएनएनयूआरएम के तहत मेरठ में कूड़ा निस्तारण योजना लागू की गयी थी। पहले महानगर में कूड़ा 910 मीट्रिक प्रतिदिन निकलता था पर अब यह 930 मीट्रिक टन हो गया है। नालों की सफाई के दौरान लगातार कूड़े की मात्रा बढ़ रही है। कूड़े की बढ़ती मात्रा को देखते हुए नगर निगम ने कूड़े के ट्रकों की संख्या 100 से बढ़ा कर 135 कर दिया है। इनमें 90 छोटे तथा 45 बड़े ट्रक होंगे। इसके अलावा नगर निगम प्रशासन ने 400 अतिरिक्त कर्मचारियों की नियुक्ति भी करने जा रहा है।

कूड़ा निस्तारण प्लांट नहीं

बहरहाल, 3100 कर्मचारियों की फौज के बावजूद शहर गंदगी के ढेर में तब्दील है। नगर निगम सदन में तो कई बार विपक्षी पार्षद बदहाल सफाई व्यवस्था पर तीखी नाराजगी जता चुके हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तक इस मामले में अपनी नाराजगी जता चुका है। पिछले दिनों बोर्ड की दो सदस्यीय टीम ने मंगतपुरम का दौरा किया तो उसे वहंा कूड़े की पहाडि़य़ां मिलीं। टीम ने अपनी रिपोर्ट में कूड़े से पर्यावरण और जनता को होने वाले नुकसान का जिक्र अपनी रिपोर्ट में लिखा है। रिपोर्ट के अनुसार मंगतपुरम में जल रहे कूड़े से निकलने वाले रासयनिक तत्वों से आसपास की कालोनियों में रहने वाले करीब पांच लाख लोग परेशान हैं।

बदबू के कारण सांस लेने भी परेशानी होती है। गौरतलब है कि महानगर में आबादी के बीच में मंगतपुरम में 100 लाख मीट्रिक टन कूड़ा जमा है जो पहाड़ी में तब्दील हो गया है। इस मामले में एनजीटी के अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट भी कई बार नगर निगम को फटकार लगा चुका है। मेरठ विकास प्राधिकरण ने भी एनजीटी को भेजी रिपोर्ट में कहा है कि विभाग ने मास्टर प्लान में शहर के पांच स्थानों पर कूड़ा निस्तारण प्लांट के लिए भूमि चिन्हित की थी। जिसमें घोसीपुर, काजीपुर, इटायरा, किला रोड और गढ़ रोड शामिल है। लेकिन नगर निगम ने अभी तक एक भी स्थान पर कूड़ा निस्तारण प्लांट नहीं लगाया है।

बोले जिम्मेदार

नगर आयुक्त मनोज कुमार चौहान कहते हैं कि शहर के लोगों को गंदगी से मुक्ति दिलाने के प्रयास किये जा रहे हैं। इसके लिए ही बहुत जल्द गांवड़ी के कूड़ा निस्तारण प्लांट लगवाने जा रही है। इसके अलावा कर्मचारियों की कमी को पूरा करने के लिए संविदा पर सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति की जा रही है। हम इंदौर से भी अधिक शहर की सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करके रहेंगे। लेकिन इसके लिये शहर की जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।

हाल-ए-नगर निगम

  • मेरठ नगर निगम में कुल ३१०० सफाई कर्मचारी हैं जिनमें २२९५ आउटसोर्सिंग और ९०० स्थायी कर्मी हैं।

    सफाई कर्मचारियों के वेतन पर हर महीने 6 करोड़ खर्च किये जाते हैं। अभी ४०० आउटसोर्स कर्मी और रखे जाने हैं जिन पर हर महीने ४८ लाख रुपया खर्च होगा।

  • शहर से रोजाना 930 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है। कूड़ा संग्रह केन्द्रों की संख्या 60 है। यहां पर्यावरण अनुकूल संग्रह केन्द्र एक भी नहीं है। मेरठ में ९० वार्ड हैं और कूड़ाघर सिर्फ ४४ वार्डों में हैं।

लोगों का नजरिया

मेरठ नगर निगम के कर्मचारी स्वच्छता अभियान को लेकर जागरूकनहीं है। कर्मचारियों की लापरवाही के कारण लोगों ने अब शहर में कूड़ा जलाना शुरू कर दिया है।

जिला नागरिक परिषद के पूर्व सदस्य कुंवर शुजाआत अली

शहर में विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर कूड़े के ढेर लगे है,जिसे लोग जलाने को मजबूर हो रहे हैं।

नगर सुधार समिति के अध्यक्ष धर्मपाल सिंह

कूड़ा ले जाने वाली गाडिय़ां वाहन को बगैर ढके कूड़ा ले जाती हैं जिससे कूड़ा सडक़ों पर जगह-जगह गिरता रहता हैा। नगर निगम के कर्मचारी एनजीटी के आदेशों का उल्लघंन कर रहे हैं।

चन्दन सिंह,शताब्दीनगर

एक जनवरी 2017 को गांवड़ी कूड़ा निस्तारण प्लांट के लिए भूमि पूजन हुआ था। इससे उम्मीद बंधी थी कि शहर कूड़े से निजात पा लेगा। लेकिन बात भूमि पूजन से आगे नहीं बढ़ सकी। नतीजा शहर की सफाई व्यवस्था पूरी तरह बदहाल हो चुकी है।

चौधरी यशपाल सिंह, एडवोकेट

नगर निगम कर्मचारी नालों की सफाई के बाद निकला कूड़ा वहीं छोड़ देते हैं,जिससे कूड़ा इधर-उधर फैल जाता है। बाकी दोबारा नाले में चला जाता है।

अंकित चौधरी, पूर्व अध्यक्ष, डीएन डिग्री कॉलेज छात्रसंघ

अपने खर्चे पर मोहल्ले के लोग सफाई कराते हैं। नगर निगम कर्मचारी तो कभी सफाई के लिए आते ही नहीं दिखे।

आशा देवी (थापरनगर), रीता चौधरी (गंगा सागर), सुनील शर्मा (गंगानगर), अशोक कुमार व चतर सिंह (शर्मा नगर)।

इलाहाबाद : ये तो कभी नहीं बन सकता इंदौर

कौशलेन्द्र मिश्रा

इलाहाबाद नगर की साफ सफाई को स्वच्छ भारत मिशन के तहत तैनात लोगों की बात से बहुत आसानी से समझा जा सकता है। मिशन से जुड़े लोगों का मानना है कि इस शहर को कभी भी इंदौर जैसा नहीं बनाया जा सकता। इसकी वजह है कि इस शहर के लोग इसे अपना नहीं समझते और बेगाने जैसा व्यवहार करते हैं। आम लोगों में जागरूकता नहीं होने से स्वच्छ भारत मिशन को भी आघात पहुंच रहा है।

बहरहाल, यहां इन दिनों कुंभ की तैयारियों पर जोर शोर से काम चल रहा है। सरकारी अमला पूरी ताकत से काम कर रहा है, लेकिन सफाई की व्यवस्था हमेशा की तरह मार ही खा रही है। ये हाल तब है जब नगर निगम की ओर से इस साल सफाई व्यवस्था पर सालाना डेढ़ अरब रुपये से अधिक के खर्च का प्रावधान किया गया है। इस राशि में सफाई कर्मियों के वेतन और इस काम में लगे वाहन का खर्च भी शामिल है।

हाल-ए-नगर निगम

  • नगर निगम क्षेत्र को पांच जोन में बांटा गया है। इन इलाकों में सफाई कर्मियों की कमी को पूरा करने के लिए ठेकेदारों के जरिए कर्मचारी आउटसोर्स किए गए हैं। नगर निगम में 2575 नियमित सफाई कर्मी होने चाहिए, लेकिन सिर्फ 1579 नियमित सफाई कर्मी ही काम कर रहे हैं। सफाई कर्मियों की इस कमी को संविदा और आउटसोर्सिंग के जरिए पूरा किया जा रहा है। 403 सफाई कर्मी संविदा पर जबकि 1308 कर्मचारी आउटसोर्सिंग के हैं।
  • नगर क्षेत्र की सफाई व्यवस्था के लिए करीब 140 वाहन लगाए गए हैं। इन पर हर दिन आठ सौ लीटर से अधिक डीजल की खपत हो रही है। इन वाहनों में सात जेसीबी, तीन फांसी मशीन, दो हाइवा ट्रक, नौ ट्रैक्टर, 12 ट्रक और 106 टाटा मैजिक शामिल हैं।
  • नगर क्षेत्र के मुहल्लों के घर-घर से कूड़ा लेने और प्लांट तक कूड़ा पहुंंचाने की जिम्मेदारी हरी-भरी संस्था को दी गई है। संस्था का दावा है कि नगर के सभी 80 वार्डों के घरों से वे कूड़ा-कचरा ले रहे हैं, लेकिन संस्था अपनी ड्यूटी में पूरी तरह कामयाब नहीं है। संस्था शहर के 50 फीसदी घरों से भी कूड़ा-कचरा नहीं ले पा रही है। डंपिंग यार्ड से नियमित और ठोस ढंग से कूड़े का निस्तारण नहीं किया जा रहा है। जबकि संस्था को उसके काम के लिए सालाना 50 लाख से अधिक दिए जा रहे हैं।

बोले जिम्मेदार

‘हरी-भरी’ की तरफ से नगर के सभी वार्डों से कूड़ा उठाया जा रहा है। जनता हमें कूड़ा दे या अड्डे पर डाले। जनता तैयार हो, हम तो तैयार हैं। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। इसके लिए लोगों में जागरुकता जरूरी है। अगर सभी लोग समझदार हो जाएं तो यह नगर भी इंदौर जैसा हो सकता है।

अभय श्रीवास्तव, परियोजना प्रबंधक हरी-भरी

इंदौर के लोग शहर को अपना समझते हैं। जबकि यहां के रहने वाले लोग इसे अपना शहर नहीं समझते। लोग कूड़ा आदि फेंकने के मामले में मनमानी करते हैं। इंदौर और यहां के लोगों की सोच में फर्क है। जब तक लोग शहर को अपने घर की तरह नहीं समझेंगे तब तक इसे इंदौर जैसा नहीं बनाया जा सकता।

राजीव कुमार राठी, स्वच्छ भारत मिशन प्रभारी

क्या कहते हैं लोग

मैं अपने क्षेत्र की सफाई व्यवस्था से संतुष्ट हूं। खुद काम कराता हूं और उसकी निगरानी भी करता हूं। सफाई कर्मियों को निजी तौर पर छह ट्रार्ईसाइकिल उपलब्ध करायी है ताकि काम को शीघ्रता से कराया जा सके। जनता हमारे काम से संतुष्ट है।

आनंद घिल्डियाल, पार्षद

सफाई व्यवस्था की स्थिति बहुत ठीक नहीं है। सफाई व्यवस्था में घोटाला है। आउटसोर्स के जरिए रखे गए सफाईकर्मी अनुबंध के अनुसार नहीं रखे जाते जबकि उसका भुगतान प्राप्त कर लिया जाता है। इस पर अंकुश लगना जरूरी है।

कमलेश सिंह, पार्षद

क्षेत्र की सफाई व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हूं। कूड़ा समय पर नहीं उठता। नगर निगम के कर्मचारी कहने के बावजूद काम नहीं करना चाहते। वे काम के बदले सुविधा शुल्क चाहते हैं। अधिकारियों को सफाई व्यवस्था की तरफ और अधिक ध्यान देना चाहिए।

अरविंद

शहर की सफाई व्यवस्था लचर है। पीएम मोदी तो सफाई देखने आते नहीं। सीएम योगी भी आश्वासन देकर चले जाते हैं। सफाई कर्मी काम कर रहे हैं या नहीं इसकी ठोस निगरानी नहीं की जाती। गंदगी को लेकर पूरे शहर का कमोवेश यही हाल है।

उमेश जायसवाल

शहर की सडक़ों की बढ़ रही चौड़ाई और तमाम विकास कार्य के चलते सडक़ों पर गंदगी दिखाई दे रही है। जब सडक़ेंं बनेंगी तो गंदगी तो होगी ही। कहीं कोई दिक्कत नहीं है। क्षेत्र में पूरी तरह से सफाई दिख रही है। कर्मचारी कमोवेश सही ढंग से काम कर रहे हैं।

हरीश श्रीवास्तव

शहर में सफाई व्यवस्था की स्थिति संतोषजनक नहीं है। न तो नियमित झाड़ू लगती है और न ही नालियों से सिल्ट निकाली जाती है। अक्सर नालियां चोक रहती है जिससे गंदा पानी सडक़ों पर आ जाता है। सफाई व्यवस्था को और अधिक दुरुस्त करना चाहिए।

शशिकांत

सफाई हो रही है और पहले से बेहतर है। जो कुछ गंदगी दिख रही है वह सडक़ों को लेकर है। सडक़ों की मरम्मत और सीवर लाइन आदि बिछाए जाने के कारण जगह-जगह गंदगी नजर आ रही है। लेकिन समय बीतने के साथ ही सब ठीक हो जाएगा।

कैलाश

गंदगी को लेकर कोई समस्या नहीं है। सफाई कर्मी अपने काम को सही ढंग से अंजाम दे रहे हैं। यदि जनता जागरूक हो जाए तो शहर में कहीं भी गंदगी का नामोनिशान न रहने पाएं। स्थितियां धीरे-धीरे पहले से ठीक हो रहीं हैं। कुंभ मेले के पूर्व तक शहर चमक जाएगा।

सोनू चौरसिया



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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