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चुनावी आहट के बीच नये जिले के लिए आंदोलन

raghvendra
Published on: 16 Nov 2018 9:15 AM GMT
चुनावी आहट के बीच नये जिले के लिए आंदोलन
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गोरखपुर: प्रदेश में जिलों के नये नामकरण की सियासत के बीच नये जिलों की मांग भी जोर पकडऩे लगी है। लोकसभा चुनाव नजदीक आता देख विभिन्न संगठन सडक़ों पर आंदोलन कर रहे हैं। गोरखपुर मंडल में बांसगांव और फरेंदा को जिला बनाने की मांग को विभिन्न संगठन आंदोलन कर रहे हैं। ये संगठन दलील दे रहे हैं कि मुख्यालय से तहसील-कस्बों की दूरी के चलते इन इलाकों का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है।

गोरखपुर के बांसगांव और महराजगंज के फरेंदा को जिला बनाने की मांग वर्षों पुरानी है। नये जिले की जरूरत खुद मुख्यमंत्री भी महसूस करते रहे हैं। आंदोलन कर रहे संगठनों को लगता है कि वर्तमान परिस्थितियों में जिले का गठन नहीं हो सका तो भविष्य में सपना पूरा होना और मुश्किल होता जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इशारे में बांसगांव को जिला बनाने की प्रशासनिक कवायद भी पिछले वर्ष शुरू हुई थी, लेकिन यह ठंडे बस्ते में जा चुकी है। बांसगांव जिले की मांग राजनीतिक पार्टियों के एजेंडे में भले न रहा हो लेकिन समय-समय पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री महावीर प्रसाद, पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह से लेकर कमोबेश सभी क्षेत्रीय दिग्गज नेता उठा चुके हैं। पिछले 4 दशक से नये जिले के गठन की मांग को लेकर आंदोलन करने वालों की दलील है कि बिना नया जिला बने दक्षिणांचल का विकास संभव नहीं है।

बांसगांव विकास मंच के कार्यकर्ताओं ने पिछले दिनों तहसील मुख्यालय पर तीन दिवसीय प्रदर्शन कर अपनी मांगों को पुरजोर तरीके से रखा। समाजसेवी भारद्वाज मिश्र और राधेश्याम मिश्र का कहना है कि बांसगांव हर लिहाज से समृद्ध है लेकिन यहां के सांसदों ने यहां के लोगों को वोटबैंक से अधिक कुछ नहीं समझा है।

बांसगांव विकास मंच के अध्यक्ष अग्निवेश सिंह का कहना है कि पूरा इलाका हमेशा से पिछड़ेपन का दंश झेल रहा है। बांसगांव को जिला बनाये बिना यहां का समुचित विकास संभव नहीं है। जिले की मांग करने वालों की दलील है कि बांसगांव पूर्वाचल की सबसे पुरानी तहसील है। गोरखपुर जिले की तीन तहसीलों बांसगांव, खजनी, गोला को जोडक़र बांसगांव जिले के गठन का प्रारूप तैयार किया गया था।

राजस्व परिषद ने पांच वर्ष पूर्व दो बार तीनों तहसीलों की भौगोलिक स्थिति, राजस्व रिकार्ड मांगे थे। ये रिकार्ड यहां से दोनों बार भेजे जरूर गए लेकिन नतीजा के रूप में कुछ नहीं आया। पिछले वर्ष तत्कालीन जिलाधिकारी राजीव रौतेला ने भी बांसगांव को जिला बनाने के लिए 19 बिंदुओं पर रिपोर्ट मांगी थी। इसके लिए खजनी, गोला का बासगांव तहसील स्कूल, अस्पताल, नदी, खेती आदि को लेकर विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई थी।

ऐतिहासिक क्षेत्र है बांसगांव

इतिहासकारों की मानना है कि बांसगांव का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा है। दो दशक पहले सोहगौरा में हुई खुदाई में ताम्र पत्र मिला था। जिसपर ब्राह्मी लिपि में बांसगांव का जिक्र था। बांसगांव कोशलराज का अन्न भंडार रहा है। यहां के पांडेयपार व उरुवा बाजार की देश में प्रसिद्धि रही है। इतिहासकार प्रो. दयानाथ त्रिपाठी का मानना है कि आमी नदी की पट्टी में लगभग 11 हजार हेक्टेयर में गेहूं की खेती होती थी, लेकिन बाढ़ प्रबंधन ठीक से नहीं होने के चलते स्थिति बिगड़ती चली गई।

फरेंदा जिले को लेकर प्रदर्शन

तीन दशक पहले गोरखपुर से अलग होकर महराजगंज वजूद में आया था। अब महराजगंज में नये जिले फरेंदा के लिए आवाज उठ रही है। इंसेफेलाइटिस को लेकर व्यापक आंदोलन छेडऩे वाले वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. आरएन सिंह फरेंदा को नया जिला बनाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।

दरअसल, 2 अक्तूबर 1989 को जब महराजगंज वजूद में आया तभी फरेंदा को मुख्यालय बनाने के लिए आंदोलन हुआ था। रेल लाइन का होना और नेपाल से करीबी को मुख्यालय बनाने के पीछे अहम दलील थी। लेकिन तब प्रभावशाली नेता हर्षवर्धन ने फरेंदा को जिला मुख्यालय बनाने का विरोध कर दिया था। उनकी दलील थी कि सोहगीबरवा जैसे इलाके की फरेंदा से दूरी 100 किमी से भी अधिक हो जाएगी। जिले के वजूद में आने के बाद फरेंदा को जिला बनाने की मांग उठने लगी। करीब दशक भर पहले दस हजार लोगों ने जिले की मांग को लेकर रेल पटरी जाम कर दी थी। पिछले दिनों किसान मंच के प्रदेश सचिव एसपी विश्वकर्मा ने फरेंदा को जिला बनाने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को 20 सूत्रीय ज्ञापन सौंपा था।

चिकित्सक डॉ आरएन सिंह का कहना है कि राजनीतिक दलों की उदासीनता से यह क्षेत्र लगातार विकास के दौर में पिछड़ता जा रहा है। फरेंदा, नौतनवां तहसील में गोरखपुर के कैम्पियरगंज का कुछ इलाका शामिल कर नया जिला वजूद में आये तो पूरे इलाके में समृद्धि आएगी। महराजगंज की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि बिना फरेंदा के जिला बने यहां का समग्र विकास संभव नहीं है।

30 साल में वजूद में आये 4 जिले

गोरखपुर-बस्ती मंडल में पिछले 30 वर्षों में दो जिला गोरखपुर मंडल में तो दो बस्ती मंडल में वजूद में आये हैं। गोरखपुर से अलग होकर 2 अक्तूबर 1989 को महराजगंज वजूद में आया। नये जिले में निचलौल, आनंदनगर, नौतनवां और सदर तहसील को शामिल किया गया। वहीं कुशीनगर जिले की स्थापना 13 मई 1993 हुई।

पडरौना, कसया, हाटा और तमकुहीराज तहसील को मिलाकर नया जिला बना। वहीं बस्ती मंडल में 5 सितम्बर 1997 को संतकबीर नगर अस्तित्व में आया। नये जिले में खलीलाबाद, मेंहदावल और घनघटा तहसीलें शामिल हुईं। वहीं 29 दिसम्बर 1988 को नौगढ़, शोहरतगढ़, बांसी, इटवा और डुमरियागंज तहसीलों को जोडक़र सिद्धार्थनगर जिला वजूद में आया।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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