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रुठे बादल तोड़ रहे किसानों का मन

raghvendra
Published on: 29 Jun 2018 6:41 AM GMT
रुठे बादल तोड़ रहे किसानों का मन
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आरबी त्रिपाठी

लखनऊ: मौसम की मार ने तो खेती-किसानी शुरू में ही चौपट कर दी। बारिश होती है तो भी जितना नुकसान हो चुका, उसकी भरपाई अब संभव नहीं। यह कहना है चित्रकूट जिले के खंडेहा के मजरा अर्जुनपुर के मोती सिंह का, जो अच्छे खेतिहर हैं और उनकी खेती बारिश के पानी पर काफी निर्भर करती है। चिंता सिर्फ एक मोती सिंह की नहीं, मानसून में देरी ने लाखों किसानों को बर्बादी के कगार पर ला खड़ा किया है। खासतौर से उन्हें जिनके लिए बारिश ही खेती का प्रमुख माध्यम है। किसान मौसम की मार से बेजार हैं। सरकार को चिंता नहीं है कि वह वैकल्पिक उपाय शुरू करे। उत्तर प्रदेश के खरीफ की बोआई के आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि स्थिति कितनी भयावह है। उत्तर प्रदेश में खरीफ के 94.25 लाख हेक्टेयर रकबे के मुकाबले सिर्फ 3.46 लाख हेक्टेयर रकबा ही अब तक बोया जा चुका है जो कुल रकबे के 4 फीसद के करीब बैठता है। वजह सिर्फ समय से बारिश न होना।

उत्तर प्रदेश में मानसून तकरीबन 15 दिन पिछड़ गया है। यहां 10 से 15 जून के बीच मानसूनी बारिश हो जानी चाहिए, लेकिन अब तक हालात बहुत खराब हैं। कुछ जगहों पर बूंदाबांदी के अलावा कुछ नहीं हुआ। मौसम का मिजाज गर्मी जैसा है। खेतों में अब भी धूल उड़ रही है। खेतों में ट्रैक्टर उतरने की नौबत ही नहीं बनी। बने भी कैसे, जब धरती का सीना सूखा पड़ा है।

धान की बोआई काफी हद तक प्रभावित

मौसम को लेकर अभी तक सरकार की चिंता जाहिर नहीं हुई। किसानों की चिंता दरकिनार करते हुए कृषि विभाग के अफसर कहते हैं कि अभी देर नहीं हुई। उनका यह बयान किसानों में गुस्सा पैदा करने के अलावा कुछ नहीं। धान की बोआई काफी हद तक प्रभावित हुई है। इस साल धान का रकबा 69.8 लाख हेक्टेयर है जो तकरीबन पूरा का पूरा खाली पड़ा है। बीते सालों में अब तक यह अच्छा खासा बोया जा चुका होता था। नहरों और नलकूपों की हालत यह नहीं कि सिंचाई करके ही खेती संभाली जा सके। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि उत्तर प्रदेश का कुल सिंचित क्षेत्रफल ही 20965 हेक्टेयर का है। ऐसे ही खरीफ का इतना विशाल रकबा यह सिंचाई संसाधन सींच सकें, संभव ही नहीं।

पानी की भयावत किल्लत

तालाब, झील और पोखरों में पानी बचा नहीं है। देश के 91 जलाशयों में कुल क्षमता का 27 फीसद पानी ही बचा है। जाहिर है भूजल दोहन से भूजल स्तर तो गिरा ही है, पानी की किल्लत भयावह हालत में है। उत्तर प्रदेश के महोबा, बांदा, चित्रकूट समेत समूचे बुंदेलखंड में बिना बारिश किसान त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। दरअसल बुंदेलखंड के किसानों की 70 फीसद खेती का बारिश के पानी पर ही निर्भर है। देश के डेढ़ सौ से अधिक जिलों में अभी तक बारिश नहीं हुई, जहां सूखे जैसे हालात हैं। इनमें उत्तर प्रदेश का बड़ा हिस्सा शामिल है। बारिश न होने का दुष्प्रभाव यह भी हुआ है कि मौसमी सब्जियां भी दोगुने दाम पर बिकने लगी हैं।

कई बार गलत हुई भविष्यवाणी

दरअसल यह लगातार तीसरा साल है जब मौसम विभाग भविष्यवाणी कुछ करता है और हालात कुछ और हो जाते हैं। पिछले तीन सालों से मौसम विभाग यही कहता आया है कि मानसून सामान्य रहेगा, लेकिन पिछले साल भी उत्तर प्रदेश समेत देश के कई इलाकों में सूखा पड़ गया और इस बार भी यही नौबत है। इतना ही नहीं 2005 से 2017 के बीच सात बार ऐसा हुआ कि मौसम विभाग ने जो भविष्यवाणी की वह गलत साबित हुई। मौसम वैज्ञानिक बाद में तरह-तरह के बहाने बनाकर खुद के बचाव के उपाय करते हैं और इनकी भविष्यवाणी को आधार बनाने वाली सरकार किसानों के भले के लिए तब कुछ उपाय शुरू करने की कोशिश करती है, जब वह बर्बाद हो चुका होता है।

फिलहाल सरकार के प्रवक्ता दावा करते हैं कि मानसून में देरी जरूर हुई है, लेकिन हालात खराब नहीं हैं। जरूरत पड़ेगी तो सरकार किसानों को सुविधाएं देने और उनकी मदद के लिए हरसंभव उपाय करेगी।

किसानों का काफी नुकसान

कृषि वैज्ञानिक डॉ. विनोद तिवारी कहते हैं कि पानी न बरसने से अब तक किसानों को काफी नुकसान हुआ है। जिनके पास सिंचाई के साधन नहीं हैं, उन्हें ज्यादा दिक्कत है। जो लंबी अवधि की धान की फसलें हैं, उनकी रोपाई अब तक हो जानी चाहिए, लेकिन पानी न बरसने से इन पर प्रभाव पड़ा है। मानसून अब सक्रिय हुआ है। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि किसानों की परेशानी कम होगी।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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