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पुनर्विकास कामों के लोकार्पण में दिखा 'आजम इफेक्ट', मंच पर नहीं नजर आए शिया धर्म गुरू
लखनऊ: सीएम अखिलेश यादव ने पुराने लखनऊ के हुसैनाबाद क्षेत्र के पुनर्विकास कामों का रविवार को लोकार्पण किया। इसमें सरकार के कद्दावर कैबिनेट मंत्री आजम खान तो नहीं दिखे पर उनका इफेक्ट जरूर नजर आया।
कार्यक्रम के मंच पर सुन्नी धर्मगुरुओं टीले वाली मस्जिद के मौलाना फजलुर्रहमान के अलावा खालिद रशीद फिरंगी महली मौजूद थे और सीएम की मौजूदगी में उन्होंने सभा को संबोधित भी किया। पर मंच पर मौलाना कल्बे जव्वाद समेत कोई शिया धर्म गुरू नजर नहीं आए।
वक्फ की जमीनों पर हुआ कब्जा
मौलाना कल्वे जव्वाद से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि एक तो मुहर्रम चल रहा है। दूसरी ओर, वक्फ की जमीनों पर कब्जा कर सौंदर्यीकरण में शामिल कर दिया है। इस पर कई बार प्रोटेस्ट भी हुआ। पूरे हुसैनाबाद की जमीनों को बर्बाद कर दिया गया है।
आजम और कल्वे जव्वाद की रार पुरानी है
गौरतलब है कि अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री आजम खान और शिया धर्म गुरू मौलाना कल्वे जव्वाद के बीच रार चलता रहा है। बीते वर्ष आजम खान ने मौलाना का नाम लिए बिना ही उन पर कई गंभीर आरोप लगाए थे। वक्फ की संपतियों को गलत तरीके से बेचने का आरोप लगाया था। जिसकी मौलाना जव्वाद ने निंदा की थी। कहा था, 'सपा सरकार को आजम खान जैसे वजीर के इशारे पर काम करना महंगा पड़ेगा। लोकसभा के चुनावों में जो झटका सपा को लगा था, उससे भी बड़ा झटका उसे अगले विधानसभा के चुनावों में लगेगा।'
आब्दी से मंच पर छीनी गई थी माईक, यहां बोले
सपा की रजत जयंती के मौके पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन रहे जावेद आब्दी को बोलते समय प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने हटा दिया था। पर इस कार्यक्रम में आब्दी को बोलने का पूरा मौका मिला। उन्होंने अखिलेश की शान में कसीदे भी पढें।
नारेबाजी करने वाले कार्यकर्ताओं की भी ली क्लास
सीएम अखिलेश यादव ने कार्यक्रम में नारेबाजी करने वाले कार्यकर्ताओं की क्लास भी ली। पूरे कार्यक्रम के दौरान कार्यकर्ता नारेबाजी करते रहे। जब सीएम बोलने उठे तो देखा कि आयोजन स्थल पर ढेरों कुर्सियां खाली हैं। उन्होंने एक कार्यकर्ता को पुकारा और कहा कि 'जो तुम्हारे साथ आए हों वह हाथ उठाएं। जब कोई हाथ नहीं उठा तो उन्होंने कहा कि देखा कोई अपने साथ कार्यकर्ता नहीं लाया है।'
मंत्रियों और विधायकों की कुर्सियां रहीं खाली
आयोजन स्थल पर राज्य सरकार के मंत्रियों और विधायकों के लिए अलग से बैठने की व्यवस्था की गई थी। लेकिन मंत्रियों और विधायकों के नहीं आने की वजह से ज्यादातर कुर्सियों पर कार्यकर्ताओं ने ही कब्जा जमा रखा था।
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