×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

सीएम सिटी का विकास कंगाल विभागों के जिम्मे

raghvendra
Published on: 27 July 2018 2:18 PM IST
सीएम सिटी का विकास कंगाल विभागों के जिम्मे
X

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: सीएम के शहर में जिन विभागों पर विकास कार्य कराने की जिम्मेदारी है वे खुद बदहाल और कंगाल हैं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री को घोषणाएं जमीन हकीकत बन ही नहीं पा रही हैं। शहर के विकास का दावा करने वाला नगर निगम खुद 100 करोड़ की देनदारी से जूझ रहा है। हालत ये है कि नगर निगम मुख्यमंत्री के दौरों के समय सफाई से लेकर चूना गिराने के इंतजाम से ही आगे नहीं निकल पा रहा है। निगम का लाखों रुपया मुख्यमंत्री के दौरों के इंतजाम पर ही खर्च हो जा रहा है। विकास कार्य नहीं होने से नाराज सपाई जहां आंदोलन कर रहे हैं तो वहीं वार्डों में कोई काम नहीं होने से नाराज भाजपा पार्षद इस्तीफे की पेशकश कर चुके हैं। पिछले महीने 27 और 28 जून को चंद घंटों की रिकार्डतोड़ बारिश में जब शहर डूबने जैसी हालत में पहुंच गया। वजह सिर्फ यही कि शहर का कोई ड्रेनेज प्लान ही नहीं है।

13 लाख से अधिक आबादी वाले शहर गोरखपुर में 5 लाख की आबादी लायक भी सुविधाएं नहीं हैं। जलभराव से मुसीबत झेल चुके शहर को राहत देने के लिए नगर निगम अब करीब 8 करोड़ रुपये खर्च कर ट्रैक्टर, मैजिक, जेसीबी, लोडर आदि की खरीदारी करने की तैयारी में है। जबकि यह रकम भी शासन से नहीं मिली है। अवस्थापना निधि गोरखपुर जिले में बिकने वाली संपत्ति से प्राप्त होने वाला राजस्व है। गोरखपुर नगर निगम के 70 वार्डों में ही विकास कार्य के लिए 200 करोड़ से अधिक की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री बैठकों में हमेशा कहते हैं कि शहर के विकास में रुपये की कमी नहीं होने दी जाएगी।

महापौर ने सभी 70 वार्डों में सर्वे कराया तो साफ हुआ कि सडक़, नाली और इंटरलाकिंग के कामों के लिए ही 200 करोड़ की जरूरत है। करीब 600 कामों के प्रस्ताव शासन को चार महीने पहले ही भेजे जा चुके हैं लेकिन कोई रिस्पांस नहीं मिल रहा है। बकाये का भुगतान नहीं होने का नतीजा है कि नगर निगम में कोई टेंडर ही नहीं डाल रहा है। कान्हा उपवन, आवारा पशुओं को पकडऩे और 300 से अधिक नाली, सडक़ के निर्माण के लिए नगर निगम बार-बार टेंडर निकाल रहा है, लेकिन कोई ठेकेदार इसमें रुचि नहीं ले रहा है। आलम यह है कि मुख्यमंत्री की नजर वाली योजनाओं के लिए अधिकारी दूसरे जिलों के ठेकेदारों से सिफारिश कराकर कार्य करा रहे हैं। दरअसल, नगर निगम सालाना बमुश्किल 30 करोड़ रुपये की कमाई करता है, लेकिन 50 करोड़ से अधिक कर्मचारियों के वेतन और पेंशन पर ही खर्च हो जाता है।

सरकार से मिलने वाले फंड में भी लगातार कटौती की जा रही है। ठेकेदार अशोक सिंह का कहना है कि वे खुद छोटे ठेकेदार हैं फिर भी उनका 10 लाख रुपया बकाया है। तीन किश्त में 4 लाख मिले हैं। बाकी पता नहीं कब मिलेगा।

कंगाली की स्थिति को देखते हुए सपाई इसे सियासी रंग देने में जुटे हैं। पिछले छह महीने में सपाई नगर निगम में तीन बार धरना दे चुके हैं। सपा नेता और पूर्व विधायक विजय बहादुर सिंह आरोप लगाते हैं कि जनता मुख्यमंत्री के धोखे को अच्छी तरह समझ रही है। उधर, महापौर सीताराम जायसवाल जो चुनाव से पहले निगम की सुविधा को लेने से इंकार कर रहे थे, वह निगम के फंड से खरीदी गई 20 लाख की लक्जरी गाड़ी से चल रहे हैं। नगर आयुक्त ने भी 20 लाख की गाड़ी खरीदी है। महापौर का दावा है कि जल्द ही बजट का आवंटन हो जाएगा। मुख्यमंत्री जी ने भरोसा दिया है कि रुपये की कमी नहीं होने दी जाएगी।

इस्तीफा की पेशकश को मजबूर भाजपा पार्षद

विकास नगर की भाजपा पार्षद प्रमिला ओझा कंगाल नगर निगम को लेकर परेशान हैं। 17 जुलाई को प्रमिला ने महापौर को इस्तीफा सौंप दिया। हालांकि महापौर और अन्य पार्षदों के समझाने के बाद पत्र के मजमून में उन्होंने फेरबदल किया। इसके पहले पांच बार के भाजपा पार्षद देवेन्द्र गौंड पिंटू ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि उनके वार्ड में एक साल में एक रुपये का काम नहीं हुआ है। इस स्थिति से बेहतर है कि वह इस्तीफा देकर घर बैठ जाएं।

बिजली निगम पर भी 50 करोड़ की देनदारी

गोरखपुर शहर में ट्रांसफार्मर की क्षमता बढ़ोतरी से लेकर अंडरग्रांउड केबिल बिछाने का काम पैसे की कमी से धीरे-धीरे चल रहा है। इसके साथ ही ट्रांसमिशन से लेकर बिलिंग का काम प्राइवेट हाथों में है, और इन कामों के ठेकेदारों का बिजली निगम पर करीब 50 करोड़ रुपये बकाया है। एक ठेकेदार अभिज्ञान तिवारी का कहना है कि वे 12 करोड़ रुपये के लिए लखनऊ से लेकर उर्जा मंत्री का चक्कर लगा रहे हैं लेकिन भुगतान की स्थिति नहीं बन रही है। शहर की बिलिंग का जिम्मा लखनऊ की सीआई एजेंसी के पास है। 70 लाख रुपये के बकाये के चलते बिलिंग कंपनी अपने 125 कर्मचारियों को भुगतान तक नहीं कर पा रही है। मुख्य अभियंता पीएन उपाध्याय का कहना है कि सभी भुगतान एमडी कार्यालय से होने है। हम सिर्फ पत्राचार करने की स्थिति में हैं।

10 करोड़ का बकाएदार है पीडब्ल्यूडी

गोरखपुर रेंज के लोक निर्माण विभाग का ठेकेदारों पर करीब 10 करोड़ से अधिक का बकाया है। आदर्श ठेकेदार समिति के अध्यक्ष शरद कुमार सिंह का कहना है कि बजट की कमी के कारण पीडब्ल्यूडी में जमकर मनमानी व शासनादेशों का उल्लंघन किया जा रहा है। शासनादेश के अनुसार कोई भी टेंडर 15 दिन में खोल दिया जाना चाहिए, विभाग इसमें दो से ढाई माह का समय ले रहा है। साथ ही शासन ने माह में टेंडर निकालने की तिथि 10 व 25 तारीख तय कर दी है, लेकिन विभाग की जब मर्जी टेंडर आंमत्रित कर रहा है।

प्रोजेक्ट की लागत घटाने का खेल

विभिन्न विभागों में जरूरी परियोजनाओं की लागत घटाने का भी खेल चला रहा है। पिछली सरकार में रामगढ़ झील में वाटर स्पोटर्स के लिए 78 करोड़ रुपये का प्रस्ताव तैयार हुआ था। तीन बार के संशोधनों के बाद प्रदेश सरकार ने इसे घटाकर 45 करोड़ रुपये कर दिया है। डीपीआर तैयार करने में जुटे जलनिगम के अभियंता पूरे प्रकरण पर चुप्पी साधे हुए हैं। उनका कहना है कि 78 करोड़ रुपये में काम्प्लेक्स बनाने का प्रस्ताव था। अब इतनी कम रकम में डीपीआर बनाने में ही मुश्किल हो रही है। सर्किट हाउस से एयरफोर्स स्टेशन तक फोरलेन का निर्माण 110 करोड़ में प्रस्तावित था। अब प्रोजेक्ट कास्ट घटाकर 78 करोड़ कर दी गयी है।

300 करोड़ से घटकर 125 करोड़ हो गई प्राधिकरण की कमाई

तीन वर्ष पहले 300 करोड़ से अधिक की रिकार्ड कमाई करने वाला गोरखपुर विकास प्राधिकरण मुश्किल में फंसा है। वर्तमान में जीडीए की कमाई 125 करोड़ के आसपास है और खर्च भी इतना ही है। जीडीए के अधिकारी कहते हैं कि जो रकम केन्द्र से मिलनी चाहिए उसे भी जीडीए वहन कर रहा है। मेट्रो के डीपीआर को लेकर करीब 3 करोड़ प्राधिकरण को देना पड़ा है। शहर के ड्रेनेज प्लान के डीपीआर भी करीब 70 लाख खर्च का जिम्मा जीडीए को ही मिला है। इतना ही नहीं सिवरेज ट्रिटमेंट प्लांट के रखरखाव के लिए जीडीए को मोटी रकम देनी पड़ रही है।

अस्पतालों में जरूरी दवाओं के लिए बजट नहीं

सीएम सिटी में जिला अस्पताल में दवाओं का टोटा है। पिछले छह महीने में एआरबी का टीका नहीं होने पर जिला अस्पताल में हंगामा हो चुका है। महिला अस्पताल में बदहाली का आलम यह है कि वहां गर्भवती महिलाओं के लिए कैल्शियम और आयरन की गोलियां तक नहीं हैं। इंसेफेलाइटिस का मौसम शुरू होने के बाद भी जिले के सामुदायिक अस्पतालों में जरूरी दवाओं का आभाव है।

उधार देकर विकास करा रही सरकार

योगी सरकार ने नगर निगम को तीन विकास कार्यों के लिए उधार पर रकम दी है। जिसे नगर निगम को अपनी कमाई में से लौटाना है। इसमें नगर निगम के सदन भवन के निर्माण के लिए 25 करोड़, बीआरडी मेडिकल कॉलेज में विकास कार्यों के लिए 15 करोड़ और रामगढ़ झील के पास विकास कार्यों के लिए 15 करोड़ रुपये शासन ने दिये हैं। नगर निगम को 55 करोड़ रुपये दस किश्तों में सरकार को लौटाने हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में सडक़, नाली और डिवाइडर आदि का कार्य मुख्यमंत्री की मंशा को देखते हुए हो रहा है। इसे लेकर सपा पार्षद नगर निगम बोर्ड और कार्यकारिणी की बैठक में हंगामा तक कर चुके हैं। पूर्व उपसभापति और पार्षद जियाउल इस्लाम का कहना है कि नगर निगम के एक्ट में साफ है कि नगर निगम दूसरे सरकारी संस्थान के परिसर में निर्माण कार्य नहीं करा सकता है। नियमों की अनदेखी करने वाले नगर आयुक्त को सपा भविष्य में सबक सिखाएंगी।



\
raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story