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मठाधीश हैं सीएम योगी आदित्यनाथ...जानिए क्या है 'नाथ पंथ' और क्यों रहता है चर्चा में
गोरखपुर : गोरखपुर सांसद व गोरखनाथ मठ के महंत योगी आदित्यनाथ अब सूबे के सीएम हैं। इसके बाद से ही नाथ संप्रदाय और गोरखपुर देश और दुनिया में चर्चा का विषय बन गया है। सर्च इंजन गूगल में पिछले तीन दिनों में आदित्यनाथ, नाथ संप्रदाय और गोरखपुर काफी सर्च किया गया। तो ऐसे में हम आपको बता रहे हैं की आखिर ये नाथ संप्रदाय क्या है, और इसका गोरखपुर से क्या रिश्ता है।
प्राचीन काल से चले आ रहे नाथ संप्रदाय को 11वीं सदी में गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने पहली बार संगठित किया। गोरखनाथ ने इस संप्रदाय के बिखराव को रोका और योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया। गुरु और शिष्य को तिब्बती बौद्ध धर्म में महासिद्धों के रूप में जाना जाता है। इस संप्रदाय में भी यही परंपरा है तो कुछ का मानना है की ये कहीं ना कहीं से बौद्ध धर्म से भी जुड़ा है
इस संप्रदाय को मानने वाले साधु संत परिव्रराजक होते हैं जिसका अर्थ होता है घुमक्कड़। ये जीवन भर भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम पड़ाव में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमा लेते हैं या फिर हिमालय चले जाते हैं। नाथ संप्रदाय से जुड़े साधु संत सिर पर बाल नहीं रखते और कानों में कुंडल पहनते हैं जो इनकी सबसे बड़ी पहचान है
इस पंथ के साधक शिव भक्ति करते हैं। परस्पर 'आदेश' या आदीश शब्द से अभिवादन करते हैं। अलख और आदेश शब्द का अर्थ प्रणव या परम पुरुष होता है। नाथ साधु-संत हठयोग पर विशेष बल देते हैं।
प्रारम्भिक दस नाथ
आदिनाथ, आनंदिनाथ, करालानाथ, विकरालानाथ, महाकाल नाथ, काल भैरव नाथ, बटुक नाथ, भूतनाथ, वीरनाथ और श्रीकांथनाथ। इनके बारह शिष्य थे जो इस क्रम में है- नागार्जुन, जड़ भारत, हरिशचंद्र, सत्यनाथ, चर्पटनाथ, अवधनाथ, वैराग्यनाथ, कांताधारीनाथ, जालंधरनाथ और मालयार्जुन नाथ।
चौरासी और नौ नाथ परम्परा
आठवी सदी में 84 सिद्धों के साथ बौद्ध धर्म के महायान के वज्रयान की परम्परा का प्रचलन हुआ। ये सभी भी नाथ ही थे। सिद्ध धर्म की वज्रयान शाखा के अनुयायी सिद्ध कहलाते थे। उनमें से प्रमुख जो हुए उनकी संख्या चौरासी मानी गई है।
नौ नाथ गुरु :
1. मच्छेंद्रनाथ 2. गोरखनाथ 3.जालंधरनाथ 4.नागेश नाथ 5.भारती नाथ 6.चर्पटी नाथ 7.कनीफ नाथ 8.गेहनी नाथ 9.रेवन नाथ।
इसके अलावा ये भी हैं:
1. आदिनाथ 2. मीनानाथ 3. गोरखनाथ 4.खपरनाथ 5.सतनाथ 6.बालकनाथ 7.गोलक नाथ 8.बिरुपक्षनाथ 9.भर्तृहरि नाथ 10.अईनाथ 11.खेरची नाथ 12.रामचंद्रनाथ।
ओंकार नाथ, उदय नाथ, सन्तोष नाथ, अचल नाथ, गजबेली नाथ, ज्ञान नाथ, चौरंगी नाथ, मत्स्येन्द्र नाथ और गुरु गोरक्षनाथ। सम्भव है यह उपयुक्त नाथों के ही दूसरे नाम है। बाबा शिलनाथ, दादाधूनी वाले, गजानन महाराज, गोगा नाथ, पंढरीनाथ और साईं बाब को भी नाथ परंपरा का माना जाता है।
उल्लेखनीय है कि भगवान दत्तात्रेय को वैष्णव और शैव दोनों ही संप्रदाय का माना जाता है, क्योंकि उनकी भी नाथों में गणना की जाती है। भगवान भैरवनाथ भी नाथ संप्रदाय के अग्रज माने जाते हैं।
नेपाल में कहा जाता है कि गोरखा जाति का नाम और वहां के एक जिले गोरखा का नाम भी बाबा गोरखनाथ के नाम पर पड़ा। बाबा गोरखनाथ ने जिस स्थान को अपनी कर्मभूमि बनाया आज वही गोरक्षनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है और वो इलाका गोरखपुर के नाम से जाना जाता है।
नाथ सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार सच्चिदानंद शिवजी के स्वरूप हैं। ‘श्री गोरक्षनाथ जी’ सतयुग में पेशावर (पंजाब) में, त्रेतायुग में गोरखपुर, उत्तरप्रदेश, द्वापर युग में हरमुज, द्वारिका के पास तथा कलियुग में गोरखमधी, सौराष्ट्र में स्थित हुए थे।
गोरखनाथ मंदिर का महत्व
ये मंदिर सिर्फ नाथ योगियों के लिए ही नहीं बल्कि समस्त हिंदू धर्म को मानने वालों के लिए आस्था का केंद्र है। गुरु गोरखनाथ की समाधि मंदिर और गोरखनाथ जी की गद्दी गोरखपुर में इस मंदिर के अंदर स्थित है।
ये मंदिर पूर्वांचल , तराई और नेपाल में काफी पवित्र माना जाता है। यहां के महंत को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता है राम मंदिर आन्दोलन में मंदिर ने बड़ी भूमिका अदा की थी। पूर्वांचल की राजनीति में मंदिर बड़ी भूमिका अदा करता है भाजपा के टिकट यही से कटते और मिलते हैं। के कहा जाता है कि जो भी गोरखनाथ चालीसा 12 बार जप करता है वह दिव्य ज्योति के साथ धन्य हो जाता है।
मकर संक्राति पर मंदिर में खिचड़ी का मेला लगता है ये एक महीने तक चलता है। मंदिर में रखे रिकॉर्ड के मुताबिक गोरखनाथ मंदिर सल्तनत और मुगल काल के शासन के दौरान कई बार नष्ट भी हुआ। लेकिन हर बार इसका आकार बढ़ता ही गया है, पहली बार अलाउद्दीन खिलजी ने 14वीं सदी में और दूसरी बार 18वीं सदी में औरंगजेब ने इसे नष्ट किया था।
कहा जाता है कि शिव गोरक्ष ने त्रेता युग में जो यहां जो ज्योति जलाई थी वो आज तक अखंड रूप से जल रही है।