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अब तक के इतिहास का सफलतम है इस बार का प्रयागराज कुंभ
अतुलनीय कुंभ। अनुकरणीय प्रबंध। अभूतपूर्व प्रबंध व व्यवस्था। पिछले सार कीर्तिमान ध्वस्त करते हुए अपार जनसमूह का आस्था के सैलाब में शामिल होकर कुंभ स्नान करने जाना। और आस्था के इस संगम में राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति का कुंभ में डुबकी लगाना। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में कुंभ में कैबिनेट की बैठक होना।
रामकृष्ण वाजपेयी
अतुलनीय कुंभ। अनुकरणीय प्रबंध। अभूतपूर्व प्रबंध व व्यवस्था। पिछले सार कीर्तिमान ध्वस्त करते हुए अपार जनसमूह का आस्था के सैलाब में शामिल होकर कुंभ स्नान करने जाना। और आस्था के इस संगम में राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति का कुंभ में डुबकी लगाना। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में कुंभ में कैबिनेट की बैठक होना। प्रदेश के सभी मंत्रियों का कुंभ में संगम में स्नान करना। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह का कुंभ में डुबकी लगाना। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का कुंभ में संगम में स्नान करना। केंद्रीय मंत्रियों में स्मृति ईरानी, वीएन गडकरी का कुंभ स्नान करने आना। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी बहन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का कुंभ में स्नान करने के लिए सोचते रह जाना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कुंभ में संगम में स्नान कर जनसभा को संबोधित कर आना।
कुल मिलाकर ये सब ऐसा है जिसने 2019 के इलाहाबाद कुंभ को ऐसा यादगार बना दिया है जिसे सालों तक लोग नहीं भूल पाएंगे। जो कुंभ मेला में आस्था के चलते या घूमने के चलते हो आए। उनके पास हैं तमाम सुखद यादें लेकिन जो नहीं जा पाए हैं उनके मन में कुंभ में न जा पाने की कसक बहुत गहरी रहेगी। सालों तक इसे भुला पाना आसान नहीं होगा।
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देश की आजादी के बाद से सूबे में जितने भी कुंभ या अर्द्धकुंभ हुए हैं चाहे वह हरिद्वार का रहा हो या इलाहाबाद का आस्थावान लोग वहां जाते रहे हैं लेकिन सबके मन में एक हदस रहती थी अरे शाही स्नान पर मत जाओ, खास तिथि पर मत जाओ कहीं कोई हादसा न हो जाए और कुंभ में किसी वीआईपी के आने की कल्पना से ही कुंभ के कल्पवासी सिहर जाते थे। पिछली कटु स्मृतियों से उनका यह भय जायज भी था। दरअसल इतने विशाल कुंभ मेले में जब कई देशों की आबादी से ज्यादा लोग एक छोटे से क्षेत्र में सिमट आते हैं वहां किसी हादसे की आशंका निर्मूल नहीं कही जा सकती। आजादी के पहले की दुर्घटनाओं की बात करें तो कुंभ में आजादी के पहले की सबसे बड़ी ज्ञात दुर्घटना 1820 में हुई थी। उस समय कुंभ मेले में बड़ी भगदड़ हुई थी। जिसमें वहां पर 430 लोग मारे गए थे। इसी तरह से आजादी के बाद पहले कुंभ स्नान का आयोजन 1954 में हुआ था। इस मौके पर स्नान के लिए देश भर से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी थी। इसमें मची भगदड़ में करीब 800 लोगों की जान गई थी और हजारों लोग घायल हुए थे। हालांकि हताहत की यह संख्या अलग-अलग जगह अलग बताई गई थी। 14 अप्रैल, 1986 को उज्जैन में कुंभ के दौरान हुई दुर्घटना में भी कई लोगों की जान गई थी। 2003 में भी नासिक में कुंभ के दौरान एक पुल ढहने से करीब 17 लोगों की गोदावरी नदी में डूबकर मौत हो गई थी। 2010 में आयोजित कुंभ मेले में भी भगदड़ में कई लोगों की जान गई थी। 2013 में प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में कुंभ के दौरान इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के 5 और 6 नंबर प्लेटफॉर्म के बीच मची भगदड़ में मौनी अमावस्या का स्नान करके लौट रहे 42 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
छोटे मोटे हादसों की तो कोई गिनती ही नहीं। इसी लिए कुंभ के दौरान मेला क्षेत्र में वीआईपी मूवमेंट प्रतिबंधित रहता था। क्योंकि वीआईपी मूवमेंट होगा तो श्रद्धालुओं साधकों नागाओं के गंगा स्नान के अधिकार का कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में हनन जरूर होगा। इसीलिए वीआईपी या वीवीआईपी से कहा जाता है कि आप मुख्य स्नान की तिथियों के छोड़कर किसी और दिन आएं।
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प्रशासन की भी मजबूरी है क्योंकि वीआईपी मूवमेंट के चलते ऐसी ही दुर्घटना 1954 के प्रयाग कुम्भ में हुई थी जब प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के लिए भीड़ रोकी गई। फिर 1980 में हरिद्वार कुम्भ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के लिए भीड़ रोकी गई दोनो ही बार भगदड़ में सैकड़ों लोगों को कुचलने पर मजबूर कर दिया गया। तर्क ये दिया गया कि दुर्भाग्यवश हमारे यहां धार्मिक अनुष्ठानों और कार्यक्रमों के दौरान हादसे हो ही जाते हैं।
यानी चूक प्रशासन की होती थी जिसके चलते जान-माल का भारी नुकसान होता था और कहा जाता था कि ये बड़ी बात नहीं है इतने बड़े आयोजन में छिटपुट हादसे हो ही जाते हैं। वस्तुतः उस समय भी यदि सत्ता में बैठे लोग हिंदुओं के इस सबसे विशाल आयोजन के प्रति सजग और तत्पर होते तो भीड़ पर प्रभावी नियंत्रण करके हादसों को बखूबी रोक सकते थे। बड़े आयोजनों में कई बार भीड़ को निकलने के पर्याप्त मार्ग न मिलने के कारण ही भगदड़ मच जाती है। कहना नहीं होगा कि आजादी के बाद जिसकी भी सत्ता रही भीड़ को संभालना किसी की वरीयता में रही।
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पहली बार उत्तर प्रदेश को ऐसा योगी मुख्यमंत्री मिला जिसने हिंदू मन को समझा उसकी पीड़ा को आत्मसात किया और कुंभ के लिए ऐसा मनोहर विहान रच दिया जिसे जो भी देखे देखता रह जाए। भीड़ के प्रबंधन की उच्च तकनीक ने सारे प्रमुख स्नान बिना किसी तकलीफ के निपटाए। ये योगी ती भीड़ प्रबंधन को लेकर तैयार की गई ठोस योजना का कमाल रहा। भीड़भाड़ वाले इलाकों से आतंकियों या गड़बड़ फैलाने वालों को दूर रखने के लिए पुलिस व सुरक्षा चक्र में शामिल अफसर भी बधाई के पात्र हैं।। किसी को अफवाह फैलाकर भगदड़ मचाने वाले हालात पैदा करने की स्थिति बनाने का मौका ही नहीं दिया गया। ऐसे तत्वों पर सख्त पैनी नजर का नमूना भी पूरी दुनिया ने देखा है।
मुख्यमंत्री योगी ने आपदा की हर स्थिति से निपटने की तैयारी की। पुलिस, प्रशासन और चिकित्सा विभाग ने मिलकर योजना बनाई, भगदड़ से लेकर अन्य किसी भी तरह के हमलों की स्थिति से निपटने की रणनीति बनाकर उसका पूर्वाभ्यास किया। सेना और वायुसेना को अलर्ट मोड पर ऱखा। तब जाकर इस बार कुंभ यादगार बना।