×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

भरोसे पर फँसे योगीः अब खुद सम्हालनी होगी कमान, भूलना पड़ेगा नौकरशाही को

इस दृष्टि या दृष्टि दोष को दूर करने की ज़िम्मेदारी की कमान अब योगी को खुद संभालनी होगी। नौकरशाही पर सब नहीं छोड़ना होगा। योगी को इस वाकये से समझना होगा कि नौकरशाही की हरकतों से सब किये कराये पर पानी फिरने में देर नहीं लगती।

Newstrack
Published on: 6 Oct 2020 8:07 PM IST
भरोसे पर फँसे योगीः अब खुद सम्हालनी होगी कमान, भूलना पड़ेगा नौकरशाही को
X
CM Yogi trap on trust and Now will have to take command

योगेश मिश्र

क्या अखिलेश सरकार की राह योगी सरकार ने पकड़ ली है? क्या मायावती सरकार की राह पर योगी सरकार चल निकली है? हाथरस के बरक्स ये साल इन दिनों जेरे बहस हैं। हो भी क्यों न। मायावती सरकार में रेप, मर्डर वाला शीलू कांड हुआ। अखिलेश यादव की सरकार में रेप व मर्डर वाला बदायूँ कांड हुआ। इन दोनों कांडों के बाद दोनों सरकारें सत्ता विरोधी रुझान का शिकार होना शुरू हो गयीं। दोनों मामलों की सीबीआई जाँच हुई। अखिलेश यादव के समय में हुए बदायूँ कांड में सीबीआई रिपोर्ट के मुताबिक़ घटना आत्महत्या की थी। ज़िला पुलिस की कारगुज़ारियों के चलते दोनों सरकारों की न केवल मीडिया में भद पिटी बल्कि विपक्ष को एकजुट होकर हमलावर होने का अवसर भी मिला। पर मायावती काल की घटना में क्लीन चिट नहीं मिल पाई।

सवाल उठेंगे

जिस तरह हाथरस कांड में अब कई अलग अलग बातें सामने आ रहीं हैं उससे हो सकता है योगी सरकार को मायावती व अखिलेश दोनों में से किसी के काल में हुई जाँच के नतीजों सा परिणाम हासिल हो। पर इस बार नौकरशाही ने जो खेल खेले हैं , उसके चलते यदि मामला अखिलेश सरकार की तरह हुआ तो लोगों के लिए यक़ीन करना मुश्किल होगा।

जाँच एजेंसी की विश्वसनीयता पर सवाल उठेगा। इन सवालों को उठाने वालों के तर्क व प्रमाण अचूक होंगे। क्योंकि इस घटना में नौकरशाही, जिसमें पुलिस भी शामिल है, ने मुख्यमंत्री को समय समय पर सही सूचना नहीं दी। मसलन, घटना चौदह सितंबर की है। तीस तारीख़ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फ़ोन आने के बाद योगी व उनकी सरकार सक्रिय हुई।

पीड़िता की मौत के बाद देर रात जिस तरह पुलिस ने परिजनों को बिना बताए शव का दाह संस्कार गाँव को छावनी में तब्दील करके किया वह भी सवाल खड़ा करने वाला कहा जाना चाहिए। राज्य सरकार पीड़ित परिवार के मर्म को जान नहीं पाई कि वे क्या चाहते हैं? जानने की कोशिश अभी नहीं की गयी।

दिल्ली में ही परिजनों को शव सौंप देना चाहिए था। यह तो नहीं हुआ पर ज़िला प्रशासन जिस तरह काम कर रहा था, सुबूत मिटाने, धमकाने में व्यस्त था, वह भी किसी सभ्य समाज का काम नहीं कहा जाना चाहिए। पुलिस-प्रशासन के व्यवहार से ऐसा लग रहा था मानो पीड़ित पक्ष ही अपराधी है।

केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से गंभीरता बढ़ी

केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप से मामले की गंभीरता बढी। प्रधानमंत्री के फ़ोन के दो दिन बाद तक ज़िला प्रशासन के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी? अब भी ज़िलाधिकारी के ख़िलाफ़ मुख्यमंत्री ने कोई एक्शन नहीं लिया है? यह तब है जबकि पीड़ितों के पिता को धमकाने वाला ज़िलाधिकारी का वीडियो वायरल हो चुका है।

hathras case

पीड़िता के घर का एक बच्चा किसी तरह पुलिसिया चंगुल से निकलकर मीडिया के बीच पहुँचने में कामयाब रहा। उसने कहा कि ज़िलाधिकारी ने पीड़िता के पिता यानी चाचा के सीने पर लात मारी। नाराजगी सबसे अधिक डीएम के खिलाफ है।

हाथरस के एसपी वही थे, जो भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर वाले मामले में तत्कालीन एसपी उन्नाव थे। बावजूद इसके, एसपी की संदेहास्पद कार्यशैली को राज्य सरकार समझने में नाकाम रही।

तनुश्री पांडेय की मौजूदगी

अपर मुख्य सचिव गृह और डीजीपी पीड़ित परिवार के पास देर से पहुंचे। ज़िला प्रशासन ने मीडिया प्रतिनिधियों को तीन दिन तक गाँव के बाहर रोके रखा। पत्रकार तनुश्री पांडेय यदि रात को अंतिम संस्कार के समय मौजूद नहीं रहतीं तो ज़िला प्रशासन मामले में पलीता लगाने में कामयाब हो जाता।

गाँव को छावनी में तब्दील कर दिया। मीडिया के सामने पारदर्शिता नहीं बरती गयी। पत्रकार प्रज्ञा मिश्रा व प्रतिभा मिश्रा को तीन दिन तक गाँव में डेरा डालने के बाद पीड़ित परिवार तक पहुँचने का अवसर हाथ लगा। मीडिया पर बैन के चलते सच्चाई से दूर रही योगी सरकार।

ये ऐसे तथ्य व सत्य हैं जिनके उत्तर सीबीआई जाँच के किसी भी नतीजे से मिलने संभव नहीं हैं। क्योंकि नौकरशाही ने अपनी करतूतों के चलते उस योगी आदित्यनाथ को महिलाओं की सुरक्षा न कर पाने के मामले में फंसा दिया है, जो महिलाओं के ख़िलाफ़ छेड़छाड से निपटने के लिए रोमियो स्क्वाड बनाने में देर नहीं करते।

महिला हेल्पलाइन पर आई हर शिकायत का शत प्रतिशत निपटारा करवाने में रुचि लेना अपने एजेंडे का हिस्सा बना कर रखते हैं। जो हाथरस कांड के बाद यह प्रतिबद्धता जताते हों, ‘उत्तर प्रदेश में माताओं-बहनों के सम्मान-स्वाभिमान को क्षति पहुंचाने का विचार मात्र रखने वालों का समूल नाश सुनिश्चित है।

इन्हें ऐसा दंड मिलेगा जो भविष्य में उदाहरण प्रस्तुत करेगा। आपकी उत्तर प्रदेश सरकार प्रत्येक माता-बहन की सुरक्षा व विकास हेतु संकल्पबद्ध है. यह हमारा संकल्प है-वचन है।‘ पर नौकरशाही के रूख के नाते हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने टिप्पणी की कि लॉग आधारित हिंसा का ख़तरा।

दबाव का संदेश गया

राजनीतिक दलों के नेताओं को रोकने और उनके साथ पुलिस के अलोकतान्त्रिक रवैय के चलते राजनीतिक दलों को सत्ता पक्ष पर हमलावर होने का मिला मौका। यह भी एक चूक हुई कि जिस दिन प्रियंका व राहुल हाथरस के गाँव पहुँचने में कामयाब हुए उस दिन सीबीआई जाँच की सिफ़ारिश हुई। इससे यह संदेश गया कि मीडिया व विपक्ष के दबाव में सरकार को यह फ़ैसला लेना पड़ा।

सीबीआई जाँच को अपनी निष्पक्षता साबित करने के लिए इस सवाल का जवाब देना होगा कि आख़िर किसके आदेश पर रात को अंतिम संस्कार किया गया। मायावती की तर्ज़ पर विपक्षी माँग के बिना सीबीआई जाँच की सिफ़ारिश की जानी चाहिए थी। नौकरशाही की गलती रही कि सही फ़ैसले विलंब से लिये गये। इसके चलते पूरे प्रदेश में यह संदेश गया कि राज्य सरकार मामले को संभालने में नाकाम साबित रही।

इस पूरे मामले में भाजपा सांसद का जातिवादी कार्ड खेलते हुए तूल देना, स्थानीय विधायकों का सरकार के साथ खड़ा न होना यह बताता है कि संगठन व सरकार के बीच ही नहीं विधायकों व सांसदों तथा मुख्यमंत्री के बीच सब ठीक नहीं चल रहा है। बाद में पूर्व विधायक का जाति सम्मेलन बुलाना भी भारी पड़ रहा है। सवर्णों में बनिया-ब्राह्मण, ओबीसी में कुर्मी-लोध, दलितों में बाल्मिकी-पासी भाजपा के परंपरागत वोटर हैं। इस समझ को भी दरकिनार किया गया। पीड़िता वाल्मीकी समाज से थी।

मुख्यमंत्री की ईमानदारी पर सवाल नहीं

योगी आदित्यनाथ को मैं पहली बार सांसद का चुनाव लड़ते समय से जानता हूँ। उनकी ईमानदारी पर सवाल हो ही नहीं सकता। यह भी कहा जा सकता है कि बहुत दिनों बाद प्रदेश को कोई ईमानदार मुख्यमंत्री मिला है। जो पार्टी चलाने के लिए ‘ज़रूरी’ ज़िम्मेदारी से भी मुक्त हैं।

यही नहीं, सांसद के रूप में काम करते हुए उन्हें क़रीब से देखने का अवसर मिला है। वह किसी ग़लत काम की सिफ़ारिश करते ही नहीं हैं, यदि किसी व्यक्ति विशेष या सही सूचना न मिल पाने के कारण कोई सिफ़ारिश ग़लत हो गयी तो सच्चाई का पता चलते ही अपनी सिफ़ारिश वापस लेने में कोई संकोच नहीं करते।

इन सबका ज़िक्र इसलिए ज़रूरी हो जाता है क्योंकि हाथरस को लेकर जो फ़ैसले हुए वैसे फ़ैसले लेने की आदत या कार्य व्यवहार योगी का नहीं है। पर यह सब हुआ। वह सब हुआ जिसके नाते योगी की सरकार को मायावती व अखिलेश सरकार के पथ पर जाते हुए देखा जा रहा है।

इस दृष्टि या दृष्टि दोष को दूर करने की ज़िम्मेदारी की कमान अब योगी को खुद संभालनी होगी। नौकरशाही पर सब नहीं छोड़ना होगा। योगी को इस वाकये से समझना होगा कि नौकरशाही की हरकतों से सब किये कराये पर पानी फिरने में देर नहीं लगती।

1979 के बाद उत्तर प्रदेश में कोई भी सरकार रिपीट नहीं हुई है। इस मिथ, इस टोटके को निराधार साबित करने के लिए योगी कैसे जुटते हैं, अब यह देखना दिलचस्प होगा। पर इससे पहले बिहार के विधानसभा चुनाव व उत्तर प्रदेश के आठ उप चुनाव में हाथरस कांड की भूमिका परखी जा सकती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व न्यूजट्रैक/अपना भारत के संपादक हैं।)



\
Newstrack

Newstrack

Next Story