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कर्नल निजामुद्दीन का 117 साल की उम्र में निधन, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रहे थे करीबी
आजमगढ़: नेताजी सुभाष चंद्र बोस के करीबी और उनके ड्राइवर कर्नल निजामुद्दीन का निधन हो गया है। सोमवार को सुबह निजामुद्दीन ने 117 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। वो लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे। उनके छोटे बेटे अकरम ने बताया कि सोमवार को तड़के सुबह 4 बजे उनका निधन हुआ। दोपहर करीब 2 बजे उन्हें सुपुर्दे-ए-खाक किया जाएगा। कर्नल निजामुद्दीन आजमगढ़ के मुबारकपुर के रहने वाले थे।
आखिरी बार नाव पर छोड़ा था नेताजी को
कर्नल निजामुद्दीन बताया करते थे कि उन्होंने 20 अगस्त 1947 को नेताजी को उन्होंने बर्मा में छितांग नदी के पास आखिरी बार नाव पर छोड़ा था। उसके बाद उनकी कभी उनसे मुलाकात नहीं हुई। वो नेताजी के पर्सनल बॉडीगार्ड थे और उनके साथ कई देशों की यात्रा पर जा चुके थे।
नेताजी से जुड़े बताए थे ये किस्से
कर्नल निजामुद्दीन ने बताया था कि आजाद हिंद फौज के गठन के साथ नेताजी ने लोगों को रंगून में इकट्ठा होने को कहा था। जुलाई 1943 को बर्मा, सिंगापुर, रंगून के प्रवासी-भारतीयों ने फंड के लिए 26 बोरे सोने, चांदी, हीरे-जवाहरात और पैसों से नेताजी को तराजू में तौल दिया था। 18 अगस्त 1945 को जिस समय नेताजी के मौत की खबर रेडियो पर चली, उसे वह नेताजी के साथ ही बैठकर वर्मा के जंगल में सुन रहे थे।
एक दिन में जमा हुए थे 20 करोड़ रुपए
निजामुद्दीन के बताया था, 'हमने पीठ पर लादकर बोरों को कोषागार में रखा था। सबने शपथ ली थी कि देश की आजादी के लिए सब कुछ कुर्बान कर देंगे। लोगों का स्नेह देखकर नेताजी भावुक हो उठे थे।' 9 जुलाई 1943 को नेताजी ने नारा दिया, 'करो सब न्योछावर बनो सब फकीर।' इस नारे के बाद रंगून में आजाद हिंद फौज बैंक में एक दिन में 20 करोड़ रुपए जमा हो गए। इसके बाद अक्टूबर 1943 में आजाद हिंद सरकार को मान्यता मिल गई।
आगे की स्लाइड में पढ़िए, कितनी बार वेश बदलते थे नेताजी...
नेताजी दिन में दो बार बदलते थे वेश
- नेताजी को धोती-कुर्ता और गुलाबी गमछा बहुत पसंद था। फौज के गठन के बाद वो सैनिक वेश में रहते थे।
- वह 24 घंटे में वो दो बार कपड़े बदलते थे। रात को सोते समय भी वो अक्सर बिना किसी को बताए अपना स्थान बदल देते थे।
- अपने अधिकारियों से भी वह सीक्रेट प्लान शेयर नहीं करते थे।
- उस समय हिटलर ने मेरे बारे में जानकारी मांगी थी, तो नेताजी ने बताया था कि मेरे बॉडीगार्ड और अच्छे निशानेबाज हैं।
- नेताजी ने जब हिटलर से इस मुद्दे पर जिक्र किया तो हिटलर ने वादा किया कि अगले अंक में इस बात पर पूरा ध्यान दिया जाएगा।
- 1969 में कर्नल निजामुद्दीन का परिवार आजमगढ़ ढकवा गांव आया तो रेडियो और पिस्तौल को रिश्तेदारों ने रख लिया।आगे की स्लाइड में पढ़िए, कितनी थी आजाद हिंद फौज की तनख्वाह...
आजादी के पहले का कर्नल निजामुद्दीन का ड्राइविंग लाइसेंस।
आजाद हिंद फौज की तनख्वाह और कैसी थी करंसी ?
- निजामुद्दीन बताते हैं कि आजाद हिंद फौज की करंसी को मांडले कहते थे।
- ये बर्मा में छपा करती थी।
- उनकी पगार उस समय मात्र 17 रुपए थी।
- फौज में एक पैसा में 2 कड़ा और दो कड़ा में चार पाई हुआ करता था।
- साल 1943 में आजाद हिंद बैंक ने पहली बार 500 के नोटों को छापा था, जिस पर नेताजी की तस्वीर बनी थी।
- उस दौरान लेफ्टिनेंट को 80 रुपए पगार मिलती थी।
- बर्मा में जो अधिकारी फौज में थे उनको 230 रुपए मिलते थे।
- लेफ्टिनेंट कर्नल को 300 रुपए मिलते थे।
नेता जी ने बनाया था अपना इंटेलिजेंस ग्रुप
- निजामुद्दीन बताते हैं कि नेताजी का गुप्तचर विभाग भी था, जिसके वो प्रमुख अधिकारी थे।
- गुप्तचर विभाग का नाम बहादुर ग्रुप था। इसमें बहुत कम अधिकारी और सैनिक थे।
- गुप्तचर विभाग सबसे अधिक सक्रिय ब्रिटिश जानकारियों को इकट्ठा करने में रहता था।
- इसका नेटवर्क कुछ महीनों में ही देश के कई इलाकों तक फैल गया।
- बहुत सी गुप्त बातों का जिक्र नेताजी रात को सोते समय करते थे।
- नेताजी कई बार पनडुब्बी से गुप्तचरों को सिंगापुर और बैंकाक भी भेजते थे।
क्या खाते थे नेताजी?
- फौज के गठन के बाद नेताजी अक्सर सेना के सभी सदस्यों के साथ बैठकर खाते थे।
- उनके बर्तन भी अलग नहीं होते थे।
- कभी-कभी सैनिकों को अपने हाथों से खाना भी परोसने लगते थे।
- वैसे तो वो शाकाहारी थे मगर कभी-कभी मछली खा लेते थे।
- उन्हें चावल सबसे ज्यादा पसंद थे।
सब्जियों में वो लौकी और भिंडी सबसे ज्यादा खाते थे।
बंगला खीर खाने में उन्हें खूब आनंद आता था।