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युवा कंधों पर कांग्रेस में जान फूंकने की चुनौती

raghvendra
Published on: 1 Aug 2023 10:48 AM GMT
युवा कंधों पर कांग्रेस में जान फूंकने की चुनौती
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: पिछले छह वर्षों में पूर्वांचल में पक्ष-विपक्ष दोनों भाजपा नजर आ रही है। ऐसे में प्रदेश में सत्ता का बनवास झेल रही कांग्रेस युवा कंधों के सहारे 2022 के विधानसभा चुनावों में मजबूत दस्तक देने का दावा कर रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ पूर्वांचल से ताल्लूक रखने वाले युवा चेहरों को संगठन में तरजीह देकर कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि अब कांग्रेस में संघर्ष करने वालों के अच्छे दिन आ गए हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि ये युवा चेहरे कांग्रेस की गुटबाजी को खत्म कर कैसे भाजपा, सपा और बसपा से दो-दो हाथ करते हैं। कैसे कोमा की स्थिति में पहुंच चुकी कांग्रेस में जान फूंकते हैं।

राहुल-प्रियंका दोनों की पसंद हैं लल्लू

यूपी कांग्रेस में जान फूंकने की कोशिशों में प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने संगठन में युवाओं को तरजीह दी है। मोदी-योगी की आंधी में पूर्वांचल कांग्रेस का झंडा बुलंद करने वाले कुशीनगर जिले के तमकुहीराज विधायक अजय कुमार लल्लू के हाथों कमान सौंपी गई है। धर्मबल, बाहुबल, धनबल से परे अजय कुमार लल्लू की पहचान संघर्ष की रही है। गन्ना किसान, मुसहर, नदियों के कटान से बर्बाद हो रहे गांव से लेकर विधानसभा में मुद्दों की राजनीति करने वाले अजय लल्लू के सामने चुनौतियों का पहाड़ नजर आता है।

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लल्लू को उन कांग्रेसियों के बीच काम करने की चुनौती है जिन्होंने सत्ता का सुख भोगा है। जो बदले हालात में बदलाव तो चाहते हैं, लेकिन अपने एसी से बाहर नहीं निकलना चाहते। अखबारों में लोकल से लेकर लाहौर तक के मामलों में बयान देकर उनकी सियासी कोरम पूर्ति हो रही है। लल्लू प्रियंका के साथ राहुल गांधी की भी पसंद हैं। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले प्रियंका गांधी के प्रदेश की सियासत में एंट्री के साथ ही लल्लू मजबूती से लगे हुए हैं। छात्र राजनीति की उपज अजय लल्लू 2012 में तब सुर्खियों में आए जब सपा की आंधी में तमकुहीराज विधानसभा से कांग्रेस का परचम लहराया।

संघर्षों के दम पर आगे बढ़े लल्लू

सेवरही निवासी शिवनाथ प्रसाद के पुत्र अजय लल्लू की पारिवारिक पृष्ठभूमि सामान्य है। दो दशक पहले वे तब सुर्खियों में आए जब 1999 में कुशीनगर के किसान पीजी कॉलेज छात्रसंघ चुनाव में महामंत्री चुने गए। संर्घषों के बल पर अगले ही साल 2000 में छात्रसंघ के अध्यक्ष पद पर काबिज हुए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हिन्दू युवा वाहिनी के समानान्तर लल्लू से स्थानीय युवाओं के बल पर एकता परिषद का गठन कर सियासी जमीन तैयार की। 2007 में लल्लू ने निर्दलीय पर्चा भरा, लेकिन वह चुनाव हार गए। इसके बाद ही वह कुशीनगर की सियासत में मजबूत दखल रखने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री कुंवर आरपीएन सिंह के साथ जुड़ गए। कुंवर आरपीएन सिंह के प्रयास से ही 2012 में उन्हें कुशीनगर की तमकुहीराज विधानसभा सीट के कांग्रेस का टिकट मिला। कांग्रेस के टिकट पर पहले ही चुनाव में 17 हजार से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल कर वह कांग्रेस के बड़े नेताओं की नजर में आ गए। वहीं 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में लल्लू पूर्वांचल में कांग्रेस के टिकट पर जीतने वाले इकलौते विधायक बने। कांग्रेस ने लल्लू को कांग्रेस विधानमंडल दल का नेता बनाया है।

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गुटबाजी ने निपटने की चुनौती

पूर्वांचल में मौजूदा दौर में कांग्रेस भाजपा, सपा और बसपा के कैडर की चुनौती लेने में सक्षम नहीं है। पार्टी में गुटबाजी चरम पर है। कमोवेश सभी जिलों में पार्टी कई धड़ों में बंटी हुई है। गोरखपुर में पार्टी हाईकमान के निर्देश पर होने वालों आंदोलनों में भी जिला और महानगर कांग्रेस कमेटियां अगल-अलग आंदोलन करती नजर आती हैं। पूर्व जिलाध्यक्ष सैयद जमाल अहमद को लामबंदी कर ही पद से हटाया गया। महिला कांग्रेस की निवर्तमान अध्यक्ष के खिलाफ लेटर बम फोड़े गए। मुख्यमंत्री के गृह जनपद गोरखपुर में कांग्रेस की सक्रियता को इसी बात से समझा जा सकता है कि वह पिछले दो साल से बिना कार्यालय के है। कभी पूर्व मेयर प्रत्याशी डॉ.सुरहिता करीम के नर्सिंग होम में मीटिंग होती है तो कभी वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री तलत अजीज के आवास पर। वहीं महराजगंज में सुप्रिया श्रीनेत और निवर्तमान जिलाध्यक्ष आलोक प्रसाद का गुट अलग-अलग दिखता है।

एसी कमरों वालों को तरजीह नहीं

संतकबीर नगर में पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सपा और बसपा के बैनर पर चुनाव लड़ चुके भालचंद यादव को कांग्रेस का टिकट दिया था। बीते दिनों भालचंद के निधन पर कांग्रेसियों से अधिक सपाइयों की सक्रियता दिख रही थी। कुशीनगर में खुद कुंवर आरपीएन सिंह की मौजूदगी में गुटबाजी साफ दिखती है। नवनिर्वाचित महासचिव विश्वविजय सिंह का कहना है कि अब कांग्रेस राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के नेतृत्व में आगे बढ़ रही है। पार्टी में आंदोलन से उपजे नेताओं को ही तरजीह मिलेगी। एसी कमरों में बैठक कर राजनीति करने वालों को नई कांग्रेस में कोई जगह नहीं मिलेगी।

सुप्रिया श्रीनेत को बनाया राष्ट्रीय प्रवक्ता

महराजगंज लोकसभा सीट से दो बार सांसद का चुनाव जीतने वाले हर्षवर्धन की बेटी सुप्रिया श्रीनेत को पिछले दिनों कांग्रेस ने राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद पर बिठाया था। सुप्रिया श्रीनेत एक नेशनल बिजनेज चैनल में एंकर थीं। पिछले दिनों हुए लोकसभा चुनाव में वह नौकरी छोडक़र कांग्रेस के टिकट पर महराजगंज सीट से चुनाव लड़ी थीं मगर उन्हें करारी हार झेलनी पड़ी। युवा और आर्थिक मामलों की जानकार को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाकर कांग्रेस ने संदेश दिया है कि वह युवाओं पर भरोसा कर रही है।

विश्वविजय को संघर्ष का इनाम

कांग्रेस ने जनसंघर्षों से सुर्खियों में आने वाले विश्वविजय सिंह को महासचिव बनाया है। उन्होंने छात्र राजनीति की शुरूआत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संरक्षकत्व वाले दिग्विजयनाथ डिग्री कॉलेज से शुरू की। विश्वविजय दिग्विजयनाथ डिग्री कॉलेज छात्रसंघ चुनाव में उपाध्यक्ष के पद पर बड़े अंतर से जीते। इसके बाद 1994 में उन्होंने दिग्विजयनाथ डिग्री कॉलेज छात्रसंघ चुनाव में अध्यक्ष पद का चुनाव जीता। विश्वविजय सिंह ने गोरखपुर विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में कार्यकारिणी सदस्य का चुनाव भी 1998 में जीता था। विश्वविजय पिछले दो दशक से गंगा की सहायक नदी आमी के प्रदूषण को लेकर संघर्ष कर रहे है। आमी बचाओ मंच के बैनर तले उनके संघर्षों का ही नतीजा है कि एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण में प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों के खिलाफ 25-25 लाख रुपये का जुर्माना किया। प्रदूषण को लेकर एनजीटी के कड़े रुख का नतीजा है कि गीडा प्रशासन को सीईटीपी की कार्ययोजना तैयार करनी पड़ी। आमी नदी को नमामि गंगे योजना में शामिल कराने का श्रेय भी विश्वविजय को ही जाता है। वहीं प्रियंका गांधी ने महराजगंज में फरेंदा विधानसभा से चुनाव लड़ चुके वीरेन्द्र चौधरी को प्रदेश कमेटी में उपाध्यक्ष बनाया है। वीरेन्द्र चौधरी के मनोनयन के पीछे जातीय समीकरण को वजह माना जा रहा है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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