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कांट्रेक्ट मैरिज इस्लाम की नजर में हराम - आरिफ कासमी
देश की सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय ने जनहित याचिका दाखिल कर मुता व मिस्यार निकाह, निकाह हलाला और बहुविवाह को रद्द करने की मांग की है। इस पर देवबंदी उलेमा ने कहा कि मुता व मिस्यार निकाह (निश्चित अवधि के लिए शादी का करार) यानी कांट्रेक्ट मैरिज इस्लाम की नजर में हराम है।
सहारनपुर:देश की सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय ने जनहित याचिका दाखिल कर मुता व मिस्यार निकाह, निकाह हलाला और बहुविवाह को रद्द करने की मांग की है। इस पर देवबंदी उलेमा ने कहा कि मुता व मिस्यार निकाह (निश्चित अवधि के लिए शादी का करार) यानी कांट्रेक्ट मैरिज इस्लाम की नजर में हराम है। और जहां तक बात एक से ज्यादा निकाह की है तो वह मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा हुआ मामला है। इसमें किसी को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
शनिवार को अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर किये जाने पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए दारुल उलूम वक्फ के वरिष्ठ मुफ्ती मोहम्मद आरिफ कासमी ने कहा कि पुराने समय में अरब मुल्कों में निश्चित अवधि का करार कर निकाह कर लिया जाता था। बाद में हजरत मोहम्मद साहब ने इसे हराम करार दे दिया था। कहा कि इस्लाम मुता यानी कांट्रेक्ट को निकाह पूरी तरह गलत मानता है।जबकि मिस्यार निकाह का इस्लाम धर्म में कोई वजूद ही नहीं है।
मुफ्ती आरिफ कासमी ने बहुविवाह पर कहा कि इस्लाम में एक से ज्यादा निकाह कुछ शर्तों के साथ जायज है, सबसे बड़ी शर्त दोनों पत्यिों को बराबर हुकूक देना है। हलाला निकाह पर मौलाना ने कहा कि लोगों ने हलाला की गलत व्याख्या निकाल ली है जो कि सरासर गलत है। मौलाना ने कहा कि एक से ज्यादा निकाह मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा मामला है, इस पर किसी को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। क्योंकि देश के संविधान ने सबको धार्मिक आजादी के साथ जीना का अधिकार दिया है।
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