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कागज में मिल रहा ऑक्सीजन, हकीकत में कोरोना मरीजों का घुट रहा दम

बस्ती में कोरोना संक्रमितों के लिए 763 बेड ही है। इसमें कैली हास्पिटल के 350 और जिला अस्पताल के 200 बेड भी शामिल हैं।

Amril Lal
Reporter Amril LalPublished By Dharmendra Singh
Published on: 2 May 2021 1:10 AM IST (Updated on: 2 May 2021 1:34 PM IST)
Oxygen Cylinder
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आॅक्सीजन सिलेंडर ले जाते दो युवक (प्रतीकात्मकर तस्वीर: न्यूजट्रैक)

बस्ती: उत्तर प्रदेश में सरकार के दावे सिर्फ कागजों में ही नजर आ रहा है। प्रदेश के अलग-अलग जिलों से आ रही तस्वीरें सरकार के दावे को झूठा साबित कर कर रही हैं। प्रदेश की सरकार का कहना है कि अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है।

बस्ती में कोरोना संक्रमितों के लिए 763 बेड ही है। इसमें कैली हास्पिटल के 350 और जिला अस्पताल के 200 बेड भी शामिल हैं। जबकि कोरोना संक्रमितों की संख्या 1825 है। अब इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है भर्ती करने से लेकर इलाज और ऑक्सीजन तक के लिए मरीजों और उनके परिजनों को किस तरह व्यवस्था से जूझना पड़ रहा है। एक हजार से अधिक कोरोना के मरीज घर में ही डाक्टर की सलाह पर इलाज और बचाव कर रहे हैं।
अस्पताल में बेड के लिए विधायक और सांसद के पास तो लोग गुहार लगा ही रहे हैं। प्रशासनिक और चिकित्सा विभाग के अफसरों की भी पैरवी चल रही है। बेड मिलने के बाद संकट कम नहीं हो रहा है दवा और ऑक्सीजन के लिए जूझना पड़ रहा है। कई मरीज तो ऐसे हैं जो संकट की स्थिति में ऑक्सीजन सिलेंडर खरीद कर रिजर्व में रखे हुए हैं। बाहर की बात छोड़िए सरकारी अस्पताल में रेमडेसिविर इंजेक्शन और ऑक्सीजन कंसलटेटर नहीं मिल पा रहे हैं। बाजार में दवाओं तक के लिए पैरवी करानी पड़ रही है। 3400 रुपये का रेमडेसिविर इंजेक्शन ब्लैक में 40-50 हजार में बेचा जा रहा है। कुल मिलाकर जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था बेपटरी हो गई है। लचर व्यवस्था से कोरोना से जंग लड़ी जा रही है। कागजों में
ऑक्सीजन
व दवाओं की उपलब्धता दिखाई जा रही है मगर हकीकत में ऑक्सीजन के बिना मरीजों का दम घुट रहा है। कोरोना संक्रमण का फैलाव तेजी से हो रहा है।

कोरोना मरीजों के परिजनों ने बताई आप-बीती

कलवारी थानाक्षेत्र के गोविदपुर के बाबूराम ने बताया कि उनकी पत्नी अंजली को सांस लेने में दिक्कत है। चार दिन से जिला अस्पताल में भर्ती कराया है। मगर ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा है। कोई चेक करने नहीं आ रहा है। यहां पूरी तरह से अव्यवस्था फैल है। पूछताछ करने पर रेफर करने की धमकी दी जा रही है। केस- दो
कोतवाली थानाक्षेत्र के बेलवाडाडी निवासी भोलू श्रीवास्तव ने बताया कि उनकी माता शीला श्रीवास्तव की तबीयत खराब है। उनको बुखार व सांस लेने में दिक्कत है। वह उन्हें लेकर पहले निजी अस्पताल फिर जिला व कैली हास्पिटल में गए। मगर भर्ती नहीं किया गया। मजबूरन घर पर ही देखभाल कर रहे हैं।
ऑक्सीजन
न मिलने से घर पर दिक्कत आ रही है। केस- तीन
सिविल लाइन निवासी शिक्षक शैलेंद्र कुमार श्रीवास्तव की तबीयत खराब है। उनकी पत्नी अंजू श्रीवास्तव ने बताया कि 27 अप्रैल से लगातार सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती कराने के लिए प्रयास करती रही। मगर किसी अस्पताल में भर्ती नहीं लिया गया। 29 अप्रैल की रात 9 बजे ऑक्सीजन लेवल कम हो गया। एंबुलेंस की मदद मांगी गई वह भी नहीं मिला। आरोप लगाया कि कैली के अधिकारियों के साथ ही कोविड हेल्पलाइन नंबरों पर लगातार फोन करने पर फोन नहीं उठाया गया। भर्ती न करने पर डायल 112 को भी फोन किया। आश्वासन मिला कि प्रतीक्षा करें, पुलिस आपका सहयोग करेगी। लेकिन कुछ नहीं हुआ। केस-चार
पाकड़डीहा की रेशमा देवी को स्वजन भर्ती कराने के लिए दो दिन तक लेकर वाहन में घूमते रह गए। आखिरकार अस्पताल में जगह नहीं मिली और वाहन में ही ऑक्सीजन के अभाव में तड़प-तड़प कर मर गई। स्वजन का आरोप है रुधौली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती नहीं किया गया, रेफर कर दिया गया। कैली हास्पिटल गए वहां से जिला अस्पताल भेज दिया गया। जिला अस्पताल में बीमार महिला को भर्ती कराने के लिए स्वजन मनुहार करते रहे। दो घंटे बाद भी जगह नहीं मिली और वाहन में मौत हो गई।
फिलहाल जिले के स्वास्थ्य व्यवस्था पर जब इस संबंध में स्वास्थ्य अधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई, तो मुख्य चिकित्सा अधिकारी बस्ती के मोबाइल नंबर पर कई बार फोन लगाया गया, लेकिन बार-बार फोन बिजी कर दिया।
वहीं जब इस संबंध में जिला अधिकारी बस्ती सौम्या अग्रवाल के मोबाइल नंबर पर फोन लगाया गया तो उनका फोन उनका स्टोनों ने उठाया और कहा कि मैडम बिजी हैं और मीटिंग कर रही हैं। जब खाली होंगी तो मीटिंग के बाद बात करा देंगे। जिला अधिकारी बस्ती सौम्या अग्रवाल कभी भी सरकारी नंबर अपना नहीं उठाती हैं ना ही किसी मुद्दे पर बात करती हैं सिर्फ उनका फोन उनका स्टोनों ही उठाता है। जिला अधिकारी बस्ती मीडिया के सवालों से बचती नजर आती हैं।




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Dharmendra Singh

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