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Coronavirus: टूटने लगा है डॉक्टरों का मनोबल, तीसरी लहर को कैसे जीतेगी सरकार

Coronavirus: कोरोना से निपटने में हो रही चूक के चलते डॉक्टर्स हताश हो रहे हैं। जिससे उनका मनोबल टूटता जा रहा है।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shreya
Published on: 22 May 2021 11:10 AM IST
Coronavirus: टूटने लगा है डॉक्टरों का मनोबल, तीसरी लहर को कैसे जीतेगी सरकार
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डॉक्टर (सांकेतिक फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Coronavirus: कोविड-19 महामारी से निपटने में सरकारें जी जान से जुटी हैं लेकिन इससे निपटने की लड़ाई में कहीं बड़ी चूक हो रही है। जिसमें हमारे फ्रंट लाइनर योद्धा डॉक्टर्स (Doctors) उपेक्षित कुंठित और हताश हो रहे हैं। डॉक्टरों के बीच से ऐसी बातें आ रही हैं कि सरकार ने इस स्वास्थ्य इमरजेंसी (Health Emergency) को प्रशासनिक इमरजेंसी में बदल दिया है जो कि बड़ी चूक है। केंद्र सरकार से लेकर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री तक इसमें जिलाधिकारियों से बात कर रहे हैं लेकिन अग्रिम मोर्चे पर तैनात डॉक्टरों की सुध नहीं ली जा रही है जो कि यह जानते हुए कि मरीज कोरोना संक्रमित (Corona Infected) है उसकी जान बचाने को जूझ रहे हैं, संपर्क में आ रहे हैं। संक्रमित हो रहे हैं।

डॉक्टरों को निर्धारित ड्यूटी के बाद क्वारंटीन अवधि (Quarantine Period) भी पूरी करने को नहीं मिल रही है, जिसके चलते उनके परिवार संक्रमित हो रहे हैं। डॉक्टरों के संक्रमित होने पर उनके उपचार के लिए किसी अस्पताल में बेड भी रिजर्व नहीं हैं। जिसके चलते खासकर उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पीएमएस संवर्ग में असंतोष बढ़ रहा है। तमाम डॉक्टरों ने ऑफ द रिकॉर्ड (Off The Record) बात करते हुए ऐच्छिक सेवानिवृत्ति (Retirement) पर जाने का मन बना लिया है। डॉक्टरों का कहना है कि आईएएस जमीनी हकीकत जाने बगैर समीक्षा बैठकों के नाम पर डॉक्टरों को जलील कर रहे हैं, जिससे पानी नाक के ऊपर जा रहा है।

हाल के दिनों में प्रदेश में हुई कुछ घटनाएं इसकी गवाह हैं जिसमें सबसे ताजा मामला कोरोना की इस दूसरी लहर के समय चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ केके गुप्ता का तीन माह के अवकाश जाना है जिनकी जगह किसी डॉक्टर को तैनात न करके यह जिम्मेदारी एक आईएएस को दे दी गई है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि डॉ. गुप्ता की इसी दौरान सेवानिवृत्ति भी हो जाएगी।

कोरोना की पहली लहर में भी अधोमानक पीपीई किट मामला गरमाया था, इस संबंध पत्र के वायरल होने जाने पर सरकार ने इस बात की जांच तो एसआईटी से शुरू करा दी थी कि पत्र लीक कैसे हुआ लेकिन अधोमानक पीपीई किट कैसे और क्यों सप्लाई की गईं इस पर आज तक कोई जांच नहीं हुई।

(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

डॉक्टरों की सुनने वाला कोई नहीं

डाक्टरों का कहना है कि प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक जिलाधिकारियों से बात करके फीड बैक ले रहे हैं लेकिन डॉक्टरों की कोई नहीं सुन रहा उनके साथ दोयम दर्जे के नागरिकों के जैसा दुर्व्यवहार किया जा रहा है।

उन्नाव में डॉक्टरों का इस्तीफा उत्पीड़न की एक कड़ी

कोरोना महामारी की दूसरी लहर में ही इलाज के संकट के बीच उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में 14 सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारियों का अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी को इस्तीफा सौंपा जाना इसी उत्पीड़न की एक कड़ी है। यह कदम ऐसे वक्त में उठाया जब जिले में औसतन 100 नए कोरोना मरीज प्रतिदिन सामने आ रहे थे।

इस्तीफा देने वाले डॉक्टरों ने डीएम और सीएमओ पर तानाशाही और बदजुबानी का गंभीर आरोप लगाया था। हालांकि बाद में सरकार ने डॉक्टरों को इस्तीफा वापस लेने के लिए राजी कर लिया लेकिन यह टकराव के हालात को उजागर करता है।

क्या है डॉक्टरों का कहना?

डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना का ग्राफ हमारे अथक प्रयासों से नीचे गिरा है। जबकि आईएएस संवर्ग इसे अपने प्रयास बताता है। दूसरी तरफ दवाइयों और संसाधनों की कमी के चलते डॉक्टर तीमारदारों से रोज बवाल झेलते हैं। कई बार बात मारपीट तक पहुंच जाती है।

डॉक्टरों का यह भी कहना है कि वे संकट काल में सीमित संसाधनों के बीच कांट्रैक्ट ट्रेसिंग, इलाज और अन्य सेवाओं को संचालित करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। कई डॉक्टर संक्रमित हो चुके हैं, कई की जान जा चुकी है। इन परिस्थितियों में सभी प्रभारी चिकित्सा अधिकारी अपने काम में डटे हुए हैं। लेकिन प्रशासनिक अधिकारी बिना किसी स्पष्टीकरण के कार्रवाई कर रहे हैं और बदजुबानी कर रहे हैं।

डॉक्टर (सांकेतिक फोटो साभार- सोशल मीडिया)

चिकित्सकों के साथ हो रही दुर्व्यवहार की घटनाएं

इसी तरह मुजफ्फरनगर जनपद के स्वास्थ्य विभाग में तब हड़कंप मच गया था जब 10 सरकारी चिकित्सकों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया था। सभी चिकित्सकों ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी पर गंभीर आरोप लगाए थे। यहां भी डॉक्टरों की यही शिकायत थी कि चिकित्सकों के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है। डॉक्टर इस व्यवहार से क्षुब्ध हैं व मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं।

ऐसे ही एक बानगी है कानपुर का मामला जिसमें डॉक्टर नीरज को थाने से निजी मुचलके पर छोड़ा गया था। डॉ. नीरज का कहना था कि पिछले साल उन्होंने कंट्रोल रूम में काम देखा था। कंट्रोल रूम में रैपिड रिस्पांस टीम के प्रभारी के कोरोना संक्रमित होने पर दो दिन पहले ही उन्हें यहां की जिम्मेदारी दी गई थी। अभी वह व्यवस्थाओं को समझ कर अमलीजामा पहना ही रहे थे कि तभी डीएम ने बैठक का आयोजन कर दिया।

बैठक में रैपिड रिस्पांस टीम भेजने में लापरवाही और कम किट बांटे जाने की बात कह कर उन्होंने नाराजगी जताई। डॉक्टर नीरज अपना स्पष्टीकरण दे ही रहे थे कि अचानक डीएम भड़क गए और उन्होंने अपने स्कॉट से डॉ. नीरज को थाना स्वरूपनगर भिजवा दिया। डॉ नीरज का आरोप है कि उनकी बात को ठीक से नही सुना गया। एटा, हाथरस आदि से भी इसी तरह के मामले आए हैं।

अब टूट रहा मनोबल

डॉक्टरों का कहना है कि इन हालात में जबकि वह कोरोना की पहली और दूसरी लहर में अग्रिम मोर्चे पर मुस्तैदी से डटे रहे हैं ऐसे में अब तीसरी लहर चुनौती के रूप में सामने है तब उनका मनोबल टूट रहा है। सरकार को समझना चाहिए कि टूटे मनोबल के सिपाहियों से जंग कैसे जीती जा सकेगी।



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