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भ्रष्टाचार केस : LDA के पूर्व उपाध्यक्ष को राहत, एसआईटी की अंतिम रिपोर्ट खारिज

सीबीआई के विशेष जज एमपी चौधरी ने धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के एक चर्चित मामले में एलडीए के तत्कालीन उपाध्यक्ष बीबी सिंह, अपर इंडिया कूपर पेपर मिल्स लिमिटेड के तत्कालीन प्रबंध निदेशक यूसी पारिख और मेसर्स आरिफ इंडस्ट्रीज लिमिटेड के तत्कालीन चेयरमैन और प्रबंध निदेशक एसएम आरिफ व अन्य को क्लीन चिट देते हुए दाखिल की गई एसआईटी की अंतिम रिपोर्ट खारिज कर दी है और केस की अग्रिम विवेचना के आदेश दिए हैं।

tiwarishalini
Published on: 30 Oct 2017 8:06 PM GMT
भ्रष्टाचार केस : LDA के पूर्व उपाध्यक्ष को राहत, एसआईटी की अंतिम रिपोर्ट खारिज
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लखनऊ : सीबीआई के विशेष जज एमपी चौधरी ने धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के एक चर्चित मामले में एलडीए के तत्कालीन उपाध्यक्ष बीबी सिंह, अपर इंडिया कूपर पेपर मिल्स लिमिटेड के तत्कालीन प्रबंध निदेशक यूसी पारिख और मेसर्स आरिफ इंडस्ट्रीज लिमिटेड के तत्कालीन चेयरमैन और प्रबंध निदेशक एसएम आरिफ व अन्य को क्लीन चिट देते हुए दाखिल की गई एसआईटी की अंतिम रिपोर्ट खारिज कर दी है और केस की अग्रिम विवेचना के आदेश दिए हैं।

उन्होंने इस मामले की अग्रिम विवेचना का आदेश देते हुए एसआईटी को कुछ अनसुलझे सवाल भी सुझाएं हैं। साथ ही एसआईटी को यथाशीघ्र पुर्न विवेचना का परिणाम कोर्ट में प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया।

भ्रष्टाचार का यह मामला मेट्रो सिटी की जमीन से जुड़ा है। जिस जमीन पर मेट्रो सिटी का निर्माण हुआ है, एक अप्रैल, 1942 को वह अपर इंडिया कूपर पेपर मिल्स लिमिटेड को 30 साल के लिए पट्टे पर दी गई थी। शर्तों के मुताबिक, 30-30 साल के लिए दो बार पट्टे की मियाद बढ़ाई जा सकती थी।

अदालती पत्रावली के मुताबिक, 20 जून 2003 को अपर इंडिया कूपर पेपर मिल्स लिमिटेड ने एक विधि विरुद्ध इकरारनामा के तहत पट्टे पर दी गई करीब 72 बीघे की जमीन का विभाजन कर दिया। मेसर्स आरिफ इंडस्ट्रीज को 22 आवासीय टावर, 35 दुकानें और गैराज के निर्माण के लिए पट्टे की जमीन दे दी। जिसमें एलडीए की भी संलिप्तता पाई गई।

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लखनऊ के तत्कालीन मंडलायुक्त के निर्देश पर अपर आयुक्त बालकृष्ण त्रिपाठी ने इस अनियमितता की जांच की। 15 अक्टूबर, 2007 को जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए उन्होंने पट्टे वाली जमीन पर निर्माण के लिए स्वीकृत मानचित्र निरस्त करने, अनाधिकृत रुप से किए गए निर्माण को सील करने व दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की भी संस्तुति की थी। 05 दिसंबर, 2007 को एलडीए के तत्कालीन नजूल अधिकारी नंदलाल सिंह ने उनकी जांच रिपोर्ट के आधार पर इस मामले की एफआईआर दर्ज कराई थी।

विशेष जज एमपी चैधरी ने एसआईटी की अंतिम रिपोर्ट को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा है कि यह न सिर्फ शासन को धोखा देने वाला है बल्कि फ्लैट के खरीदारों को भी धोखा दिया गया है।

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उन्होंने अपने विस्तृत आदेश में कहा है कि अपर इंडिया कूपर पेपर मिल्स लिमिटेड को यह जमीन पट्टे पर किस उद्देश्य के लिए दी गई थी, एक अलग मसला है। लेकिन, पट्टा विलेख में दर्ज विवरण से स्पष्ट है कि यह जमीन आवासीय भवन बनाकर बेचने के लिए नहीं दी गई थी।

उन्होंने अंतिम रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा है कि पत्रावली पर उपलब्ध प्रपत्रों व विवेचक द्वारा संकलित साक्ष्यों के अवलोकन से यह प्रतीत होता है कि अपर इंडिया ने पट्टे की शर्तो के विपरीत कार्य किया है। जिन शर्तो पर पट्टे की जमीन उसे दी गई थी, उन्हीं शर्तो पर उसे जमीन का उपयोग करना चाहिए था।

यदि शर्तो से मुक्त होना चाहता था, तो उसे फ्री होल्ड की निर्धारित प्रक्रिया अपनानी चाहिए थी। लेकिन, ऐसा नहीं किया गया। बगैर पट्टादाता की अनुमति के जमीन का इकरारनामा करके जमीन का विभाजन कर दिया गया। बिना अनुमति के मेट्रो सिटी के रुप में फ्लैट का निर्माण किया गया और उसे बेचा गया।

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प्रपत्रों से यह भी प्रतीत होता है कि भवन व दुकानों के निर्माण के लिए बिना सरकार की अनुमति के मानचित्र भी स्वीकृत कर लिया गया। विशेष जज ने अपने आदेश में कहा है कि इस पूरी कार्यवाही को रोकने का उत्तरदायित्व एलडीए का था लेकिन उसने समुचित कार्यवाही नहीं की।

कोर्ट ने पाया कि विवेचना के दौरान ऐसे कई बिन्दू आएं, जो विधि विरुद्ध व अनुचित कार्यवाही की ओर इशारा करते थे। लेकिन विवेचक द्वारा इन बिन्दूओं पर अपना स्पष्ट अभिमत प्रस्तुत नहीं किया गया।

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