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जुर्माना चुकाकर सूचना देने से नहीं बच पाएंगे जन सूचना अधिकारी : कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनउ खंडपीठ ने कहा है कि भले ही सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जुर्माना चुकाने पर जनसूचना अधिकारी को सूचना देने के लिए बाध्य न करने संबधी प्रावधान हों परंतु संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अदालत जन सूचना अधिकारी से यह स्पष्टीकरण मांग सकता है कि आखिर वे कौन सी परिस्थितियां है जिनके तहत जनसूचना अधिकारी या राज्य सरकार का कोई अन्य अधिकारी राज्य सूचना आयोग के सूचना मुहैया जाने के बावत पारित आदेश का अनुपालन नहीं कर रहा है।
लखनऊ : इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनउ खंडपीठ ने कहा है कि भले ही सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जुर्माना चुकाने पर जन सूचना अधिकारी को सूचना देने के लिए बाध्य न करने संबधी प्रावधान हों परंतु संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अदालत जन सूचना अधिकारी से यह स्पष्टीकरण मांग सकता है कि आखिर वे कौन सी परिस्थितियां है जिनके तहत जनसूचना अधिकारी या राज्य सरकार का कोई अन्य अधिकारी राज्य सूचना आयोग के सूचना मुहैया जाने के बावत पारित आदेश का अनुपालन नहीं कर रहा है।
इसी के साथ कोर्ट ने सुल्तानपुर जिले के मोतिगरपुर ब्लाक के खंड विकास अधिकारी व वहीं के मौदहा ग्राम पंचायत के जनसूचना अधिकारी से जवाब तलब किया है कि राज्य सूचना आयोग के आदेश के बावजूद याची केा मांगी गयी सूचना क्यों नही उपलब्ध करायी जा रही है। मामले की अगली सुनवायी 28 नवंबर को होगी। यह आदेश जस्टिस डी के उपाध्याय और जस्टिस राजेश सिंह चौहान की बेंच ने अब्दुल हक की याचिका पर पारित किया।
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याची का कहना था कि उसके द्वारा मांगी गयी सूचना उसे उपलब्ध नहीं करायी गयी। जिस पर उसने राज्य सूचना आयेाग में अपील दायर की। अपील पर सुनवायी के बाद आयोग ने 12 मई 2017 को न केवल जन सूचना अधिकारी को मांगी गयी सूचना उपलब्ध कराने का आदेश दिया, अपितु जन सूचना अधिकारी पुष्पेंद्र कुमार वर्मा पर 25 हजार रुपए का जुर्माना भी ठोंक दिया। जुर्माना वसूलने के आयोग के रजिस्ट्रार ने सुल्तानपुर के जिलाधिकारी को 13 सितंबर 2017 को पत्र भी लिखा है। परंतु, इतना सब के बावजूद उसे मांगी गयी सूचना नहीं उपलब्ध करायी जा रही है।
याचिका का विरेाध करते हुए आयोग के वकील ने कहा कि सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आयोग द्वारा मांगी गयी सूचना को उपलब्ध कराने का आदेश जनसूचना अधिकारी को देने के बाद यदि उक्त आदेश का पालन नहीं किया जाता तो आयोग को अधिकार है कि वह जन सूचना अधिकारी पर जुर्माना ठोंक सकता है। इस मामले में आयोग ने जुर्माना ठोंक दिया है। लिहाजा वह अब जन सूचना अधिकारी के खिलाफ और कोई आदेश पारित नहीं कर सकता। आयेाग की ओर से जोरदार तर्क दिया गया कि यह व्यवस्था मौजूदा अधिनियम और उसके तहत बने नियमों में है। जिसे केवल विधायिका ही परिवर्तित कर सकती है।
परिस्थितियों पर गौर करने के बाद कोर्ट ने कहा कि भले ही अधिनियम के तहत उसके हाथ बंधे हों। परंतु, संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत तो वह अपने अधिकारों का प्रयेाग कर जन सूचना अधिकारी से जवाब तलब कर सकता है कि आयोग का आदेश क्यों नही माना जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि मामला विशेष है। कोर्ट की मंशा थी कि अधिनियम की मंशा केवल जुर्माना वसूलना नहीं हो सकता क्योंकि ऐसे में तो मांगी गयी सूचना उपलब्ध नहीं करायी जा पायेगी।