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आयुष पाठ्यक्रम में नीट की मेरिट से दाखिले गलत, छात्रों के मौलिक अधिकार का हनन
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने हजारों आयुष छात्रों को राहत देते हुए राज्य सरकार द्वारा आयुष पाठयक्रम में सत्र 2017-18 के लिए नीट की मेरिट लिस्ट के अनुसार दाखिले लेने के निर्णय को गलत और छात्रों के मौलिक अधिकारों का हनन करार दिया है।
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने हजारों आयुष छात्रों को राहत देते हुए राज्य सरकार द्वारा आयुष पाठयक्रम में सत्र 2017-18 के लिए नीट की मेरिट लिस्ट के अनुसार दाखिले लेने के निर्णय को गलत और छात्रों के मौलिक अधिकारों का हनन करार दिया है।
कोर्ट ने सरकारी वकील को इस संबंध में राज्य सरकार से समुचित निर्देश प्राप्त कर उसे अवगत कराने का आदेश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 24 जुलाई को होगी।
यह आदेश जस्टिस डीके उपाध्याय की एकल सदस्यीय पीठ ने अमित कुमार और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
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क्या है मामला ?
राज्य सरकार ने 10 जुलाई 2017 को एक शासनादेश पारित करते हुए निर्णय लिया कि आयुष में दाखिले नीट की मेरिट लिस्ट के अनुसार होंगे। जबकि सीबीएसई ने नीट परीक्षा एलोपैथिक स्ट्रीम में दाखिले के लिए कराई थी।
इस आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर कर कहा गया कि नीट परीक्षा के विज्ञापन में स्पष्ट उल्लेख किया गया था कि उक्त परीक्षा एलोपैथिक स्ट्रीम में दाखिले के लिए कराई जा रही है।
विज्ञापन में यह नहीं कहा गया था कि आयुष में दाखिले भी नीट के द्वारा होंगे। नीट में भाग लेने के लिए आवेदन की अंतिम तारीख 1 मार्च 2017 थी।
कोर्ट ने क्या पाया ?
कोर्ट ने पाया कि 26 अप्रैल 2017 को केंद्र सरकार की ओर से राज्य सरकार को पत्र लिख कर कहा गया कि वर्ष 2017-18 के सत्र के लिए आयुष में दाखिले नीट की मेरिट लिस्ट से किए जाएं। हालांकि, केंद्र की ओर से यह भी छूट दी गई कि यदि 2017-18 के सत्र में यह संभव न हो तो 2018-19 के सत्र से इस व्यवस्था को अवश्य लागू कर दिया जाए।
कोर्ट ने क्या कहा ?
अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि 1 मार्च की अंतिम तारीख बीतने के इतने समय के बाद 10 जुलाई को उक्त शासनादेश जारी कर दिया गया। तमाम छात्र जो आयुष में दाखिला चाहते थे, उन्होंने नीट के लिए आवेदन नहीं किया था क्योंकि उन्हें यह जानकारी नहीं दी गई थी कि आयुष में भी दाखिला नीट की मेरिट लिस्ट के जरिये होगा। ऐसे छात्रों के लिए यह अप्रत्याशित फैसला था। कोर्ट ने कहा कि इसका परिणाम प्रभावित छात्रों के परीक्षा देने के मौलिक अधिकार के खंडन के रूप में हुआ। कोर्ट ने 10 जुलाई के सरकार के निर्णय को प्रथम दृष्टया तर्कहीन माना।