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अब अपराधियों की ख़ैर नहीं, लागू हुई फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक

raghvendra
Published on: 24 Jan 2020 12:33 PM IST
अब अपराधियों की ख़ैर नहीं, लागू हुई फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक
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रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: गूगल की मूल कंपनी अल्फाबेट के मुख्य कार्यकारी सुंदर पिचाई ने दबाव को स्वीकारते हुए यूरोपीय संघ के चेहरे की पहचान की तकनीक पर अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव का समर्थन कर दिया है क्योंकि यूरोपीय संघ को आशंका थी कि इसका इस्तेमाल गलत उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। इसके बावजूद भारत में फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक को मान्यता मिल गई है और हाईटेक अपराधियों की पहचान के लिए इसके इस्तेमाल को लेकर कदम भी उठा लिया गया है।

रेलवे स्टेशनों से होगी इसकी शुरुआत

इसकी शुरुआत देश की आईटी राजधानी कहे जाने वाले बेंगलुरू सहित मनमाड और भुसावल रेलवे स्टेशनों से की गई है। इन स्टेशनों पर फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम को लगाया गया है। सुंदर पिचाई ने भी थिंक टैंक ब्रिगेल द्वारा ब्रूसेल्स में आयोजित एक सम्मेलन में कहा कि मुझे लगता है कि फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम महत्वपूर्ण है। सरकारें इसके जरिये बिना देर किए समस्याओं से जल्दी निपट सकती हैं और एक रूपरेखा तैयार कर सकती हैं।

रेलवे नेटवर्क में लागू होगा सिस्टम

भारत में अभी इसे आंशिक रूप से लागू किए जाने के बावजूद इस पर जोरशोर से काम चल रहा है। परीक्षण होने के बाद इसे पूरे रेलवे नेटवर्क में लागू किया जाएगा। रेलवे बोर्ड ने निर्भया कोष का इस्तेमाल करते हुए 983 स्टेशनों में इस प्रणाली के लिए मंजूरी दे दी है। मिनी रत्न रेलटेल को इंटरनेट प्रोटोकॉल आधारित वीएसएस वीडियो एनालिटिक्स और फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम मुहैया कराने का काम सौंपा गया है। चीन में पहले से ही फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम का इस्तेमाल एयरपोर्ट की सिक्योरिटी, क्राइम और ट्रैफिक कंट्रोल के लिए किया जा रहा है।

अन्य शहरों में भी तकनीक का इस्तेमाल

भारत एक विशाल आबादी वाला देश है। ऐसे में इस सिस्टम का इस्तेमाल करके अपराधियों को पकडऩे में काफी मदद पाई जा सकती है। रेलवे स्टेशनों पर इसके इस्तेमाल से एक बात साबित हो गई है कि फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम लॉ एंड ऑर्डर के लिए बेहद उपयोगी है।

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इस बात की संभावना जताई जा रही है कि इस पर परीक्षण पूरे होते ही फेशियल रिकॉग्निशन तकनीकी का इस्तेमाल रेलवे के खांचे से बाहर निकलकर भारत के अन्य शहरों में भी किया जाएगा और कानून से बच रहे अपराधियों को पकड़ा जा सकेगा।

डिजटलीकरण का काम तेज

इस संबंध में जब कुछ सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों से बात की गई तो उनका कहना था कि फेशियल रिकॉग्निशन तकनीकी अपराधियों की पहचान और उन्हें पकडऩे में एक बढिय़ा कदम साबित हो सकता है क्योंकि आए दिन बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन जैसे भीड़भाड़ वाले स्थानों पर अपराधी सक्रिय रहते हैं और आपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया करते हैं। इस तकनीकी से पुलिस अपराधियों को पहचान कर उन्हें पकड़ सकेगी और जुर्म की घटनाओं में काबू पाया जा सकेगा।

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अधिकारियों ने बताया कि पुलिस के पास उपलब्ध अपराधियों के चित्र व अन्य ब्योरे का डिजटलीकरण करने का काम बहुत तेज गति से चल रहा है और जल्द ही इसके पूरा होने की उम्मीद है। इसके बाद यह प्रणाली पुलिस के पास बहुत सटीक हथियार होगी।

स्कूलों के पास भी हो तकनीक का इस्तेमाल

सामाजिक संगठनों का कहना है कि इस तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ रेलवे स्टेशनों पर ही नहीं बल्कि देश के प्रमुख चौराहों व स्कूलों आदि के आसपास भी किया जाना चाहिए। इससे अपराध भी कम होंगे और महिला सुरक्षा की स्थिति में भी सुधार होगा।

अपराधियों की हो सकेगी धरपकड़

यूरोपीय आयोग, जो यूरोपीय संघ के कार्यकारी के रूप में कार्य करता है, संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) पर गंभीरता से काम कर रहा है जो कि 18 पृष्ठ के प्रस्ताव पत्र के अनुसार गोपनीयता और डेटा अधिकारों पर मौजूदा नियमों को मजबूत करेगा। इसके एक हिस्से में सार्वजनिक क्षेत्र में चेहरे की पहचान तकनीक के इस्तेमाल पर पांच साल तक की मोहलत भी शामिल है। इससे यूरोपीय यूनियन को इसका दुरुपयोग रोकने के उपाय करने का समय मिल जाएगा। लेकिन भारत में लागू किए गए फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम की इस नवीनतम प्रणाली के चलते स्टेशनों पर घूमने वाले अपराधियों की पहचान की जा सकेगी। इसके अलावा फेशियल रिकग्निशन सिस्टम का सॉफ्टवेयर किसी अपराधी के बारे में सीधा आरपीएफ कमान केंद्र को अलर्ट कर देगा और वह तुरंत कार्रवाई करते हुए अपराध होने से पहले अपराधी को दबोच लेगा।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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