×

RS चुनाव का ये है गणित, प्रीति के मैदान में उतरने से क्रॉसवोटिंग तय

Rishi
Published on: 1 Jun 2016 1:12 AM IST
RS चुनाव का ये है गणित, प्रीति के मैदान में उतरने से क्रॉसवोटिंग तय
X

Anurag Shukla अनुराग शुक्ला

लखनऊः यूपी में राज्य सभा की 11 सीटों के लिए वोटिंग होनी तय हो गई है। मंगलवार को नामांकन के आखिरी दिन निर्दलीय उम्मीदवार प्रीति महापात्रा ने परचा भरकर निर्विरोध चुने जाने की प्रत्याशियों की उम्मीद तोड़ दी। 3 जून को नाम वापसी के बाद भी यही स्थिति रही, तो प्रीति यूपी का 10 साल का रिकॉर्ड तोड़ देंगी। मैदान में सभी उम्मीदवार डटे रहे तो क्रॉसवोटिंग भी तय मानी जा रही है।

साल 2006 के बाद से अब तक हुए पांच राज्य सभा चुनावों में किसी तरह का मतदान नहीं हुआ था। इससे पहले हर बार जितनी सीट, उतने ही प्रत्याशी आराम से संसद के उच्च सदन में पहुंच जाते थे।

कैसे होता है चुनाव?

राज्यसभा की 11 सीटों के लिए होने वाले इस चुनाव में 403 विधायक वोट डालते हैं। खास बात ये कि राज्य सभा के चुनाव में एंग्लो इंडियन मनोनीत विधायक वोट नहीं डालता। जबकि, विधान परिषद के 404 विधायक वोट देते हैं। एक सीट जीतने के लिए 34 वोट जरूरी होते हैं। ऐसे में प्रथम वरीयता मत और द्वितीय वरीयता मत मिलाए जाते हैं। पहले राउंड में जीतने के लिए 18 प्रथम वरीयता मत मिलने जरूरी होते हैं।

व्हिप मानने की बंदिश नहीं

इस चुनाव और विधान परिषद के चुनाव दोनों में विधायकों की पौ बारह रहती है। राज्य सभा में ओपन बैलेट होता है। वैसे पार्टियां व्हिप जारी करती हैं, लेकिन अगर विधायक व्हिप तोड़कर किसी और प्रत्याशी को वोट दे तो भी दलबदल कानून के तहत उसकी सदस्यता नहीं जाती। यह सुप्रीम कोर्ट का ऑब्जर्वेशन है।

इसके अलावा एमएलसी के चुनाव में सीक्रेट बैलेट होता है। अगर कोई व्हिप तोड़ कर वोट डालता है तो भी उसका पता नहीं लग सकता। ऐसे में क्रॉसवोटिंग करने वाले विधायकों का किसी को पता नहीं चलता। यानी विधान परिषद और राज्य सभा दोनों में ही क्रॉसवोटिंग करने से किसी विधायक की सदस्यता खतरे में नहीं पड़ती। वो भी उस वक्त, जबकि चुनावी साल हो और सरकार अपने अंतिम साल में प्रवेश कर गई हो।

10 साल पहले जमकर हुई थी क्रॉसवोटिंग

राज्य सभा के चुनाव में यूपी की 11 सीटों के लिए आखिरी बार 2006 में चुनाव हुए थे। उस चुनाव में सपा ने पांच उम्मीदवार उतारे थे। वीरेंद्र भाटिया, बनवारी लाल कंछल, जागरण ग्रुप के प्रमुख महेंद्र मोहन गुप्ता ने इसी चुनाव से पहली बार राज्य सभा में एंट्री की थी। दिग्गज समाजवादी जनेश्वर मिश्र भी उस चुनाव में जीते थे।

वहीं, बीएसपी ने मुनकाद अली, वीरपाल सिंह और बलिहारी को राज्य सभा भेजा था। बीजेपी के विनय कटियार और कलराज मिश्र भी जीते थे और लोकदल के कोटे से मौलाना महमूद मदनी को सपा ने समर्थन कर जिता दिया था। 2006 के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर आजाद कुमार कर्दम और निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर सुधांशु मित्तल ने किस्मत आजमाई थी। दोनों ही 18 प्रथम वरीयता मत नहीं पा सके थे और पहले दौर में ही बाहर हो गए थे। हालांकि, मित्तल ने पानी की तरह पैसा बहाया था और उन्हें बहुत से विधायकों ने समर्थन का वादा किया था।

क्रॉसवोटिंग इस बार भी होनी तय

दरअसल, इस बार अगर वोटिंग होती है तो 2006 की तरह ही जमकर क्रॉसवोटिंग तय मानी जा रही है। 10 साल पहले कम से कम 15 क्रॉसवोट पड़ने की बात सामने आई थी। विधायकों को सदस्यता जाने का डर नहीं है, तो निर्दलीय प्रीति महापात्रा के पास भी पैसों की कमी नहीं है। उनके प्रस्तावक भी कई दलों के हैं। बीजेपी भी उन्हें सपोर्ट दे रही है। ऐसे में तय है कि क्रॉसवोटिंग 11 जून को किसी के चेहरे पर रौनक लाएगी, तो किसी को मायूस सकती है।



Rishi

Rishi

आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

Next Story