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BSP News: मायावती का करिश्मा खत्म! बसपा के मूल वोटर भी छिटके, नोटा की अपील भी उड़ गई हवा
BSP News: 1725 मतदाताओं ने चुना नोटा का विकल्प। 90000 से अधिक दलित मतदाताओं वाले घोसी विधानसभा में बसपा पिछले चुनावों में 50000 से अधिक वोट पाती रही है।
Lucknow News: मायावती का करिश्मा अब खत्म हो गया है! कभी उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक ध्रुव रही बसपा चुनाव दर चुनाव हासिए पर खिसकती जा रही है। जो दलित वोटर बसपा का कभी कोर वोट बैंक हुआ करता था, आज वही बहनजी के साथ नहीं है। इसको घोसी चुनाव से ही समझ सकते हैं। घोसी उप चुनाव में बीएसपी ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा और चुनाव के दो दिन पहले अपने कार्यकर्ताओं और दलित वोटरों को नोटा दबाने की नसीहत देने वाली बसपा की उनके ही काडर के वोटरों ने नहीं सुनी। नतीजा यह रहा कि दलित वोटरों ने घोसी उप चुनाव में सपा को वोट डालकर बसपा को तगड़ा झटका दे दिया। घोसी के 1725 मतदाताओं ने किसी भी प्रत्याशी को वोट देने के बजाय नोटा का विकल्प चुना। 90000 से अधिक दलित मतदाताओं वाले घोसी विधानसभा में बसपा पिछले चुनावों में 50000 से अधिक वोट पाती रही है। लेकिन इस बार यहां का दलित वोट सपा की ओर चला गया।
2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में बीएसपी महज एक सीट पर ही सिमट कर रह गई। बीएसपी के हालात अभी भी बदले नहीं हैं। कभी यूपी की राजनीति का एक ध्रुव रही बहुजन समाज पार्टी इस समय यूपी की राजनीति में हाशिए पर खड़ी है।
घोसी का उपचुनाव बसपा के लिए घाटे का सौदा रहा। बसपा ने वहां अपना प्रत्याशी नहीं उतारा। पहले तो वह खामोश थी लेकिन चुनाव के दो दिन पहले पार्टी ने अपने वोटरों से नोटा का बटन दबाने के लिए कहा। नोटा को मिले वोट और विजयी प्रत्याशी की जीत का अंतर यह बता रहा है कि बसपा का पारंपरिक वोट सपा के पाले में खिसक गया है। हालांकि यह अलग बात है कि नोटा को 6 निर्दलीय प्रत्याशियों से अधिक वोट मिले।
बता दें कि घोसी उपचुनाव में बसपा ने अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया था। कांग्रेस ने भी अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था, लेकिन कांग्रेस ने बकायदा पत्र लिखकर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सुधाकार सिंह को अपना समर्थन देने की घोषण की थी। ऐसा ही राष्ट्रीय लोकदल ने भी किया था।
वहीं बसपा ने यह साफ कर दिया था कि वह ना तो एनडीए के साथ है और ना ही इंडिया गठबंधन के। चुनाव के दो दिन पहले बसपा ने नया फरमान जारी कर दिया। पार्टी ने कहा कि बसपाई या तो इस चुनाव से दूर रहें या नोटा दबाएं। यह फरमान बसपा ने पूरे भरोसे के साथ जारी किया था क्योंकि घोसी में बसपा समर्थकों की बड़ी संख्या है।
यहां बसपा को मिलते रहे हैं वोट-
घोसी विधानसभा में हुए पिछले कई चुनावों में बसपा के उम्मीदवारों को लगभग 50 हजार वोट मिलते रहे हैं। अगर बीते तीन चुनाव के नतीजे की बात करें तो करीब 90 हजार से अधिक दलित मतदाताओं वाली घोसी सीट पर बसपा की पकड़ मजबूत रही है। 2022 में यहां बसपा प्रत्याशी वसीम इकबाल को 54,248 वोट मिले थे। वहीं 2019 के उपचुनाव में बसपा के अब्दुल कय्यूम अंसारी को 50,775 वोट और 2017 में बसपा के अब्बास अंसारी को 81,295 मत मिले थे। ऐसे में अगर देखा जाए तो बसपा के पास घोसी सीट पर खेल को बनाने और बिगाड़ने की पूरी क्षमता थी, लेकिन चुनाव परिणाम बताते हैं कि ऐसा हुआ नहीं। बसपा के वोटरों ने नोटा का बटन दबाने के बजाय कोई एक दल को वोट देना सही समझा।
सपा को शिफ्ट हुए बसपा के वोट-
आने वाले दिनों में इस बात की समीक्षा जरूर होगी कि बसपा से छिटका हुआ वोट कहां और किस पार्टी को गया, लेकिन घोसी में सपा प्रत्याशी की बड़ी जीत यह बता रही है कि बसपा का ज्यादातर वोटर सपा की तरफ शिफ्ट हुआ। सपा प्रमुख अखिलेश यादव पूरे चुनाव के दौरान अपने नारे पीडीए के जरिए दलितों को अपने साथ जोड़ने की पूरी कोशिश भी कर रहे थे। सुधाकर सिंह की जीत का अंतर बताता है कि अखिलेश अपने इस मकसद में काफी हद तक सफल रहे हैं।
नोटा को मिले कम वोट, पर निर्दलीयों से अधिक-
घोसी में भाजपा और सपा के बीच में सीधी लड़ाई थी। दो ध्रुव में बंटे इस उप चुनाव में तीसरे प्रत्याशी के लिए यहां जगह वैसे भी नहीं थी। वहीं बसपा के द्वारा समर्थकों से नोटा की अपील करने के बाद मामला काफी रोचक हो गया था। नोटा को कुछ वोट मिले भी। चुनाव परिणाम बताते हैं कि छह प्रत्याशियों को नोटा से भी कम वोट मिले हैं। घोसी के 1725 मतदाताओं ने किसी भी प्रत्याशी को वोट देने के बजाय नोटा का विकल्प चुना है। वहीं छह निर्दलीय प्रत्याशियों विनय कुमार, प्रवेंद्र प्रताप सिंह, रमेश पांडेय, मुन्नीलाल, सुनील चैहान और राजकुमार को नोटा से भी कम वोट मिले हैं।
बसपा को दे गया नसीहत-
घोसी उप चुनाव बसपा को एक नसीहत दे गया। जहां बसपा को यह उम्मीद थी कि उनके कहते के अनुसार उनका मतदाता नोटा को वोट करेगा वैसा हुआ नहीं वहीं बसपा का वोट भी सपा को चला गया। ऐसे में यह चुनाव बसपा को एक सीख दे गया कि अगर वह अपना प्रत्याशी यहां उतारी होती तो हो सकता था कि आज घोसी चुनाव का परिणाम कुछ और होता।