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मित्र देश से भारत को बढ़ रहा खतरा, चीन की तरफ खिसकता नेपाल

raghvendra
Published on: 23 Feb 2018 7:29 AM GMT
मित्र देश से भारत को बढ़ रहा खतरा, चीन की तरफ खिसकता नेपाल
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गोरखपुर: लोकतंत्र की राह पर लड़खड़ाते नेपाल को केपी ओली के रूप में 41वां प्रधानमंत्री मिल गया है। ओली के शपथ के साथ ही यह संकेत मिलने लगे हैं कि मित्र देश नेपाल अब शत्रु देश के करीब जा रहा है। वैसे तो चुनावों के दौरान ओली ने लोगों से ‘आत्मनिर्भर नेपाल‘ का नारा दिया था लेकिन सदन में बहुमत साबित करने से पहले ही उनके सुर शत्रु देश चीन के प्रति काफी नरम दिख रहे हैं। ओली अब कह रहे हैं कि ‘हमारे पास दो पड़ोसी हैं। हम किसी एक देश या एक विकल्प नहीं निर्भर नहीं रह सकते हैं।‘ ओली के इस सियासी बोल का राजनीतिक पंडित निहीतार्थ तलाश रहे हैं।

पिछले दो दशक से जारी राजनीतिक अस्थिरता के बीच नेपाल में हुए चुनाव में बाम दलों को निर्णायक बहुमत मिला है। बामदलों के समर्थन से पिछले 15 फरवरी को राजधानी काठमांडू के ‘शीतल निवास’ में केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इसके साथ ही नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता तो खत्म हो गई लेकिन इसी के साथ इस बात पर बहस तेज हो गई है कि भारत और नेपाल में से ओली का प्रिय दोस्त कौन होगा। शपथ ग्रहण के बाद विदेशी मीडिया को दिये गए साक्षात्कार में ओली ने जो बयान दिये हैं उससे उनके चीन परस्त होने पर कोई संशय नहीं रह जाता है। ओली का साफ कहना है कि भारत के साथ अधिक सौदेबाजी के लिए वह चीन से संबंध गहरे करना चाहते हैं। भारत के साथ रिश्तों को नये सिरे से परिभाषित किया जाएगा।

ओली ने साफ कहा कि भारतीय सैन्य बलों में नेपाली सैनिकों के काम करने की स्थापित परंपरा सहित भारत नेपाल संबंधों के सभी विशेष प्रावधानों की समीक्षा की जाएगी। हालांकि नेपाल में अभी भी भारत के समर्थन में आवाज बुलंद करने वाले नेताओं की कमी नहीं है। नेपाल के प्रथम प्रधानमंत्री बीपी कोइराला के बेटे प्रकाश कोइराला कहते हैं, ‘नेपाल के सुख-दुख के साथी भारत की तुलना में किसी और को तरजीह नहीं दी जा सकती। हमारे पांच सौ साल से भी अधिक पुराने सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक संबंधों की जगह किसी दूसरे देश के संबंध स्थापित हो ही नहीं सकते।’ नेपाल में पिछले दिनों हुए चुनाव में सीपीएन-यूएमएल वाम गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला है। संसद के निचले सदन की 275 सीटों में से 174 सीटें वाम गठबंधन के पास हैं। 174 सांसदों के समर्थन से 65 वर्षीय केपी ओली को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया था। प्रधानमंत्री पद के लिए ओली को 13 अन्य दलों का समर्थन भी मिला है, जिसमें पुष्प कमल दाहाल प्रचंड का दल भी शामिल है।

आंतरिक चुनौतियां से जूझना होगा

नेपाली राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी ने पिछले 15 फरवरी को ओली को प्रधानमंत्री पद और उनके दो सहयोगियों लालबाबू पंडित तथा महिला सहयोगी थम माया थापा मागर को मंत्री पद को लेकर शपथ दिलाई। 30 दिन के अंदर बहुमत साबित करना ओली के लिए भले ही मुश्किल ना हो लेकिन बदलाव के वादे के साथ सत्ता हासिल करने वाले पीएम के लिए लोगों के अपेक्षाओं को खरा उतरना आसान नहीं है। हिमालय की गोद में बसे पौने तीन करोड़ की आबादी वाले देश में दो दशकों से चली आ रही हिंसा के बाद अपना संविधान मिला है।

लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक अस्थिरता के बीच नेपाल को 40 प्रधानमंत्री मिले लेकिन नेपाल की शांति, गरीबी, भ्रष्टाचार, नेपाली लड़कियों की तस्करी, उद्योगों के विस्थापन, काला धन, मादक द्रव्यों के अंतरराष्ट्रीय कारोबार तथा अवैध हथियारों के व्यापार के मामलों में कोई प्रगति नहीं हुई। पीएम ओली ग्रामीण नगरपालिका क्षेत्रों में तकनीकी संस्थानों की स्थापना, कृषि के आधुनिकीकरण, पर्यटन विकास और उद्योगों सहित विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी पूंजी निवेश की नीति पर आगे बढ़ाने का दावा करते हुए ‘नेपाल के उदय’ की बात कर रहे हैं।

शुरू हो गई राजनीतिक खींचतान

सरकार के गठन के साथ ही खींचतान शुरू हो गई है। ओली सरकार ने पूर्ववर्ती देउबा सरकार द्वारा नेशनल असेंबली के लिए किए गए तीन लोगों के नामांकन को रद्द किए जाने के संकेत दिए हैं। नामांकन का प्रकरण स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास लंबित है। एक साथ चुनाव लडक़र सत्ता में पहुंची दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों- एमाले तथा सीपीएनएमसी (प्रचंड) के चुनाव-बाद के प्रस्तावित विलय को लेकर दोनों दलों में आपसी मतभेद गठबंधन के भविष्य पर नए प्रश्नचिह्न के रूप में उभरा है।

नेपाल के स्कूलों में चीनी भाषा की क्लास

वैसे तो नेपाल में चीनी संस्थाओं द्वारा खोले गए केन्द्रों में चीनी भाषा का ज्ञान दिया जाता रहा है, लेकिन ओली के हाथ में सत्ता आने के बाद चीनी संस्थाओं की गतिविधियां तेज हो गई हैं। चीनी सहयोग भारतीय सीमा से सटे नेपाल के रुपन्देही जिले के स्कूलों में चीनी भाषा का ज्ञान दिया जा रहा है। चीन समर्थित आई सेक संस्था के द्वारा लगभग सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में भाषा के साथ ही वहां की संस्कृति का ज्ञान दिया जा रहा है। इस संस्था का ऑफिस बुटवल और काठमांडू मे है। भैरहवा के मून लाइट, सन शाइन, नालनंदा, जैसिस स्कूलो में संस्था के प्रतिनिधि रेगुलर क्लास ले रहे हैं। बुटवल के सरकारी स्कूल कांतिपुर माध्यमिक मे भी बच्चों को चीनी भाषा का ज्ञान दिया जा रहा है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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