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दारुल उलूम ने जारी किया फतवा- चुस्त व चमक-दमक बुर्के पहनना नाजायज

aman
By aman
Published on: 3 Jan 2018 6:44 AM GMT
दारुल उलूम ने जारी किया फतवा- चुस्त व चमक-दमक बुर्के पहनना नाजायज
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दारुल उलूम ने जारी किया फतवा- चुस्त व चमक-दमक बुर्के पहनना नाजायज

सहारनपुर: मुस्लिम महिलाओं द्वारा पर्दे के नाम पर इस्तेमाल किए जा रहे विभिन्न डिजाइनों के बुर्के व चुस्त लिबास पहनने को दारुल उलूम देवबंद ने फतवा जारी कर सख्त गुनाह व नाजायज करार दिया है। फतवे में कहा गया है, कि ऐसा बुर्का या लिबास पहनकर औरत का घर से बाहर निकलना जायज नहीं है। इस वजह से अजनबी मर्दों की निगाहें उसकी तरफ आकर्षित होती हैं।

देवबंद के ही एक व्यक्ति ने दारुल उलूम के इफ्ता विभाग से लिखित सवाल पूछा था कि 'मुस्लिम औरतों के लिए ऐसा बुर्का या लिबास पहनना कैसा है जिसमें औरतों की आजा (शरीर के अंग) जाहिर होते हों या ऐसा चमक-दमक का बुर्का पहनकर बाजार जाना कैसा है, जिसकी वजह से गैर मर्दों की निगाहें उसकी तरफ उठती हों।

देवबंद के मुफ्तियों ने ये कहा

दारुल उलूम देवबंद के मुफ्तियों ने उक्त सवाल का लिखित जवाब देते हुए कहा है, कि 'मोहम्मद साहब ने इरशाद फरमाया है कि औरत छुपाने की चीज है। क्योंकि जब कोई औरत बाहर निकलती है तो शैतान उसे घूरता है। इसलिए बिना जरूरत औरत को घर से नहीं निकलना चाहिए। जब जरूरत पर घर से निकले तो अपने जिस्म को इस तरह छुपाए कि उसके आजा (शरीर के अंग) जाहिर न हों, यानी ढीला लिबास पहनकर निकले। तंग व चुस्त लिबास या बुर्का पहनकर निकलना और लोगों को अपनी ओर आकर्षित करना हरगिज जायज नहीं है। यह सख्त गुनाह है।'

ऐसे बुर्के जायज नहीं

जवाब में ये भी कहा गया है कि इसी तरह ऐसा बुर्का पहनकर निकलना भी जायज नहीं है जिसमें चमक-दमक व बेल-बूंटे लगे हों। फतवे में कहा गया है, कि इस तरह के बुर्के व लिबास फितने की वजह होते हैं।

हिंदुस्तानी तहजीब पर हावी हुई पश्चिमी सभ्यता

दारुल उलूम से जारी फतवे को वक्त की जरूरत बताते हुए तंजीम अब्ना ए दारुल उलूम के अध्यक्ष मुफ्ती यादे इलाही कासमी ने कहा, कि 'पश्चिमी सभ्यता हिंदुस्तानी तहजीब पर पूरी तरह हावी हो चुकी है। हमारी औरतें पर्दों से निकलकर छोटे व तंग लिबासों में आ गई हैं। पर्दे के नाम पर मुस्लिम महिलाएं खास तौर पर स्कूल कालेजों में जाने वाली लड़कियों द्वारा खिलवाड़ किया जा रहा है। बेहद तंग व चमक दमक के बुर्कों से बाजार भरे पड़े हैं। इस्लाम ने जिस पर्दे का हुक्म दिया है वह इन बुर्कों से पूरा नहीं होता। इस लिए हमारी दीनी बहनों को चाहिए कि वह ढीले-ढाले बुर्कों का इस्तेमाल करें, ताकि वह बुरी नजरों से बच सकें।'

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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