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एओआर फार्म जमा करने की तिथि बढ़ी, असमंजस बहुत है वकीलों में

एओआर फार्म भरे जा रहे हैं लखनऊ में इसको भरने की डेट भी बढ़ा दी गई है। सभी वकील फार्म भरने में जुटे हैं लेकिन हाईकोर्ट के आदेश पर शुरू की गई इस प्रक्रिया को लेकर वकीलों में असमंजस बहुत ज्यादा है। खासकर आगे उन्हें अब कैसे काम करना है इसे लेकर वह परेशान हैं।

राम केवी
Published on: 18 March 2020 2:11 PM GMT
एओआर फार्म जमा करने की तिथि बढ़ी, असमंजस बहुत है वकीलों में
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में आजकल एओआर फार्म भरे जा रहे हैं लखनऊ में इसको भरने की डेट भी बढ़ा दी गई है। सभी वकील फार्म भरने में जुटे हैं लेकिन हाईकोर्ट के आदेश पर शुरू की गई इस प्रक्रिया को लेकर वकीलों में असमंजस बहुत ज्यादा है। खासकर आगे उन्हें अब कैसे काम करना है इसे लेकर वह परेशान हैं। बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश और बार एसोसिएशन्स के पदाधिकारियों का भी कहना है कि अधिवक्ताओं को इससे होने वाली इस परेशानी को वह समझ रहे हैं और इस संबंध में युक्तिसंगत हल निकालने का प्रयास किया जा रहा है। जिसमें मोडिफिकेशन ऑफ जजमेंट के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया भी शामिल है।

बार काउंसिल के को प्रेसिडेंट

बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के कोचेयरपर्सन जयनारायण पांडे का कहना है कि फिलहाल हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में एओआर प्रक्रिया चल रही है। वकीलों की दिक्कत को वह समझते हैं। मोडिफिकेशन ऑफ जजमेंट का प्रयास किया जाएगा। हालांकि इस समय वह अस्वस्थ हैं और ठीक होते ही इस मुहीम में धार देने में जुटेंगे। बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के सदस्य अखिलेश अवस्थी का भी कहना है कि मुख्य न्यायाधीश से मिलकर प्रत्यावेदन देने का प्रयास किया जा रहा है।

अवध बार के महामंत्री शरद पाठक

अवध बार एसोसिएशन के महामंत्री शरद पाठक का कहना है कि एओआर को लेकर अभी बहुत स्पष्ट स्थिति नहीं है। इसे चैलेंज किया जा चुका है। जिसमें कहा गया है कि एओआर प्रक्रिया तभी शुरू हो सकती है, जबकि एडवोकेट एक्ट में संशोधन हो जाए। क्योंकि एडवोकेट एक्ट किसी भी वकील को पूरे देश में कहीं भी जाकर प्रैक्टिस करने की आजादी देता है। इसलिए एओआर प्रक्रिया को लागू करने के लिए पहले संसद से अधिवक्ता अधिनियम को संशोधित किया जाना जरूरी है।

सेंट्रल बार के महामंत्री संजीव पांडे

सेंट्रल बार एसोसिएशन के महामंत्री संजीव पांडे का इस मामले में कहना है कि फिलहाल जिला न्यायाधीश ने सेंट्रल बार के अनुरोध को स्वीकार करते हुए एओआर के लिए फार्म जमा करने की अंतिम तिथि 30 मार्च कर दी है। अधिवक्ता साथियों को इसे लेकर अधिक परेशान होने की जरूरत नहीं है।

पूर्व महामंत्री ब्रजेश त्रिपाठी

एओआर प्रक्रिया को लेकर अधिवक्ताओं की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। सेंट्रल बार के पूर्व महामंत्री ब्रजेश त्रिपाठी का कहना है कि इस प्रक्रिया के बाद एडवोकेट एक्ट पूरी तरह खत्म हो जाएगा। वकीलों का कहीं भी जाकर वकालतनामा दाखिल करने का अधिकार खत्म हो जाएगा। बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश से जारी सीओपी का मतलब खत्म हो जाएगा।

एक जनपद का वकील दूसरे जनपद में जाकर प्रैक्टिस नहीं कर सकेगा। यदि किसी वकील को कोई केस गैर जनपद का मिलता है तो वह वहां वकालत कैसे करेगा। नई व्यवस्था में गैर जनपद में वकालत करने के लिए वहां के वकील को इंगेज करना अनिवार्य हो जाएगा। इससे अधिवक्ता के हित प्रभावित होंगे।

वकीलों के बीच उठ रहे सवाल

वकीलों के बीच एक बहुत बड़ा सवाल यह भी है कि क्या इसके अगले चरण में हाईकोर्ट से एओआर सर्टिफिकेट लेने वाले वकील अलग होंगे, सिविल कोर्ट से एओआर लेने वाले वकील अलग होंगे। इस संबंध में अवध बार के महामंत्री शरद पाठक का कहना है कि फिलहाल एक जनपद के लिए एक एओआर व्यवस्था ही है। इसलिए जो चीज है ही नहीं उस पर विचार करने की जरूरत नहीं है।

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इसके अलावा कुछ अधिवक्ताओं का कहना है कि इसके लाभ हैं तो नुकसान भी हैं। जब गैरजनपद में जाकर अधिवक्ता प्रैक्टिस करता है तो वर्तमान स्थिति में नोटिस सर्व कराने में दिक्कत आती है। कई बार वह तात्कालिक तौर पर उपलब्ध नहीं हो पाता है। नई व्यवस्था में अब उसके लिए स्थानीय अधिवक्ता को इंगेज करना अपरिहार्य हो जाएगा। तो इससे नुकसान ही होंगे यह नहीं कहा जा सकता इसके फायदे भी होंगे।

राम केवी

राम केवी

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