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ट्रेन हादसा: मौत कर रही थी किसी का पीछा, तो किसी की ज़िंदगी ने बदल ली सीट
संतोष को झुंझलाहट हुई। फिर लगा, कि उन्होंने बर्थ न बदली, तो भी शायद दोनों एक साथ एक ही बर्थ पर सिमट जाएं। संतोष ने संतोष कर लिया। सीट बदल गई।और क़िस्मत भी। ज़िंदगी संतोष का हाथ पकड़ कर एस-5 की सीट नंबर 27 पर ले आई।
इलाहाबाद: जाको राखे साइयां-मार सके न कोय। यह कहावत सदियों से खुद को साबित करती रही है। संतोष उपाध्याय भी क्या कभी इसे भूल पाएंगे? संतोष उसी बदनसीब ट्रेन में सवार थे, जो शनिवार रात कानपुर के पास पुखऱायां में दर्दनाक हादसे का शिकार हो गई। बस! कुछ यूं हुआ कि वह मौत की सीट पर थे, और ज़िंदगी ने उनसे सीट बदल ली। हालांकि, जिंदगी के साथ इस खेल में मौत किसी और को झपट ले गई।
बदली क़िस्मत
-संतोष उपाध्याय इलाहाबाद के शाहगंज निवासी हैं। शनिवार रात वह भी उसी अभागी ट्रेन से सफर कर रहे थे, जो हादसे का शिकार हो गई।
-पेशे से पत्रकार संतोष का सफर एस-2 कोच की बर्थ नंबर 7 पर तय था। वह उस पर जा लेटे।
-रात बारह बजे जब समय करवट बदल रहा था, बबीना स्टेशन के पास 2 महिलाएं उनके पास पहुंचीं।
-उनमें से एक की बर्थ उसी कोच में थी, और दूसरी की दूसरे कोच में।
-साथ न छूटे, इसलिए महिलाओं ने संतोष से सीट और कोच बदल लेने की गुज़ारिश की।
-पहले संतोष को झुंझलाहट हुई।फिर लगा, कि उन्होंने बर्थ न बदली, तो भी शायद दोनों एक साथ एक ही बर्थ पर सिमट जाएं। संतोष ने संतोष कर लिया।
-सीट बदल गई।और क़िस्मत भी। ज़िंदगी संतोष का हाथ पकड़ कर एस-5 की सीट नंबर 27 पर ले आई।
-लेकिन सीट ने महज़ मुसाफ़िरों की क़िस्मत बदली थी, कोच की किस्मत में कोई बदलाव नहीं हुआ था। मौत किसी का पीछा कर रही थी।
-इसलिए उन महिलाओं को एक दूसरे का साथ तो हमेशा हमेशा के लिए मिल गया, लेकिन मौत की आगोश में।
मौत का हमला
-मौत, पुखरायां के पास पटरी पर बैठी ट्रेन का इंतजार कर रही थी।
-संतोष की आंख खुली, तो बेरहम मौत के ख़ूनी पंजे ट्रेन पर हमला कर कर चुके थे।
-रफ़्तार को वक़्त ने जड़ कर दिया। पलक झपकते सब कुछ ठहर गया था। यहां तक कि, सोच-समझ भी ठिठकी खड़ी थीं।
-दूर दूर तक काली रात के घने डैनै थे, अधेरा था, और अंधेरे को चीरती चीख़ें और कराहें।
-होश ने दस्तक दी, तो संतोष हड़बड़ा कर उठे। इमरजेंसी विंडो से किसी तरह बाहर निकले। लेकिन वहां का मंज़र देखकर देर तक फूट-फूट कर रोते रहे।
-फिर संभले, तो रेलवे और पुलिस को खबर दी।
-जब यक़ीन हो गया कि वह पूरी तरह सही सलामत हैं, तो उन्हें अपनी बर्थ याद आई। क्या हुआ होगा उसका। घबरा कर एस-2 की तरफ दौड़े।
-लेकिन उस कोच से तो कोई सलामत निकला ही नहीं। संतोष रो पड़े। उनसे कोच बदल कर वे महिलाएं उनकी क़िस्मत भी बदल गई थीं।
-अनजाने में ही, अपनी ज़िंदगी क़ुर्बान कर गई उन महिलाओं के परिवार से संतोष को गहरी हमदर्दी है।
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